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________________ गीता दर्शन भाग-7 * से उससे छुटकारा होता है...। मृत्यु कामवासना का विरोध है। जन्म कामवासना से होता है, क्षुधा मर गई है, लेकिन और भी गहरी वासना है कि न मरे।। | मृत्यु कामवासना का विरोध है। जिन साधना-प्रक्रियाओं ने—जैसे वासना क्षीण हो गई है, लेकिन भीतर से मन कह रहा है, इसे | | बुद्ध की साधना-प्रक्रिया ने-कामवासना पर अनूठे प्रयोग किए जिलाए रखो, कुछ उपाय करो। हैं, तो मृत्यु को उन्होंने साधना का आधार बनाया। अक्सर ऐसा हो जाता है कि व्यभिचारियों की कामवासना | बुद्ध जब किसी व्यक्ति को ब्रह्मचर्य में दीक्षा देते थे, तो उससे शिथिल हो जाती है और ब्रह्मचारियों की नहीं शिथिल हो पाती। | कहते थे, तीन महीने पहले मरघट पर तू मृत्यु का ध्यान कर। क्योंकि व्यभिचारी तो अति कर देते हैं, थक जाते हैं। | एकदम से तो सुनकर हमें हैरानी होगी कि ब्रह्मचर्य से और मरघट गुरजिएफ ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि काकेशस में पैदा | और मृत्यु का क्या लेना-देना? होने वाला एक खास फल उसे बचपन में बहुत प्रिय था। इतना ___ लेकिन बुद्ध कहते कि तीन महीने तू मरघट पर सुबह से सांझ, ज्यादा प्रिय था कि उसकी वजह से वह अक्सर बीमार पड़ जाता | रात, जब भी मुरदे जलते हों, बैठा रह। तेरा वही ध्यान-स्थल है। था। इतना ज्यादा खा लेता था। और वह नुकसानदायक भी था, लाशें आएंगी-बच्चे आएंगे, जवान-बूढ़े, सुंदर-कुरूप, स्वस्थऔर बहुत भारी और वजनी था। अस्वस्थ-सब तरह के लोग आएंगे। बस, तू उनको देखता रह। उसने लिखा है कि मेरे दादा ने मुझे कहा कि इससे छूटने का एक | उनकी जलती चिताएं, उनकी टूटती हड्डियां, उनके गिरते सिर, ही उपाय है : एक दिन तू जितना खा सके आखिरी दम तक, मौत उनका शरीर हो गया राख, सब खो गया धुएं में, उसे तू देखता रह। करीब मालूम होने लगे, तब तक तू इसको खाता जा। गुरजिएफ ने तीन महीने जलती हुई चिताओं पर ध्यान कर। . कहा, इससे कैसे छुटकारा होगा! बल्कि उसे रस भी आया कि बात और मुझे लगता है, यह बड़ा मनोवैज्ञानिक प्रयोग है। क्योंकि तो बड़ी गजब की है। क्योंकि घर में सभी उसे रोकते थे अब तक | | मृत्यु अगर बहुत साफ हो जाए, तो कामवासना तत्क्षण खो जाएगी। कि इसे मत खाओ, इसे मत खाओ, यह ठीक नहीं है, इससे | इसे आप ऐसा समझें कि एक सुंदरतम स्त्री खड़ी हो और आप नुकसान है। | वासना से भरे खड़े हों, उसी वक्त एक तार आए कि राज्य ने तय लेकिन दादा ने जब कहा, तो फिर वह बड़ी मात्रा में फल जाकर | किया है कि आज सांझ आपको फांसी लगा देंगे। संदर स्त्री तत्क्षण बाजार से ले आया। दादा उसके सामने बैठ गए और कहा कि तू | आंखों से खो जाएगी। शरीर से वासना का प्रवाह बंद हो जाएगा। खा जितना तुझे खाना है। वह खाता गया। वह थक गया और एक फिर कोई कितना ही समझाए, आपका रस अब वासना में नहीं रह कौर भी भीतर ले जाने का उपाय न रहा। लेकिन दादा ने कहा, अभी जाएगा। सांझ मौत आ रही है! भी तू थोड़ा खा सकता है। तू और खा ले। तो जिस साधक को कामवासना से मुक्त होना हो, उसे समझना फिर उसे उल्टियां होनी शुरू हुईं, दस्त लगने शुरू हुए। वह कोई | चाहिए कि यह क्षण आखिरी है, मौत दूसरे क्षण हो सकती है। और तीन महीने बीमार रहा। लेकिन वह कहता है, उसके बाद उस फल | | सच भी यही है, मौत दूसरे क्षण हो सकती है। जो क्षण मैं जी रहा में मेरा कोई रस नहीं रह गया। हूं, यह आखिरी है, मौत आने वाली है, इस शरीर से मैं टूट जाने कामवासना से मुक्त होने के लिए दमन तो कतई मार्ग नहीं है; | वाला हूँ। लेकिन कामवासना इस भांति हो जाए कि आप उससे पीड़ित हो | 1. जितनी मौत की धारणा गहरी हो जाए, और जितना यह शरीर मैं उठे, वह दुख बन जाए, विषाद हो जाए, तो शायद जागरण आए। नहीं हूं, यह प्रतीति स्पष्ट हो जाए, उतने ही आप कामवासना से लेकिन उतने से भी कुछ न होगा। क्योंकि फल का छूट जाना मुक्त होंगे। यह मुक्ति न तो दमन से फलित होती है, न भोग से। एक बात है, कामवासना का छूटना बड़ी अलग बात है। फिर थोड़े यह मुक्ति समझ से, अंडरस्टैंडिंग से फलित होती है। दिन में वापस लौट आएगी। दबाएं तो बनी रहेगी, भोगें तो थोड़े पर यह स्मरण रखें कि कामवासना साधारण इंद्रिय नहीं है। यह दिन शिथिल हो जाएंगे. फिर वापस लौट आएगी। कहना उचित होगा कि सभी इंद्रियों का केंद्र कामेंद्रिय है। आंखें भी कामवासना से मुक्त होना हो, तो दो बातें मैंने कहीं। एक तो मैं | | इसीलिए देखती हैं कि कामवासना आंखों के द्वारा रूप को खोज शरीर नहीं हूं, यह दृष्टि थिर हो। दूसरा, जीवन की मेरी कामना नहीं। रही है। कान इसीलिए सुनते हैं कि कामवासना कानों के द्वारा ध्वनि 388
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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