________________
* गीता दर्शन भाग-7 *
जागरूक हों।
रिटायरमेंट जिस दिन होता है, उसी दिन उम्र से कम हो जाते हैं। एक आलसी आदमी बैठा है, तो हम उससे कहेंगे कि तू अपने | क्योंकि नशा छिन जाता है। और जिंदगीभर का नशा था, आलस्य के प्रति सजग हो जा। भीतर से तू जान, पहचान, और | | काम-काम, सुबह से सांझ तक काम। अचानक एक दिन आप पाते देख। आलस्य को छिपा मत। और आलस्य को युक्तियां खोजकर हैं कि कोई काम नहीं बचा। नशा टूट जाता है। ढांक मत। तर्क मत खोज। आलस्य को उसकी नग्नता में देख। काम भी एक नशा है। बहुत-से लोग इसीलिए काम में लगे रहते और कुछ भी मत कर, सिर्फ देख।
हैं कि काम में न लगें, तो वे बड़ी मुश्किल में पड़ जाएंगे। खाली अगर दर्शन की यह क्षमता, साक्षीभाव का यह उपाय आलस्य नहीं बैठ सकते। कुछ हैं, जो खाली बैठ सकते हैं, काम में नहीं जा पर लागू हो जाए, तो यह व्यक्ति सत्व में सरक जाएगा। | सकते। क्योंकि उनको लगता है, काम में गए तो उनकी नींद टूटती __और यही हम कहेंगे रजोगुणी को भी, जो सक्रियता में डूबा हुआ है। नींद में उन्हें सुख मालूम पड़ता है, बेहोशी का। है। उससे भी हम कहेंगे कि तू अपनी सक्रियता के प्रति सजग हो | । ये दोनों अलग-अलग तरह के लोग नहीं हैं। एक ही तरह के जा; तू अपने कर्म का जो पागलपन है, उसके प्रति जाग जा; होश | लोग हैं। सिर्फ एक-दूसरे से उलटे खड़े हैं। एक शीर्षासन कर रहा से भर। तो रजोगुणी भी होश के माध्यम से सत्व में प्रवेश करता | है और एक पैर के बल खड़ा है। है। होश सत्व का द्वार है।
वह जो तामसी है, वह पड़ा रहता है अपनी नींद में, क्योंकि नींद और ध्यान रहे, रजोगुणी और तमोगुणी तो एक-दूसरे के ही रूप | उसे नशा है। जब भी वह काम में लगता है, तो नशा टूटता है। जो हैं। एक शीर्षासन कर रहा है; एक पैर के बल खड़ा है। एक | | काम में लगा हुआ आदमी है, वह रात में सो भी नहीं सकता। रात सक्रियता में पागल है। और एक निष्क्रियता में डूबा हुआ मूर्छित में भी उसका मन काम करता है। उसको नींद मुश्किल है। उसका पड़ा है। दोनों मूछित हैं। जो आलस्य में पड़ा है, वह इसलिए | काम ही उसका नशा हो गया है। मूर्छित है कि उसके चारों तरफ एक निद्रा का वातावरण है। और | ___ इसलिए तमोगुणी को रजोगुणी में बदलने का कोई सार नहीं है। जिसको हम सक्रिय देखते हैं, वह भी मूर्छित है, क्योंकि क्रिया भी रजोगुणी को तमोगुणी में बदलने का कोई सार नहीं है। दोनों को मूर्छा लाती है। अगर आप जोर से किसी क्रिया में लग जाएं, तो | | ही सत्वगुणी में बदलने का सार है। और सत्वगुण में जाने का सूत्र स्वयं को भूल जाते हैं।
है, होश। वह अभी हम कृष्ण के वचन में चलेंगे, तो खयाल में अक्सर ऐसा होता है कि जब तक कोई राजनीतिज्ञ पदों पर होता आ जाएगा। है, तब तक बिलकुल स्वस्थ मालूम होता है। जैसे ही पदों से हटता | सूत्रः है, कि बीमार होना शुरू हो जाता है। राजनीतिज्ञ पदों से हटकर और हे अर्जुन, रजोगुण और तमोगुण को दबाकर सत्वगुण ज्यादा दिन जिंदा नहीं रहते। पदों पर जिंदा रहते हैं। और न केवल | | होता है अर्थात बढ़ता है तथा रजोगुण और सत्वगुण को दबाकर जिंदा रहते हैं, बड़े स्वस्थ रहते हैं। और कई दफे चकित होना पड़ता | तमोगुण बढ़ता है; वैसे ही तमोगुण और सत्वगुण को दबाकर है, क्योंकि इतने पागलपन के चक्कर में भी उनका स्वास्थ्य अनूठा | | रजोगुण बढ़ता है। मालूम पड़ता है।
जिस काल में इस देह में तथा अंतःकरण और इंद्रियों में चेतनता लेकिन कारण है उसका। कारण उसका यही है कि उन्हें कभी और बोध-शक्ति उत्पन्न होती है, उस काल में ऐसा जानना चाहिए अपना खयाल ही नहीं आता। काम में इस तरह डूबे हैं कि काम एक | कि सत्वगुण बढ़ा है। नशा है, एक शराब है।
तो सत्वगुण का एक ही लक्षण है, चेतनता। जब आप होश से आप भी जब तक काम में लगे हैं, तब तक सोचते हैं कि कब भरे हैं, तब जानना कि सत्वगुण बढ़ा है। सत्वगुण चाहिए हो, तो विश्राम मिल जाए। लेकिन जिस दिन रिटायर हो जाएंगे, उस दिन | | जितना ज्यादा आप होशपूर्वक हो सकें, उतना शुभ है। जो भी आप अचानक पाएंगे कि दस साल उम्र आपकी कम हो गई। | करें, क्षुद्र से क्षुद्र या बड़े से बड़ा काम, वह होशपूर्वक हो, उसमें
मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि जो आदमी अस्सी साल जीता, वह | कांशसनेस हो, उसे करते वक्त आप जागे हुए करें, सो न जाएं। रिटायर होने के बाद सत्तर साल में मर जाएगा। दस साल, जितनी जागरूकता की मात्रा बढ़ेगी, उतना आपके भीतर सत्वगुण