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________________ * गीता दर्शन भाग-7 * हवाएं ले जाएं. जो सझ जाए वासना को. जो भीतर का धक्का आ| | के करीब हो गया। और सूरज ने अपनी किरणों का जाल फेंक दिया जाए, या परिस्थिति जिस तरफ झुका दे, या लोभ जिस तरफ | जगत पर। और जब किरणों का जाल जगत पर सूरज फेंक देता है, आकर्षित कर ले, बस वह वैसा दौड़ता चला जाता है। तो संध्या होने में ज्यादा देर नहीं। जैसे आपके सामने एक सितार रखा हो और आप उसको ठोंकते वह जो आसुरी संपदा वाला व्यक्ति है, उसे मृत्यु लगती है, बस जाएं, तार खींचते जाएं; और आपको सितार के शास्त्र का कोई भी | आ रही है। क्षणभर हाथ में है, इसे भोग लूं, निचोड़ लूं, पी लूं। ज्ञान न हो, संगीत की कोई प्रतीति न हो, दो स्वरों के बीच जोड़ का | | भोग ही लक्ष्य हो जाता है; योग बिलकुल खो जाता है। कोई अनुभव न हो, स्वरों का एक प्रवाह बनाने की कोई कला न | ध्यान रहे, योग का अर्थ ही है, दो मनकों को जोड़ देना। जब हो, स्वरों की सरिता निर्मित न कर सकते हों, तो आप सिर्फ एक | जीवन के सारे मनके जुड़ जाएं, तो आप योगी हैं। और जीवन के उपद्रव मचाएंगे। शोरगुल होगा बहुत, संगीत नहीं हो सकता। मनकों का ढेर लगा हो, कोई धागा न हो जोड़ने वाला, तो आप क्योंकि संगीत तो सभी सुरों को मनके की तरह जब आप धागे में | | भोगी हैं। बांधते हैं, तब पैदा होता है। । भोगी और योगी दोनों के पास मनके तो बराबर होते हैं। लेकिन दैवी संपदा वाला व्यक्ति जीवन में संगीत निर्मित करने की चेष्टा योगी ने एक संगति बना ली. योगी ने सब मनकों को जोड डाला। में लगा रहता है। वह जो काम भी करता है, सोचता है कि यह मेरे उसके सब अक्षर जीवन के एक संयुक्त काव्य बन गए, एक पूरे जीवन में कहां बैठेगा, यह मेरे पूरे जीवन को क्या रंग देगा, कविता बन गए। भोगी अक्षरों का ढेर लगाए बैठा है। उसके पास इससे मेरा आज तक का जीवन किस मोड़ पर मुड़ जाएगा, यह मेरे | | भाषाकोश है। सब अक्षरों का ढेर लगा हुआ है। लेकिन दो अक्षरों पूरे जीवन को मिलकर कौन-सा नया अर्थ, अभिव्यक्ति देगा। | को उसने जोड़ा नहीं, इसलिए कोई कविता का जन्म नहीं हुआ है। इसलिए प्रत्येक कृत्य एक अर्थ, एक अभिप्राय, एक प्रयोजन और | और जीवन के अंत में, वह जो हमने धागा निर्मित किया है, वही एक नियति के साथ मेल बनाता है। | हमारे साथ जाएगा, मनके छूट जाते हैं। मनके सब यहीं रह जाते हैं। आसुरी संपदा वाला व्यक्ति इस क्षण में उसे जो सूझता है, कर इस प्रकार इस मिथ्या-ज्ञान को अवलंबन करके नष्ट हो गया है लेता है। उसका कृत्य टूटा हुआ है, आणविक है। और उसका | स्वभाव जिनका तथा मंद है बुद्धि जिनकी, ऐसे वे सबका अहित लक्ष्य सिर्फ इतना है, आज भोग लूं, कल का क्या भरोसा है! करने वाले क्रूरकर्मी मनुष्य केवल जगत का नाश करने के लिए ही उमर खय्याम की रुबाइयात, अगर उसके गहरे सूफी अर्थ उत्पन्न होते हैं। आपको पता न हों, तो आसुरी संपदा वाले व्यक्ति का वक्तव्य । इस मिथ्या-ज्ञान का अवलंबन करके-कि भोग ही सब कुछ मालूम पड़ेगा। उमर खय्याम की रुबाइयात में बड़ी मधुर कल्पना | | है, योग जैसा कुछ भी नहीं; साधना कुछ भी नहीं है, पहुंचना कहीं है। अगर आपको उसका सूफी रहस्य पता हो, तब तो वह एक भी नहीं है; जीवन का कोई गंतव्य, लक्ष्य नहीं है; जीवन एक संयोग अदभुत ग्रंथ है। सूफी रहस्य का पता न हो, तो आपको लगेगा, है, एक दुर्घटना है, जिसके पीछे कोई अर्थ पिरोया हुआ नहीं है; भोग का एक आमंत्रण है। शब्दों की एक भीड़ है, कोई सुसंगत काव्य नहीं-ऐसा जिसका उमर खय्याम सुबह-सुबह ही पहुंच गया मधुशाला के द्वार पर। | मिथ्या-ज्ञान है और इसका अवलंबन करके नष्ट हो गया स्वभाव अभी कोई जागे भी नहीं; रात थके-मांदे नौकर सो गए हैं। सुबह | जिसका...। ब्रह्ममुहूर्त में, अभी सूरज भी नहीं निकला, वह दरवाजा खटखटा इस तरह की धारणाओं में जो जीएगा, वह अपने स्वभाव को रहा है। भीतर से कोई आवाज देता है कि अभी मधुशाला के खुलने | | अपने हाथ से तोड़ रहा है, क्योंकि स्वभाव तो परम संगीत को में देर है। उपलब्ध करने में ही छिपा है। स्वभाव तो परम नियति को प्रकट तो वह कहता है, लेकिन देर तक प्रतीक्षा करना संभव नहीं। एक | कर लेने में छिपा है। स्वभाव तो इस जगत का जो आत्यंतिक रहस्य क्षण के बाद का भरोसा नहीं। और यह क्षण चूक जाए पीने का, तो | है, उसके साथ एक हो जाने में छिपा है। मैं अपने स्वभाव को तभी कौन आश्वासन देता है कि अगले क्षण मैं बचूंगा और पीने की मुझे | | उपलब्ध होऊंगा, जब मैं बिलकुल शून्य होकर, शांत होकर इस सुविधा रहेगी! इसलिए द्वार खोलो। देर मत करो। सूरज निकलने | | जगत के पूरे अस्तित्व के साथ अपने को एक कर लूं। 346
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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