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पाणिणो एवं सहि एहि पासए अनिह से पुढे हियासए ॥
-सूयग० अ० २ उ० १ गा० १३ त० सूत्र अ० ४ सूत्र ११ से इस पाठ का सम्बन्ध है पिसायभया जक्खाय रक्खसा किन्नरा किं पुरिसा। महोरगा य गंधव्वा, अट्ठ विहा वाणमंतरा ।।
उत्तराध्ययन, अध्य० ३६ । २०६ त० अ० ६ सू० ६ से इस पाठ का सम्बन्ध है ।
संजोयणाहिगरण किरिया य निव्वतणाहिगरण किरिया य।
-व्याख्या० प्र० शतक ३ उ० २ श्रोहोवहोवग्गहियं भंडगं दुविहं मुणी । गिराहतो निक्खिवंतो वा, पउंजेज इमं विहिं ॥
-उत्तराध्ययन अ० २४ सू० १३ संरम्भ समारम्भे, प्रारंभे य तहेव य । मणं पवत्तमाणं तु, नियत्तेज जयं जई ॥२१॥