SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * गीता दर्शन भाग-7 * होता रहता है। लेकिन वह सूक्ष्म कला है; सभी उसमें कुशल नहीं है; सभी को दिखाई नहीं पड़ सकती। हो सकते। सत्व जब पैदा होता है, तो शुभ आचरण में अपने आप आता है। बुद्ध का शिष्य है, महाकाश्यप। बुद्ध ने सभी शिष्यों को भेजा | | हे अर्जुन, रजोगुण और तमोगुण को दबाकर सत्वगुण पैदा कि जाओ, बहुजन हिताय बहुजन सुखाय, लोगों को समझाओ, | होता है। लोगों को जगाओ। लेकिन महाकाश्यप को कभी नहीं भेजा। । इस प्रक्रिया को समझ लेना चाहिए कि ये गुण कैसे काम करते सारिपुत्र को भेजा, मौदगल्यायन को भेजा। और सैकड़ों शिष्य थे, | हैं। रजोगुण और तमोगुण को दबाकर सत्वगुण पैदा होता है। ये उनको भेजा कि तुम जाओ, लोगों को जगाओ; लोगों को ज्ञान दो, | तीनों गुण सभी के भीतर मौजूद हैं। कोई गुण बाहर से लाना नहीं ध्यान दो; लोगों को करुणा का सूत्र दो; लोगों को सजग बनाओ। | है। तीनों गुण भीतर मौजूद हैं। और तीनों गुणों में जो ऊर्जा काम लेकिन महाकाश्यप को कभी नहीं भेजा। करती है, वह भी मौजूद है। वह ऊर्जा एक है। ये तीन गुण हैं, वह __ आनंद एक जगह बुद्ध से पूछता है, आपने सब को भेजा, ऊर्जा एक है। लेकिन कभी आप महाकाश्यप को आज तक नहीं कहे कि तू कहीं जैसे समझें कि आपके घर में एक मात्रा का जल है, और घर में जा, कुछ कर! बुद्ध ने कहा, महाकाश्यप का होना ही करना है। | से तीन छेद हैं, जिनसे वह जल बाहर जा सकता है। आप चाहें तो उसे कहीं भेजने की जरूरत नहीं। वह जहां है, उसके होने से काम एक ही छेद से उस जल को बाहर भेज सकते हैं, तब धारा बड़ी हो हो रहा है। वह बैठा है झाड़ के नीचे, तो भी काम हो रहा है। उस | जाएगी। आप चाहें तो तीनों छिद्रों से उस जल को बाहर भेज सकते रास्ते से जो लोग गुजर जाएंगे, वे भी उसके कणों को ले जा रहे हैं। | हैं; तब धाराएं क्षीण हो जाएंगी। आप चाहें तो एक से ज्यादा, दूसरे वह महाकाश्यप, अगर हम ठीक से समझें, तो इनफेक्शस है। से कम और तीसरे से और कम जल को भेज सकते हैं। वह जिस बुद्धत्व को उपलब्ध हुआ है, वह बुद्धत्व संक्रामक है; ___ आपकी जीवन-ऊर्जा की धारा आपके पास है। और यह तीन वह उसकी मौजूदगी से फैलता है। उसे सक्रिय रूप से सीधे-सीधे | | गुणों का यंत्र आपके पास है। जब आप बिना किसी साधना के जीते काम में नहीं लग जाना होता है। | हैं, तो सिर्फ परिस्थितियां ही निर्धारक होती हैं कि किस गुण से बड़ी गहरी चेतनाएं चुपचाप भी करती रहती हैं। निर्भर करेगा इस आपकी ऊर्जा बहेगी-परिस्थितियां, आप नहीं। . बात पर कि किस तरह का व्यक्ति है। अगर अंतर्मुखी व्यक्ति ज्ञान __ और ध्यान रहे, प्रत्येक व्यक्ति प्रतिपल बदलता रहता है। सुबह को उपलब्ध होगा, सत्व को उपलब्ध होगा, तो वह चुप हो जाएगा, | हो सकता है तमोगुणी रहा हो, और दोपहर को रजोगुणी हो जाए, मौन हो जाएगा, शांत हो जाएगा। उसकी मौजूदगी से काम होगा, | | और शाम को सत्वगुणी मालूम पड़े। लेकिन परिस्थितियां निर्धारक उसके प्रभाव अप्रत्यक्ष होंगे, पर बड़े गहरे होंगे, दूरगामी होंगे। होती हैं। अगर बहिर्मुखी व्यक्ति होगा और सत्व को उपलब्ध हो जाएगा, समझ लें कि आप सुबह ही उठे और पा रहे हैं कि चित्त आलस्य तो उसके प्रभाव विस्तीर्ण होंगे, स्थल होंगे, बहत लोगों की सेवा से भरा है, उठने का कोई मन नहीं, दिनभर बिस्तर में ही पड़े रहें। उससे होगी, लेकिन बहुत दूरगामी नहीं होगी। विस्तीर्ण होगी, और तभी पता लगा कि मकान में आग लग गई। तमोगुण तत्क्षण लेकिन गहरी नहीं होगी। मरीज उससे ठीक होंगे, किसी को जमीन | विदा हो जाएगा। आप एकदम रजोगुणी हो जाएंगे। एकदम से तम भूमि-दान करवाएगा; किसी को धन, किसी को मंदिर बनवाएगा; के द्वार से जो ऊर्जा बह रही थी, वह खींच ली जाएगी। और पूरी कहीं धर्मशाला खलवाएगा; कहीं गरमी में प्याऊ डलवाएगा: पर की परी ऊर्जा रज के द्वार से प्रवाहित होने लगेगी। क्योंकि मकान उसका काम ऊपर-ऊपर होगा। उससे लाभ होगा, लेकिन वह लाभ | में आग लगी है; आग बुझाना जरूरी है। स्थूल होगा। उस वक्त आप नहीं कह सकते कि मैं आलस्य में हूं। अभी मेरा रमण न तो प्याऊ खुलवाते, न भूदान करवाते, न मंदिर बनवाते। मन नहीं उठने का। आप भूल ही जाएंगे कि नींद भी कोई तत्व है पर उनका प्रभाव दूरगामी है। सदियों तक जो लोग भी उनकी तरफ जीवन में, कि बिस्तर में पड़े रहने में भी कोई रस हो सकता है। अपने मन को टयून करने में सफल हो जाएंगे, वे उनसे प्रभावित | | छलांग लगाकर बिस्तर से उठेंगे, जैसा आप कभी नहीं उठे थे। होंगे, आंदोलित होंगे, रूपांतरित होंगे। पर वह अदृश्य की घटना | लेकिन यह घटना घट रही है परिस्थितिवश।
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy