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*गीता दर्शन भाग-7 *
जो भी हम भोग रहे हैं, वह हमारे कृत्यों का जोड़ है। लेकिन | रे परमात्मा, एक रुपया थैली का तूने काट लिया! उसमें तुम बदलाहट कर दो। दो और दो तो चार होते हैं, लेकिन उसने निन्यानबे स्वीकार कर लिए। हम चाहते हैं, या तो तुम पांच करो या तुम तीन करो; चार भर न | हमारी बनाई हुई प्रार्थना; हमारी प्रार्थना; और हम हिसाब लगा हो पाएं। हमारी सारी प्रार्थनाएं गणित को डगमगाने के लिए हैं, रहे हैं। वहां कोई है या नहीं, इससे बहुत प्रयोजन नहीं है। इसलिए नियम को तोड़ने के लिए हैं। अन्यथा प्रार्थना का हमारा क्या अगर आपको पक्का हो जाए कि परमात्मा नहीं है, तो आपकी प्रयोजन है?
प्रार्थना टूट जाएगी, यह मैं जानता हूं। इसलिए प्रश्न सार्थक है। इस प्रार्थना की अगर आप धारणा रखते हैं, तब तो बिना | लेकिन जो प्रार्थना परमात्मा के न होने से टूट जाती है, वह परमात्मा के प्रार्थना व्यर्थ हो जाएगी। क्योंकि अगर वहां कोई है ही | | प्रार्थना थी ही नहीं। प्रार्थना का कोई भी संबंध परमात्मा को बदलने नहीं, सिंहासन खाली है, तो आप सिर पटकते रहो, बेकार है। आप से नहीं है; प्रार्थना आपको बदलने की कीमिया है। जब आप प्रार्थना तभी तक सिर पटक सकते हो, जब तक भरोसा रहे कि सिंहासन | | करते हैं, तो वहां आकाश में बैठा हुआ परमात्मा नहीं रूपांतरित पर कोई है, तो शायद हमारे सिर पटकने से बदलेगा। होता। जब आप प्रार्थना करते हैं, तो उस प्रार्थना करने में आप
और हम अपने मन को समझा लेते हैं, अगर कभी बदलाहट हो बदलते हैं। जाती है। हमारी प्रार्थनाओं के कारण कोई बदलाहट नहीं होती, न | तो प्रार्थना एक प्रयोग है, जिस प्रयोग से आप अपने अहंकार कोई परमात्मा बदलाहट करने वाला है। लेकिन जीवन के अनंत | को तोड़ते हैं, अपने को झुकाते हैं। वहां कोई नहीं बैठा है, जिसके संयोगों में कभी-कभी हमारी प्रार्थना संयोगों से मेल खाती है, आगे आप अपने को झुकाते हैं। झुकने की घटना का परिणाम है। बदलाहट हो जाती है, तो हम उसे धन्यवाद देते हैं। अगर बदलाहट | आप झुकते हैं। आपको कठिन है बिना परमात्मा के, इसलिए कोई नहीं होती, तो हम नाराजगी जाहिर करते हैं।
हर्जा नहीं। आप मानते रहें कि परमात्मा है, लेकिन असली जो मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं कि हम तो छोड़ने की स्थिति | घटना घटती है, वह आपके झुकने से घटती है। में आ गए थे, कि यह धर्म-वर्म सब व्यर्थ है। लेकिन प्रार्थना पूरी आप झुकना सीखते हैं, किसी के सामने समर्पित होना सीखते हो गई, तब से आस्था बढ़ गई। मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते | हैं। कहीं आपका माथा झुकता है; जो सदा अकड़ा हुआ है, वह हैं, हम थक गए प्रार्थना कर-करके, कभी कोई फल न आया; कहीं जाकर झुकता है। कहीं आप घुटने के बल छोटे बच्चे की तरह आस्था उठ गई।
हो जाते हैं; कहीं आप रोने लगते हैं, आंखों से आंसू बहने लगते आस्था किसी की भी नहीं है। प्रार्थना पूरी हो जाए, तो आस्था हैं, हलके हो जाते हैं। और मैं कर सकता हूं, यह धारणा प्रार्थना से जमती है। प्रार्थना न पूरी हो, तो आस्था उखड़ जाती है। टूटती है। तू करेगा! तू करेगा सवाल नहीं है; मैं कर सकता हूं, यह
मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन रोज सुबह प्रार्थना करता था | | धारणा टूटती है। मैं नहीं कर सकूँगा, तभी हम प्रार्थना करते हैं। काफी जोर से। परमात्मा सुनता था कि नहीं, पड़ोस के लोग सुन | मुझसे नहीं हो सकेगा। लेते थे कि सौ रुपए से कम न लूंगा; निन्यानबे भी देगा, नहीं लूंगा। अगर इसके गहरे अर्थ को समझें, तो इसका अर्थ है, जहां भी जब भी दे, सौ पूरे देना।
आपको समझ में आ जाता है कि कर्ता मैं नहीं हूं, वहीं प्रार्थना शुरू आखिर पड़ोसी सुनते-सुनते परेशान हो गए। एक पड़ोसी ने तय | हो जाती है। यह कर्तृत्व को खोने की तरकीब है। वह जो कर्तृत्व है किया कि इसको एक दफा निन्यानबे रुपए देकर देखें भी तो सही। कि मैं करता हं. वह जो अहंकार है, वह जो मेरी अस्मिता है कि वह कहता है कि निन्यानबे कभी न लूंगा, सौ ही लूंगा। उसने एक करने वाला मैं हूं, उसके टूटने का नाम प्रार्थना है। दिन सुबह जैसे ही मुल्ला प्रार्थना कर रहा था, एक निन्यानबे की | जब आप घुटने टेक देते हैं, सिर झुका देते हैं और कहते हैं, थैली उसके झोपड़े के आंगन में फेंक दी।
| मुझसे कुछ भी न होगा, अब तू ही कर, मेरे बस के बाहर है। तू ही मुल्ला ने पहला काम रुपए गिनने का किया। वह आधी प्रार्थना | | उठा; अब मुझसे नहीं चलना हो सकेगा; तू ही चला। यह उससे आधी रह गई; वह पूरी नहीं कर पाया, नमाज पूरी नहीं हो सकी। | इसका कोई संबंध नहीं है; वहां कोई है भी नहीं, जो इसको सुन रहा उसने जल्दी से पहले गिनती की। निन्यानबे पाकर उसने कहा, वाह | है। लेकिन यह कहने वाला हृदय अपने अहंकार को विसर्जित कर
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