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________________ * गीता दर्शन भाग-7 * जब गांव से नानक चलने लगे, तो वे तो आशीर्वाद मांगने वाले | तो पी ही रहा है; सूरज पूरा का पूरा मेरा हो सकता था, उसमें वह थे ही नहीं। शोरगल मचाते. गालियां बकते नानक के पीछे गांव के बंटाव कर रहा है। तब तक आकाश में पर्णिमा का चांद निकलता बाहर तक आए थे। गांव के बाहर आकर नानक ने अपनी तरफ से है, तो वह भी प्रसन्न होता है। उतनी मेरी प्रसन्नता खो रही है। आशीर्वाद दिया कि सदा यहीं आबाद रहो। वह जो आदमी काम, क्रोध, लोभ से भरा हुआ है, उसका तब शिष्यों को मुश्किल हो गया। उन्होंने कहा कि अब तो पूछना | | मौलिक आधार जीवन का यह है कि मैं अकेला रहूं और सब मिट ही पड़ेगा। यह तो हद हो गई। कुछ भूल हो गई आपसे। पिछले | जाएं। वह नहीं मिटा पाता, यह दूसरी बात है। कोशिश पूरी कर रहा गांव में भले लोग थे, उनसे कहा, बरबाद हो जाओ! उजड़ जाओ! है। हजारों दफे उसने प्रयोग किए हैं कि वह सबको पोंछकर समाप्त और इन गुंडे-बदमाशों को कहा कि सदा आबाद रहो, खुश रहो, | कर दे, अकेला रहे। कल्याण तो उससे हो ही नहीं सकता। सदा बसे रहो! कल्याण तो उसी व्यक्ति से हो सकता है, सब रहें, चाहे मैं मिट नानक ने कहा कि भला आदमी उजड़ जाए, तो बंट जाता है। | जाऊं। मैं चाहे खो जाऊं; चाहे मेरी कोई जगह न रह जाए, लेकिन वह जहां भी जाएगा, भलेपन को ले जाएगा। वह फैल जाए सारी | | शेष सब रहे। फल और जोर से खिलें, चांद और जोर से निकले. दुनिया पर। और ये बुरे आदमी, ये इसी गांव में रहें, कहीं न जाएं।। लोग और आनंदित हों, जीवन की बांसुरी बजती रहे; मेरे होने न क्योंकि ये जहां जाएंगे, बुराई ले जाएंगे। होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। अगर मैं बाधा बनता हूं, तो हट लेकिन बंटना बुरे आदमी का स्वभाव ही नहीं होता, अच्छा है | | जाऊं। अगर सहयोग बन सकता हूं, तो ही रहूं। यह। वह सिकुड़ता है, यह बड़ी कृपा है। भला आदमी बंटता है। | लेकिन ये तीन द्वार जब बंद हो जाएं, तभी कल्याण का जीवन बांटना उसका स्वभाव है। दान उसके जीवन की व्यवस्था है। यह शुरू होता है। सवाल नहीं कि वह कुछ देता है कि नहीं देता है; यह उसके यह जो शब्द कल्याण है, मंगल है, यह बड़ा समझने जैसा है। रहने-होने का ढंग है कि वह साझेदारी करता है, वह शेयर करता है। | इसका अर्थ दूसरे का सुख है। और दूसरे के सुख को अगर आप ये जो तीन हैं, काम, क्रोध, लोभ, ये सिकोड़ देते हैं। और सोचना भी शुरू कर दें...। सिकुड़ा हुआ आदमी नरक बन जाता है।। हम तो कंसीडर भी नहीं करते। दूसरा है, यह भी विचार नहीं ये अधोगति में ले जाने वाले हैं, इन तीनों को त्याग देना चाहिए। करते। दूसरे के जीवन में भी सुख की कोई संभावना हो सकती है, क्योंकि हे अर्जुन, इन तीनों नरक के द्वारों से मुक्त हुआ पुरुष अपने | | दूसरे को भी सुख मिलना चाहिए, यह तो हमारे मन में कभी कौंधता कल्याण का आचरण करता है, इससे वह परम गति को जाता है ही नहीं। अर्थात मुझको प्राप्त होता है। महावीर ने कहा है, जैसे तुम जीना चाहते हो, वैसे ही सभी जीना इन तीन से जो मुक्त हुआ पुरुष है, वही केवल कल्याण का | | चाहते हैं। जैसे तुम सुख पाना चाहते हो, वैसे सभी सुख पाना आचरण करता है। कल्याण का अर्थ है, जिससे हित हो, मंगल हो; | | चाहते हैं। तो जो तुम अपने लिए चाहते हो, वह सबके लिए चाहो। जिससे आनंद बढ़े, फैले। __ जीसस ने कहा है, जो तू न चाहता हो कि लोग तेरे प्रति करें, वह लेकिन जो आदमी कामवासना से भरा है, लोभ और क्रोध से | | तू कभी भूलकर भी दूसरे के प्रति मत करना। यह कल्याण का सूत्र भरा है, उसका आचरण कल्याण का नहीं हो सकता। उसका | हुआ। और जो तू चाहता हो कि लोग तेरे प्रति करें, वही तू उनके प्रति आचरण अहंकार-केंद्रित होगा। वह अपने लिए सबको मिटाने की | करना। क्योंकि जो तेरे भीतर जीवन की छिपी चाह है, वही दूसरों के कोशिश करेगा। वह चारों तरफ विध्वंस फैलाएगा। उसकी | | भीतर भी जीवन की छिपी चाह है। और तेरे भीतर जो जीवन है और आकांक्षा यही है कि सब मिट जाएं, मैं अकेला रहूं। क्योंकि जब | | दूसरे के भीतर जो जीवन है, वह एक ही का विस्तार है। तक दूसरा है, तब तक मैं चाहे बाटूं या न बांटूं, वह इस जगत की कल्याण का अर्थ है कि मेरे भीतर और आपके भीतर जो है, वह संपत्ति में से बंटाव तो कर ही रहा है। जब तक दूसरा है, कम से | एक ही चेतना का फैलाव है। और अगर मैं आपका सुख चाहता कम श्वास तो ले ही रहा है। तो इतनी आक्सीजन जिस पर मैं कब्जा | हूं, तो वस्तुतः यही मैं अपने सुख का आधार रख रहा हूं। और अगर कर सकता था. वह कब्जा कर रहा है। तब तक सरज की रोशनी| मैं आपका दुख चाहता हूं, तो मैं अपने ही हाथ-पैर तोड़ रहा हूं, 412|
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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