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________________ अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि भगवान् उमास्वाति ने संग्रह किस रूप में किया है ? इसका उत्तर यह है कि इस ग्रन्थ में दो प्रकार से संग्रह किया गया है। कहीं पर तो शब्दशः संग्रह है अर्थात् आगम के शब्दों को संस्कृत रूप दे दिया गया है और कहीं पर अर्थ संग्रह है अर्थात् आगम के अर्थ को लक्ष्य में रखकर सूत्र की रचना की गई है। कहीं २ पर आगम में आये हुए विस्तृत विषयों को संक्षेप रूप से वर्णन किया गया है। आगमों से किस प्रकार इस शास्त्र का उद्धार किया गया है ? इस विषय को स्पष्ट करने के लिये ही वर्तमान ग्रन्थ विद्वत्समाज के सन्मुख रखा जा रहा है। इसका यह भी उद्देश्य है कि विद्वान लोग आगमों के स्वाध्याय का लाभ उठा सकें। __इस ग्रंथ में सूत्रों का आगमों से समन्वय किया गया है। इसमें पहले तत्त्वार्थसूत्र का सूत्र, दिया है
SR No.002427
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherRatnadevi Jain Ludhiyana
Publication Year1941
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Agam, Canon, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size10 MB
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