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________________ * होशः सत्व का द्वार * जाती है। चुकेगा नहीं। जहां कंपन था भय का, वहां अभय की थिरता आ| कृष्ण, अर्जुन इस क्षण में, मौजूद क्षण में कैसा डांवाडोल हो रहा है, उसका मन किन दिशाओं में भटक रहा है, उसे भी देख रहे हैं। जैसे तूफान अचानक शांत हो गया हो और दीए की लौ थिर हो वे क्या कह रहे हैं, उसके प्रति अर्जुन के क्या उत्तर और क्या संदेह गई हो और जरा भी न कंपती हो, ऐसे शिष्य के भीतर की चेतना ठहर | उठ रहे हैं, वे भी उनके सामने हैं। लेकिन वे एक व्यूह रच रहे हैं। जाती है। इसे वह खुद पहचाने इसमें देर लगेगी, कई कारणों से। एक एक तो महाभारत का व्यूह था, जो अर्जुन ने रचा है। और एक तो इस कारण भी कि यह अनुभव उसके लिए पहला है। इसको उससे भी बड़े युद्ध का व्यूह कृष्ण अर्जुन के आस-पास रच रहे हैं। रिकग्नाइज करने का, इसकी प्रत्यभिज्ञा का उसके पास कोई उपाय | बिना धकाए अर्जन को परम मंदिर में प्रविष्ट करवा देना है। और नहीं है। यह वह पहली दफा जान रहा है। अगर इसने इसके पहले अर्जुन को पता भी न चले कि किसी ने उसे किसी भी तरह से भी जाना होता, तो वह तत्क्षण पहचान लेता कि क्या हो रहा है। । जबरदस्ती की है। इसलिए कई बार तो ऐसा हआ है कि कोई साधक अगर अकेले | ध्यान रहे कि अगर मोक्ष में आप जबरदस्ती भेज दिए जाएं, तो में इस क्षण के करीब भी आ जाता है, तो चूक जाता है। इसलिए मोक्ष नरक हो जाएगा। नरक में भी आप अपनी चेतना से और गुरु बड़ा अपरिहार्य हो जाता है। क्योंकि वह पहचान ही नहीं पाता | | अपने चुनाव से जाएं, तो नरक भी स्वर्ग हो सकता है। क्योंकि कि क्या हो रहा था। वह मंजिल के बिलकुल करीब आकर भी | | स्वतंत्रता अंतिम बात है। स्वतंत्रता से कोई नरक में भी चला जाए, रास्ता मुड़ सकता है उसका। वह एक कदम पर, और मंदिर के तो भी सुखी होगा। और परतंत्रता से कोई स्वर्ग में भी चला जाए, भीतर हो जाता, कि वह बाएं मुड़ गया। उसे पता नहीं था कि एक | | तो दुखी हो जाएगा। ही कदम पर मंदिर करीब है। __परमात्मा के पास आपको अपनी निजता से ही पहुंचना चाहिए। गुरु पास हो, तो यह भटकाव बचा सकता है। वह फिर एक | | तो गुरु इशारे कर सकता है; परोक्ष व्यवस्थाएं दे सकता है; परिस्थिति पैदा कर देगा, जिससे कदम दाएं मुड़े, बाएं न मुड़ जाए। | परिस्थितियां पैदा कर सकता है। लेकिन सीधा आपको घसीट नहीं मोड़ नहीं सकता पैर को, लेकिन विकल्प उपस्थित कर सकता है। सकता। तो कृष्ण इन अठारह अध्यायों में क्रमशः बहुत-से विकल्प मौजूद कर रहे हैं। यह एक सूक्ष्म प्रक्रिया है, जिसमें अर्जुन को वे मार्ग दिखा रहे हैं। अर्जुन कैसा चल रहा है, कहां चल रहा है, वह दूसरा प्रश्नः मुझे लगता है कि प्रमाद मुझ पर भारी उन्हें बोध है। वह जैसे-जैसे कदम उठाता है. वैसे-वैसे वे नई बातें. है। उससे हलका होने के लिए क्या किया जाए? नए तत्व और नए जीवन के द्वार उसके सामने खोलते हैं। आहिस्ता-आहिस्ता, जैसे कोई छोटे बच्चे को किसी अनजान रास्ते पर ले जा रहा हो, वैसे कृष्ण अर्जुन को ले चल रहे हैं। 7 माद के प्रति जागरूकता! और कठिनाई इसलिए बढ़ जाती है कि छोटे बच्चे का तो हाथ प्र करने से प्रमाद दूर नहीं होगा। छिप सकता है। जैसे पकड़कर भी हम ले जा सकते हैं। आत्मिक जीवन की राह पर किसी कोई आलसी आदमी बैठा है। हम आमतौर से उससे पर कोई जबरदस्ती नहीं की जा सकती। दूसरे की स्वतंत्रता को | | क्या कहें कि उसका आलस्य टूट जाए! हम कहें कि कुछ करो। परिपूर्ण रूप से सुरक्षित रखकर ही काम करना पड़ता है। ___ ध्यान रहे, आलस्य है तम; हम उसे कुछ काम में लगा सकते इसलिए गुरु का काम अति दुरूह है। अनुशासन भी देना है उसे | | हैं। लेकिन काम में लगाना होगा रज। तो तमोगुणी को रजोगुणी और स्वतंत्रता को कायम भी रखना है। तुम्हें मिटाना भी है और | | बनाना बहुत कठिन नहीं है। वह निष्क्रिय बैठा है, उसे सक्रियता में तुम्हारी गरिमा को नष्ट नहीं होने देना है। तुम्हारा गौरव जरा भी न | | जुटाया जा सकता है। असली सवाल तमोगुणी से रजोगुणी बन छू पाए, और तुम्हारा अहंकार बिलकुल नष्ट हो जाए। तुम्हारा | जाने का नहीं है। असली सवाल, चाहे आप रजोगुणी हों, चाहे कचरा तो जल जाए, लेकिन तुम्हारे सोने में कण भी न खोए। तमोगुणी हों, सत्वगुणी बनने का है। और सत्वगुणी बनने का एक इसलिए कृष्ण अर्जुन की आंतरिकता का भविष्य जानते हैं। । ही उपाय है कि आप जागरूक हों। जो भी स्थिति है, उसके प्रति
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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