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________________ * ऊर्ध्वगमन और अधोगमन * यह बड़ा समझने जैसा है। शाह फारूख को भी लगा कि यह आदमी देखकर चकित हो रहा हमेशा आसुरी संपदा वाला व्यक्ति दूसरों को नष्ट करने की है, हैरान हो रहा है। तो उसने कहा, चकित होने की कोई बात नहीं कामना से भरा रहता है. कैसे दसरों को मिटा दं। क्योंकि वह है: ये सब मेरे नौकर हैं और मेरी आज्ञा मानना उनका फर्ज है। और सोचता है, जब कोई भी न होगा, तब मैं परिपूर्ण हो जाऊंगा। अगर | शाह फारूख ने अपने प्रधानमंत्री से, जो उसके साथ ताश खेल रहा इस पृथ्वी पर कोई न हो, तो मैं ही सम्राट होऊंगा। तो जो भी मेरे था, उससे कहा कि धोखा देने की कोई जरूरत नहीं, बस हार विपरीत है, उसको मिटा दं; जो भी मुझसे अन्यथा है, उसको नष्ट जाओ। उसी वक्त उसने पत्ते डाल दिए और हार गया। कर दूं ताकि मेरा साम्राज्य अबाध हो। यह जो आसुरी संपदा वाला व्यक्ति है, दुश्मनों को मिटा डालता दैवी संपदा का व्यक्ति दूसरे को मिटाने का विचार नहीं करता। | है, क्योंकि वे झुकने को तैयार नहीं होते। मित्रों को पोंछ डालता है, दैवी संपदा का व्यक्ति अपने को मिटाने का विचार करता है। इस | | उनके जीवन में कुछ सत्व नहीं बचने देता। आसुरी संपदा वाले फर्क को ठीक से समझ लें। क्योंकि वह कहता है, जब तक मैं हूं, व्यक्ति के पास बैठकर आपको लगेगा कि वह आपको चूस रहा तभी तक कष्ट रहेगा। जब मैं नहीं रहूंगा, शून्य हो जाऊंगा, तब है, नष्ट कर रहा है। आनंद हो जाएगा। दैवी संपदा वाले व्यक्ति के पास बैठकर आपको लगेगा कि वह दैवी संपदा के व्यक्ति का साम्राज्य उसके अहंकार के खो जाने | आपको जीवन दे रहा है। आपकी कुम्हलाई हुई जिंदगी फिर से ताजी पर उपलब्ध होता है। आसुरी संपदा के व्यक्ति के साम्राज्य की हो रही है। दैवी संपदा वाले व्यक्ति के पास बैठकर आपको लगेगा. आकांक्षा दूसरों को मिटाने में है, कितना मैं दूसरों को मिटा दूं। आपका भी मूल्य है; आप भी स्वीकार किए गए हैं, स्वागत है। आसुरी संपदा का व्यक्ति आपको जिंदा छोड़ सकता है, अगर | आप भी एक धन्यता हैं। छोटे से छोटे व्यक्ति को भी दैवी संपदा आप उसके सामने मुरदे की भांति हो जाएं। आसुरी संपदा का | | वाले व्यक्ति के पास बैठकर लगेगा, उसका कोई मूल्य है; जगत व्यक्ति विवाह करे, तो पत्नी को वस्तु बना देगा; वह मार डालेगा | में उसका भी कोई अर्थ है। वह व्यर्थ नहीं है, बोझ नहीं है। बिलकुल। उसको इस हालत में कर देगा कि उसमें कोई जीवन न | आसुरी संपदा वाले व्यक्ति के पास श्रेष्ठ से श्रेष्ठ व्यक्ति को बचे। वह कहे रात, तो रात। वह कहे दिन, तो दिन। आसुरी संपदा | भी बैठकर लगेगा, उसका जीवन तुच्छ है। जिसके पास पहुंचकर की स्त्री हो, तो पति को बिलकुल मिट्टी कर देगी। उसको छाया की आपको ऐसा लगे कि आपको तुच्छ किया जा रहा है, तो समझना भांति चलाना चाहेगी। आसुरी संपदा का पिता हो, तो बेटों को पोंछ कि आसुरी संपदा काम कर रही है। अगर आप दूसरों को तुच्छ देगा। उनको बड़ा करेगा, लेकिन ऐसे, जैसे वे मुरदे हैं। उनकी कोई करने की वृत्ति से भरे हों, तो समझना कि आप आसुरी संपदा से स्वतंत्रता, उसकी कोई गरिमा नहीं बचने देगा। भरे हैं। आसुरी संपदा का व्यक्ति दुश्मनों को मार डालता है। मित्रों को दूसरे की गरिमा और गौरव को स्वीकार करने का आपका मन मरे हुए कर देता है। उससे मित्रता रखनी हो तो मुरदा होना जरूरी है। | हो, दूसरे का निजी मूल्य है। प्रत्येक व्यक्ति अपने आप में साध्य मैं आज ही इजिप्त के शाह फारूख के जीवन के संबंध में कुछ | है, वह कोई साधन नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति अपने आप में परम पढ़ रहा था। एक व्यक्ति ने संस्मरण लिखा है। वह व्यक्ति | मूल्य है, अल्टिमेट वैल्यू है। अगर दूसरे व्यक्ति के प्रति आपका जड़ी-बूटियों के द्वारा चिकित्सा करता है। तो शाह फारूख ने उसे | ऐसा सदभाव हो, तो आप में दैवी संपदा का जन्म होगा। अपने इलाज के लिए बुलाया था। जब वह पहुंचा, तो शाह फारूख ___ जर्मनी के बहुत बड़े विचारक इमेनुएल कांट ने अपने नीति-शास्त्र अपने मंत्रियों के साथ ताश खेल रहा था, जुआ खेल रहा था। | का एक आधार-स्तंभ रखा है। और वह आधार-स्तंभ है कि दूसरे उसका प्रधानमंत्री, उसके और मंत्री। यह व्यक्ति भी बैठकर | व्यक्ति को साधन की तरह मत देखो, साध्य की तरह देखो। चुपचाप देखता रहा। क्योंकि जब फारूख निपट ले, तब बात हो! दूसरा व्यक्ति आपका साधन नहीं है कि आप उसका उपयोग कर यह देखकर हैरान हुआ कि चाहे पत्ते मंत्रियों के पास अच्छे हों, | लो। दूसरा व्यक्ति अपने आप में साध्य है, उसका उपयोग करना तो भी शाह फारूख ही जीतता है। चाहे उसके पत्तों में कोई जानन गलत है। उसका उपयोग करने का ह हुआ कि आप उससे हो, तो भी वही जीतता है। वस्तु की तरह व्यवहार कर रहे हैं। लेकिन हमारी हालत यह है कि 377]
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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