SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 378
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * गीता दर्शन भाग-7 * काममाश्रित्य दुष्पूरं दम्भमानमदान्विताः । सत्य नहीं है, इस जगत से ज्यादा सत्यतर कुछ और है। और उस मोहाद्गृहीत्वासद्ग्राहान्प्रवर्तन्तेऽशुचिव्रताः ।। १० ।। सत्यतर की खोज की तरफ हम अग्रसर हो सकें, इसलिए वे इस चिन्तामपरिमेयां च प्रलयान्तामुपाश्रिताः । जगत को झूठा कहते हैं। इस जगत को झूठा सिद्ध करने का इतना कामोपभोगपरमा एतावदिति निश्चिताः ।। ११ ।। | ही प्रयोजन है, ताकि हम इसी को सत्य मानकर इसी की खोज में न ___ आशापाशशतैर्बद्धाः कामक्रोधपरायणाः । | उलझ जाएं। सत्य कहीं और छिपा है। और इसे हम असत्य ईहन्ते कामभोगार्थमन्यायेनार्थसंचयान् ।। १२ ।। | समझेंगे, तो ही उस सत्य की खोज में जा सकेंगे। और वे मनुष्य दंभ, मान और मद से युक्त हुए किसी प्रकार लेकिन कृष्ण यहां कह रहे हैं कि आसुरी संपदा वाले लोग इस भी न पूर्ण होने वाली कामनाओं का आसरा लेकर तथा मोह - जगत को झूठा कहते हैं। इस वक्तव्य का प्रयोजन बिलकुल दूसरा से मिथ्या सिद्धांतों को ग्रहण करके भ्रष्ट आचरणों से युक्त | है। आसुरी संपदा वाले लोग इस जगत को झूठा इसलिए नहीं कहते हुए संसार में वर्तते हैं। कि कोई और जगत है, जो सत्य है। वे कहते हैं, सत्य है ही नहीं। तथा वे मरणपर्यंत रहने वाली अनंत चिंताओं को आश्रय इसलिए जो भी है, वह झूठ है। इस फर्क को ठीक से समझ लें। किए हुए और विषय-भोगों को भोगने के लिए तत्पर हुए, शंकर कहते हैं, यह जगत मिथ्या है, असत्य है, माया है। इतना मात्र ही आनंद है, ऐसा मानने वाले हैं। क्योंकि सत्य कहीं और है और उस सत्य की तुलना में यह झूठा है। इसलिए आशारूप सैकड़ों फांसियों से बंधे हुए और आसुरी संपदा वाले लोग कहते हैं, यह संसार झूठा है, क्योंकि सत्य काम-क्रोध के परायण हुए विषय-भोगों की पूर्ति के लिए कुछ है ही नहीं। यह किसी तुलना में असत्य नहीं है, क्योंकि सत्य अन्यायपूर्वक धनादिक बहुत-से पदार्थों को संग्रह करने की । है ही नहीं है, इसलिए जो भी है, वह असत्य है। उनका ऐसा मानने चेष्टा करते हैं। और कहने का प्रयोजन समझने जैसा है। __ जगत को असत्य अगर कह दिया जाए, और कोई सत्य हो न, तो फिर जीवन में कोई मूल्य, जीवन में कोई लक्ष्य, कोई गंतव्य नहीं पहले कुछ प्रश्न। रह जाता; फिर बुरे और भले का कोई भेद नहीं रह जाता। . पहला प्रश्नः कल के सूत्र में कहा गया कि आसुरी | आप स्वप्न में देखें कि आप साधु हैं या स्वप्न में देखें कि असाधु संपदा वाले कहते हैं कि जगत आश्चर्यरहित है और हैं, क्या फर्क पड़ता है। दोनों ही स्वप्न हैं। स्वप्न में किसी की हत्या सर्वथा झूठा है। विज्ञान यह अवश्य सोचता था कि करें या स्वप्न में किसी को बचाएं, क्या फर्क पड़ता है। दोनों ही जगत में कुछ रहस्य नहीं है, लेकिन यह तो वह नहीं | स्वप्न हैं। दो स्वप्नों के बीच कोई मूल्य का भेद नहीं हो सकता। कहता कि जगत झूठा है। इसे समझाएं। सत्य और स्वप्न के बीच मूल्य का भेद हो सकता है। लेकिन अगर दोनों ही स्वप्न हैं, तो फिर कोई भी भेद नहीं। आसुरी संपदा वाला व्यक्ति मानता है, यह सब असत्य है। सब 7 सुरी संपदा वाले लोग जगत को रहस्यशून्य और झूठा | | असत्य का उसके कहने का प्रयोजन इतना ही है कि यह जगत एक सा मानते हैं, ऐसा कहने का कृष्ण का प्रयोजन काफी गहरे संयोग है। यह जगत एक रचना-प्रक्रिया नहीं है। इस जगत के पीछे से समझेंगे, तो ही समझ में आ सकेगा। साधारणतः कोई प्रयोजन अंतर्निहित नहीं है। यह जगत कहीं जा नहीं रहा है। तो धार्मिक, दैवी संपदा वाले पुरुष जगत को माया कहते हैं, जगत इस जगत की कोई मंजिल नहीं है। हम सिर्फ दुर्घटनाएं हैं। न कुछ को झूठा कहते हैं। इसलिए बात थोड़ी उलझी हुई है। लेकिन दोनों | पाने को है यहां, न कुछ खोने को है। हमारे होने का कोई मूल्य नहीं के प्रयोजन अलग हैं। | है। हमारा होना मीनिंगलेस है. सर्वथा मल्यरहित है। __ शंकर या दूसरे अद्वैतवादी जब जगत को माया या असत्य कहते अगर जगत में थोड़ा भी सत्य है, तो मूल्य पैदा हो जाएगा; तब हैं, तो उनका प्रयोजन केवल इतना ही है कि इस जगत से भी | चुनाव करना होगा, असत्य को छोड़ना होगा, सत्य को पाना सत्यतर कुछ और है। यह एक सापेक्ष वक्तव्य है। यह जगत ही | | होगा। फिर असत्य और सत्य के बीच हमें यात्रा करनी पड़ेगी; | 3501
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy