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* शोषण या साधना *
साधना-पथ निर्मित होगा। लेकिन अगर सभी कुछ असत्य है; कुछ है, कोई मूल्य नहीं है, इस बात की घोषणा करने के लिए आसुरी पाने योग्य नहीं, कछ खोने योग्य नहीं: बरा आदमी भी, भला संपदा वाला व्यक्ति कहता है, जगत झठा है।
आदमी भी, असाधु, साधु, संत, अज्ञानी या ज्ञानी सब बराबर दैवी संपदा वाला व्यक्ति भी जगत को मिथ्या कहता है। यहां हैं—फिर कोई भेद नहीं है।
यह बात खयाल में लेनी जरूरी है कि कभी-कभी हमारे एक से और अगर बुरे और भले का भेद मिट जाए, तो आसुरी संपदा वक्तव्य भी बड़े भिन्न अर्थ रखते हैं। वक्तव्य का बहुत कम मूल्य वाले व्यक्ति को जो सुख मिलता है, वह किसी और तरह से नहीं | है। वक्तव्य कौन देता है, इसी का मूल्य ज्यादा है। वही वक्तव्य मिलता। क्योंकि आसुरी संपदा वाले व्यक्ति की यही पीड़ा है कि | राम के मुंह से अलग अर्थ रखेगा; वही वक्तव्य रावण के मुंह से कहीं ऐसा न हो कि मैं जो कर रहा हूं, वह गलत हो। कहीं ऐसा न | अलग अर्थ रखेगा। वक्तव्य बिलकुल एक जैसे हो सकते हैं, हो कि जिस धारा के मैं विपरीत चल रहा हूं, उस धारा में ही सत्य | | लेकिन वक्तव्य के पीछे नजर क्या है? छिपा हो! कहीं ऐसा न हो कि प्रार्थना में, पूजा में, परमात्मा में कोई अगर राम कहते हैं, जगत मिथ्या है, तो इसका अर्थ यह है कि सत्य छिपा हो! मैं जैसा जीवन को चला रहा हूं, यह अगर असत्य | इस पर रुको मत; सत्य कहीं और है, उसे खोजो। रावण अगर कहे, है, तो फिर मैं कुछ खो रहा हूं।
जगत मिथ्या है, तो वह यह कहता है कि कहीं जाने की कोई जरूरत लेकिन अगर सभी कुछ असत्य है, तो फिर खोने-पाने का कोई । नहीं, सत्य है ही नहीं, इसलिए यहां जो मिला है, उसे भोग लो। सवाल नहीं है। तब महावीर कुछ पा नहीं रहे हैं, बुद्ध को कुछ मिल | | यह क्षणभर का भोग है, न इसके पीछे कुछ है, न इसके आगे कुछ नहीं रहा है, वे भी भ्रम में हैं। जो धन कमाकर इकट्ठा कर रहा है, | | है। और परिणाम की बिलकुल चिंता मत करो। क्योंकि परिणाम वह भी भ्रम में है। वह जो स्त्रियों के पीछे दौड़ रहा है, वह भी भ्रम | | केवल सत्य जगत में ही घटित हो सकते हैं; असत्य जगत में कोई में है। जो परमात्मा के पीछे दौड़ रहा है, वह भी भ्रम में है। परिणाम घटित नहीं होते।
आसुरी संपदा वाला यह कहता है कि जो भी यहां मंजिल खोज | ___ मैंने सुना है, एक आदमी ने रात स्वप्न देखा। फिर सुबह वह जब रहा है, जो भी यहां जीवन में निहित किसी प्रयोजन की तलाश कर बाजार की तरफ चला, तो बड़ा उदास था। किसी मित्र ने उसे पूछा रहा है, जो भी सोचता है कि यहां कोई सत्य मिल जाएगा, अमृत | कि इतने उदास हो, बात क्या है? उसने कहा, मैंने एक स्वप्न देखा मिल जाएगा, जीवन मिल जाएगा, कोई परम उपलब्धि होगी, कोई है। और स्वप्न में मैंने देखा कि मुझे बीस हजार रुपए पड़े हुए रास्ते मोक्ष मिल जाएगा, वह भ्रांति में है। यह पूरा जगत असत्य है। यहां पर मिल गए हैं। तो मित्र ने कहा, इसमें भी उदास होने की क्या बात कुछ पाने जैसा नहीं है।
है! यह तो सपना है। सपने के रुपयों की क्या चिंता करनी, क्या एक बार यह साफ हो जाए कि सभी कुछ असत्य है, तो जीवन उदासी! उस आदमी ने कहा, उससे मैं परेशान नहीं हूं। मैंने यह में साधना का कोई अर्थ नहीं रह जाता। साधना में अर्थ आता है | पत्नी को बता दिया और वह सुबह से ही रो-पीट रही है। वह कहती तभी, जब जीवन में कुछ चुनने को हो। कुछ गलत हो, जो छोड़ा है, उसी वक्त बैंक में जमा क्यों न कर दिए? जा सके; कुछ सही हो, जो पकड़ा जा सके। कोई दिशा भ्रांत हो, | स्वप्न में भी मोह तो हमारा पकड़ता है। वह जो झूठ है, उसमें जिस तरफ पीठ की जा सके कोई दिशा सही हो, जिस तरफ मुख भी आसक्ति बनती है। वह जो नहीं है, उसको भी हम सम्हाल लेना किया जा सके। कहीं पहुंचने की कोई मंजिल हो, कोई गंतव्य हो, चाहते हैं। कोई तारा हो–कितने ही दूर-लेकिन जिस तरफ हम चल सकें। आसुरी संपदा वाला व्यक्ति यह कह रहा है कि ये स्वप्न में जो
रुपए मिले हैं, इनको जमा कर ही देना। क्योंकि ये रुपए भी झूठ हैं, उपाय नहीं है। तुम यहां हो एक दुर्घटना की तरह। यह एक जमा करना भी झूठ है, बैंक भी झूठ है, जमा करने वाला भी झूठ आकस्मिक घटना है। जगत को न कोई चला रहा है, न कोई जगत | | है। स्वप्न ही झूठ नहीं है, जिसने स्वप्न देखा, वह भी झूठ है। जमा को सोच रहा है, न जगत के पीछे कोई चेतना है। जगत एक करने का मजा ले लेना। यद्यपि वह झूठ है; लेकिन नहीं जमा कर सांयोगिक घटना है। सांयोगिक घटना का अर्थ यह होता है कि पाए, उसका दुख लेने की बजाय बेहतर है। दोनों झूठ हैं। यहां सुख इसमें कुछ भी प्रयोजन खोजना व्यर्थ है। प्रयोजन नहीं है, अर्थ नहीं भी झूठ है, दुख भी झूठ है। इसलिए क्षणभर की बात है; जो
आसी
यहां चलन
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