SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुनि को राजादि का संसर्ग अच्छा नहीं। उसिणोदगतत्तभोइणो धम्मट्ठियस्स मुणिस्स हि मतो। संसग्गि असाहु राइहिं असमाहि उ तहागयस्स वि॥ टी. चिदण्डोद्धृतोष्णोदकभोजिनः यथोक्तानुष्ठायिनोऽ पि राजादिसंसर्गवशाद् असमाधिरेव अपध्यानमेव स्यात्, न कदाचित् स्वाध्यायादिकं भवेदिति । ___- सूयगडांग वृत्ति . Y उष्ण तप्त जल का ही उपयोग करने वाला धर्म में स्थिर लज्जायुक्त ऐसे मुनि के लिए राजादि का संसर्ग अच्छा नहीं है। ऐसे साधुको भी असमाधि हो जाती है। टीकार्थ :- तीन उकाले वाले पानी का ही उपयोग करने वाले शास्त्रोक्त अनुष्ठान का आचरण करनेवाले साधु राजादि के संसर्ग से असमाधि-दुर्ध्यान ही होता है स्वाध्यायादि कभी नहीं कर सकता। - प्रभु तुजशासन अतिभलु पेज ३१ स्वेच्छा से राजनेता आते हो तो कोई अशास्त्रोक्त नहीं है। परंतु उनको बुलवाना उनकी राजनीति को ही प्रोत्साहन देना है। चतुर्विध संघ सोचें।
SR No.002420
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherLehar Kundan Group
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy