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चतुर्थोऽध्यायः।
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अपरा पल्योपमधिकम् ॥३३॥ परतःपरतःपूर्वा पूर्वाऽनन्तरा ॥३४॥ दो चेव सागराइं, उक्कोसेण वियाहित्रा। सोहम्मम्मि जहन्नेणं. एगं च पलिअोवमं ॥ २२० ॥ सागरा साहिया दुन्नि, उक्कोसेण वियाहिया । ईसाणम्मि जहन्नेणं, साहियं पलिश्रोवमं ॥ २२१ ॥ सागराणि य सत्तेव, उक्कोसेणं ठिई भवे । सणकुमारे जहन्नेणं, दुन्नि ऊ सागरोवमा ॥२२२॥ साहिया गागरा सत्त, उक्कोसेणं ठिई भवे । माहिन्दम्मि जहन्नणं,साहिया दुन्नि सागरा ॥२२३।। दस चेव सागराई, उक्कोसेणं ठिई भवे । बम्भलोए जहन्नेणं, सत्त ऊ सागरोवमा ॥ २२४ ॥ चउदस सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । लन्तगम्मि जहन्नणं, दस ऊ सागरोवमा ॥ २२५ ॥