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________________ चतर्थोऽध्यायः । पणत्ता, तं जहा - पुने चेव विसिद्धे चेव दो उद हिकुमारिंदा परणत्ता, तं जहा- जलकंते चेव जलसभेचे । दो दिसाकुमारिंदा पण्णत्ता, तं जहाश्रमियगती चैव श्रमियवाहणे चैव । दो वातकुमा रिंदा पराणत्ता. तं जहा- वेलंबे चेव पभंजणे चेव । दो थयिकुमारिंदा पराणत्ता तं जहा घोसे चेव महाघोसे चैव । दो पिसाइंदा पण्णत्ता, तं जहा-काले वेव महाकाले चैव । दो भूइंदा पण्णत्ता, तं जहासुरुवे चैव एडिस्वे चेव । दो जक्खिदा पण्णत्ता, तं जहा - पुन्नभद्दे चेव माणिभद्दे चेव । दो रक्खसिंदा पणत्ता, तं जहा- भीमे चेव महाभीमे चेव । दो किन्नरिंदा पण्णत्ता, तं जहा - किन्नरे चेव किंपुरिसे चेव । दो किंपुरिसिंदा पण्णत्ता, तं जहा - सप्पुरिसे चेव महापुरिसे चेव । दो महोरगिंदा पराणत्ता, तं जहा अतिकार चेव महाकाए चेव । दो गंधविदा 1 ६१
SR No.002427
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherRatnadevi Jain Ludhiyana
Publication Year1941
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Agam, Canon, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size10 MB
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