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हे निष्पाप अर्जुन
आदमी साबित हुआ। हालांकि चित्रकला से उसका प्रेम कभी नहीं खोया। अपने कमरे में खूबसूरत चित्र उसने लगा रखे थे और चित्रों का पारखी था। संगीत में उसे रस था और पुराने शास्त्रीय संगीत के रिकार्ड सुनता था। वह एक चित्रकार हो सकता था। लेकिन उसकी सारी, रजोगुण की सारी शक्ति, जो चित्रकार बनने के दरवाजे से लौट गई, वह राजनीति में नियोजित हो गई।
इंग्लैंड अकेला मुल्क है आज, जहां विद्यार्थियों का बहुत उपद्रव नहीं है। सारी जमीन पर उपद्रव है। और कुल कारण इतना है कि इंग्लैंड अकेला ही मुल्क है, जहां विद्यार्थियों को अभी भी दो-तीन घंटे खेल के मैदान पर खेलना पड़ता है। रजोगुण नियोजित हो जाता है।
तीन घंटे जो बच्चा फुटबाल या वालीबाल खेलकर लौटा है, उससे आप कहो कि पत्थर मारो, कांच तोड़ो लोगों के मकान के; वह कहेगा, घर जाने दो। जो बच्चा छः घंटे बैठा रहा है कुर्सी पर और हिलने भी नहीं दिया गया। और शिक्षक कहता है, बिलकुल बुद्धवत बैठे रहना। पत्थरों को छुपाकर रखे है । यह लड़का कुछ तोड़ना चाहेगा, फेंकना चाहेगा।
फुटबाल या वालीबाल सिर्फ फेंकने, मिटाने, तोड़ने के व्यवस्थित उपाय हैं, कुछ और नहीं है। आखिर कर क्या रहा है, हाकी खेल रहा है एक लड़का । हाकी में नहीं मारने दोगे इसको लट्ठ, तो यह किसी के सिर पर मारेगा। यह जो गेंद है, यह सिर का काम कर रही है। इसका निकला जा रहा है रजोगुण।
दुनिया में विश्वविद्यालय जलाए जा रहे हैं, स्कूल तोड़े जा रहे हैं। वह तब तक जारी रहेगा, जब तक कि युवकों का रजोगुण नियोजित नहीं होता। और खतरे इसलिए बढ़ गए हैं। रजोगुण तो पहले भी था, लेकिन रजोगुण नियोजित हो जाता था।
हम अपने मुल्क में बाल-विवाह कर देते थे । रजोगुण को मौका नहीं रहता था कि जाकर कांच तोड़े, आग लगाए, बसें जलाए, कुछ उपद्रव करे। इसके पहले कि होश सम्हले एक पत्नी बांध देते थे। वह इतना बड़ा वजन है कि उससे बड़ा वजन कोई है ही नहीं । उसको ही ढोओ। उसमें सारा रजोगुण नियोजित हो जाता है। इसके पहले कि अकल में थोड़े-बहुत अंकुर आएं, बच्चे पैदा हो जाएंगे। अब लड़ने-झगड़ने का इनके पास कहीं कोई उपाय नहीं । ये बड़े शांतमूर्ति मालूम पड़ेंगे !
इस भारत में ऐसे ही लोग थे बड़ी संख्या में उसका कारण और कुछ नहीं था। यह नहीं कि लोग धार्मिक थे। कुल कारण इतना था
कि रजोगुण को सुविधा नहीं थी। लोग इसके पहले कि उपद्रव कर पाएं, उपद्रव की शक्ति किसी दिशा में संलग्न हो जाती थी ।
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अब सारी दुनिया में बच्चे जवान हो जाते हैं, न तो विवाहित किए जा रहे हैं, न उनके ऊपर कोई जिम्मेवारी है। मां-बाप सुख संपन्न हैं। उनके पास सुविधा है। तो लड़के पच्चीस और तीस साल तक आवारागर्दी कर सकते हैं। यह खतरनाक वक्त है। क्योंकि | वैज्ञानिक कहते हैं, अठारह साल में वीर्य की ऊर्जा अपने शिखर | को छू लेती है । इतनी शक्ति फिर जीवन में दुबारा नहीं होगी, जितनी अठारह साल में होगी।
अठारह साल, जब कि शक्ति अपने पूरे तूफान में है, उसका कोई नियोजन नहीं है । उसको कोई दिशा नहीं है बहने के लिए। केतली के नीचे आग जल रही है पूरी ऊर्जा से और ढक्कन बंद है। और निकालने का हम जो रास्ता बताते हैं, वह कोई रास्ता नहीं है, कि हम उनको कहते हैं, युनिवर्सिटी में पढ़ो लिखो किताब ! किताब से कोई ऊर्जा नहीं निकलती । उसमें थोड़े से जो सत्वगुण प्रधान युवक हैं, उनके लिए तो ठीक है। लेकिन बाकी का क्या हो ?
पिछले जमाने में तो जो सत्वगुण प्रधान थे, वे ही विश्वविद्यालय तक पहुंचते थे, बाकी जिंदगी में लग जाते थे। अब सभी को विश्वविद्यालय पहुंचाने की सुविधा हो गई है। सौ में कोई पांच सत्वगुण प्रधान होंगे, बाकी जो पंचानबे हैं, उनके साथ बड़ा खतरा है।
उस पंचानबे में आधे के करीब रजोगुण प्रधान हैं, जिनकी शक्ति का कोई उपयोग नहीं हो रहा है। किताब जिनकी शक्ति को नहीं पी सकती, परीक्षाएं जिनकी शक्ति को नहीं पी सकतीं। तो वे परीक्षा और किताब के माध्यम से भी उपद्रव खड़ा कर देंगे। हर परीक्षा के वक्त उपद्रव खड़ा हो जाएगा।
यह उपद्रव जो कर रहा है, वह रजोगुण प्रधान है। और बाकी जो आधे बचे तमोगुण प्रधान, वे आलसी हैं। वे कुछ भी न करेंगे। अगर युनिवर्सिटी में आग लग रही है, तो बुझाने वे जाने वाले नहीं; वे खड़े देखते रहेंगे। न वे लगाने वाले को रोकने वाले हैं, न लगने वाली आग को रोकने वाले हैं।
आज विश्वविद्यालय में तीन तरह के वर्ग हैं। एक छोटा-सा वर्ग है, जो पीड़ित है । वह सत्वगुण प्रधान है। वह पीड़ित है सबसे | ज्यादा, क्योंकि उसको काम ही करने, वह जो करना चाहता है, कि अध्ययन करे, कि शोध करे, वह कोई करने नहीं दे रहा उसको । पर वह बहुत कमजोर है। क्योंकि वह रजोगुण प्रधान नहीं है कि लड़ सके, उपद्रव कर सके। इसके बहुत पहले कि लड़ने की हालत