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________________ संवेगरंगशाला प्रस्तावना प्रस्तावना जेमां पदे-पदे वाक्ये-वाक्ये ने श्लोके - श्लोके संवेगनी छोळो उछळी रही छे, एवा आ ग्रन्थनुं नाम संवेगरंगशाळा छे. आ ग्रन्थरत्ननी रचना करनार समर्थतार्किक महावादी श्री सिद्धसेनदिवाकरसूरिजी कृत संमतितर्क ग्रन्थ पर असाधारण टीका | लखनार पू. आचार्यदेव श्री अभयदेवसूरि महाराजना वडील गुरुबन्धु पूज्यपाद आचार्यदेव श्री जिनचन्द्रसूरिजी महाराज छे. आ ग्रन्थ खास करीने एज पुण्यात्माओने लाभ करनार निवडशे के जे हृदयथी एम माने छे के हुं आत्मा छु, अनादिकाळथी संसार समुद्रमां रखडी रह्यो छं, हुं शाश्वत छं, पण मारी वर्तमान अवस्था अशाश्वत छे. मारी आ अनंत | रखडपट्टीनो अंत लाववो होय तो 'संवेग' गुणनो वेग मारे वधारवो जोईए. विना संवेग मारा संसारनो अंत आववानो नथी; | केम के वगर संवेगे लांबाकाळ सुधी पण तपेलुं तप, सेवेलुं शील कायकष्ट रूप छे, आचरेलुं अनुपम चारित्र एने मेळवेलुं घणुं बधुं ज्ञान पण खरेखर फोतरा खांडवा जेवुं छे. आ वात ग्रन्थकारना शब्दोमां जोईए तो — सुचिरं पि तवो तवियं, चिन्नं चरणं सुयं पि बहु पढियं । जइ नो संवेगरसो, ता तं तुसखण्डणं सव्वं ।। एसो पण वांचनार एम पूछशे के, संवेग एटले शुं? तेनो उत्तर पण ग्रन्थकार नीचेना शब्दोमां आपे छेपुण संवेगो, संवेगपरायणेहिं परिकहिओ । परमं भवभीरुत्तं, अहवा मोक्खाभिकंखित्तं ।। तीर्थंकर भगवंतोए संवेगनो अर्थ आ प्रमाणे कहेलो छे. अत्यंत संसारनो भय अथवा मोक्षनी अभिलाषा. अत्यंत | संसारनो भय एटले चारे गतिनो भय. चारे गतिमां नरकगति अने तियंच गतिनो भय तो लगभग बधा ज मनुष्योने छे. कोईने पूछीए के, सुखी युरोपियनना कुतरा तरीके जन्म लेवो छे? तो ते तरत ज ना पाडशे. आपणे कहीए के, मोटरमा बेसवा मळशे, | दररोज माणस नवडावशे, सारं सारुं खावानुं मळशे. वगेरे वगेरे भौतिक सुखो बतावीए तो पण ते ना ज पाडशे. केम के | तिर्यंच- पशु के ढोर थवुं कोईने गमतुं नथी. ज्यारे नरकमां तो दुःख ने दुःख ज होय छे. त्यां जवानुं मन कोने थाय? त्यारे रही | बाकीनी बे गति. एक मनुष्य अने बीजी देवगति आ मनुष्यगतिमां पण दीन-दुःखी अने कंगाळकुलमां जन्म लेवानुं कोई | इच्छतुं नथी. तेमज देवलोकमां पण बीजा स्वामी देवोनी गुलामी करवी पडे. तेना हुकमथी पशु थई तेने पीठ उपर बेसाडवा | पडे. तेवुं कोईने पसंद नथी. त्यारे संसारी जीवने शुं पसंद छे ? संसारनुं भौतिक सुख. तेनी सामे संवेग गुण आपणने कहे छे के, आ संसारना सुखोने मोक्षरूप सुख मेळववा खातर लात मारता शीखो. अने आ शिक्षण तमारा हैयामां परिणाम पामे ए माटे आ ग्रन्थनुं पुनः पुन वांचन, मनन अने निदिध्यास करो. आ संवेग गुण मेळववानी जेने इच्छा थती नथी. तेने आ ग्रन्थकार दुर्भव्य के अभव्य तरीके ओळखावे छे. आ उपरथी समजी शकाशे के, आ संवेग गुणनी जीवनमां केटली आवश्यकता छे? कहेवुं होय तो एम पण कही शकाय के, मंत्रोमा जेम नमस्कार महामंत्र सर्वश्रेष्ठ छे, पर्वतोमां जेम श्री शत्रुंजय सर्वश्रेष्ठ छे, देवोमां जेम वीतराग परमात्मा सर्वश्रेष्ठ छे तेम सर्व गुणोमां शिरोमणि भावने भजनार आ संवेग गुण गुणोमां सर्वश्रेष्ठ छे. आ ग्रन्थमां चार मुख्यद्वारनुं कथन करवामां आव्युं छे. संवेगगुणनी प्राप्ति थया पछी आराधना कया क्रमे करवी | अथवा ए गुणने प्राप्त करवा पण आ आराधना केवी रीते करवी तेनुं आमां स्पष्ट वर्णन छे. आ चार द्वारो (१) परिकर्मविधि द्वार (२) परगणसंक्रमण द्वार (३) ममत्वउच्छेद द्वार अने (४) समाधिलाभ द्वार छे. आ चारे मुख्य द्वारोमां पेटाद्वारो पहेलाना १५, बीजाना १०, त्रीजाना ९ अने चोथाना ९ छे. ते पेटाद्वारोनुं वर्णन विस्तारथी छे, जे जिज्ञासुओने वांची जवा भलामण छे. पहेला परिकर्मविधिद्वारमां आत्माने ते ते द्वारोमां बतावेली आराधना द्वारा संस्कारी बनाववानो छे. मोहराजानुं साम्राज्य गजबनुं छे. जीवने क्यां अने क्यारे फसावी दे, तेनो पत्तो नथी. माटे एना संकजामां जीव फसाई न जाय तेनी सावधानी माटे आ बधा पेटा द्वारोनी विधिपूर्वक आराधना करवानी कही छे. आ द्वारमां साधु अने श्रावकना उपकरणोनुं जेम वर्णन छे, तेम गुरु पासेथी ग्रहणशिक्षा अने आसेवनशिक्षा लाई
SR No.002420
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherLehar Kundan Group
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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