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________________ * गीता दर्शन भाग-7* नहीं है कि आप गिरें ही। पर वह संभावना रहनी चाहिए। गिर सकते | | बाहर फेंक दिए जाएंगे। जैसे-जैसे संतत्व उभरेगा, आप संसार में हैं। गिर सकते हैं, यह संभावना आपको संतुलन देगी। आप होकर भी संसार में नहीं होंगे। फिर जैसे-जैसे संतत्व पूर्णता को प्रतिपल अपने को सम्हालेंगे। उस सम्हालने में ही आपकी आत्मा | पहुंचेगा, आप पाएंगे कि अब संसार में होना आपका स्वप्नवत रह का जागरण है। गिर ही न सकते हों, तो फिर सो जाएंगे; फिर न | | गया। अगर इस पूर्णता को उपलब्ध करके आप मर गए, मरेंगे, कोई चुनौती है, न कोई जागरण है। शरीर छूटेगा, तो फिर दुबारा लौटने का उपाय न रह जाएगा। इसलिए बुद्ध पुरुष बुद्धत्व के बाद वापस नहीं लौट सकता। एक जन्म, जब वह बुद्धत्व को प्राप्त करता है, तब टिकेगा, लेकिन नए दूसरा प्रश्नः रात आपने बड़ी निराशाजनक बात कही शरीर को ग्रहण करने का उपाय नहीं है। नए शरीर को ग्रहण करने कि संसार शायद सदा के लिए अज्ञान, दुख व संताप का अर्थ होता है, संसार में वापस लौटने का उपाय। वह वाहन है, में जीने के लिए अभिशप्त है। तो क्या धर्म विरले | जिससे हम संसार में वापस आते हैं। उसका कोई प्रयोजन न रहा, व्यक्तियों के लिए संसार छोड़कर परमात्मा या शून्य क्योंकि शरीर से जो सीखा जा सकता था. सीख लिया गया। और में विलीन होने के लिए निमंत्रण मात्र है? संसार में जो जाना जा सकता था, वह जान लिया गया, और संसार में कुछ पाने को न बचा। इसको ऐसा समझें कि विश्वविद्यालय अशिक्षित लोगों के लिए नराशाजनक मालूम हो सकती है, निराशाजनक है नहीं। | है। यह कोई अभिशाप नहीं है। क्योंकि जैसे ही कोई शिक्षित होगा, अगर कोई कहे कि अस्पताल सदा ही बीमारों से भरा | | विश्वविद्यालय के बाहर हो जाएगा। अशिक्षित ही विश्वविद्यालय रहेगा, तो इसमें निराशाजनक बात क्या है ? अस्पताल | | में होगा। जैसे ही शिक्षा पूरी हुई कि विश्वविद्यालय का अर्थ खो है ही इसलिए। निराशाजनक तो बात तब होगी, जब अस्पताल में | | जाता है। और अगर किसी विद्यार्थी को बार-बार विश्वविद्यालय हम स्वस्थ आदमियों को भरने लगें। और जैसे ही कोई व्यक्ति | | में लौटना पड़ता है, तो उसका अर्थ ही यह है कि वह उत्तीर्ण नहीं स्वस्थ हो जाएगा, अस्पताल से मुक्त होना पड़ेगा। अस्पताल का | हो पा रहा है। प्रयोजन यही है कि बीमार वहां हो। इसमें निराशा की कौन-सी बात | निराशाजनक बात नहीं, संसार का तथ्य यही है। है? इसमें अस्पताल की निंदा नहीं है। अस्पताल चिकित्सा की दूसरी बात, तो क्या धर्म संसार छोड़कर परमात्मा या शून्य में जगह है। वहां बीमार के लिए स्थान है; वहां स्वस्थ का कोई | | विलीन होने के लिए कुछ विरले व्यक्तियों के लिए निमंत्रण मात्र है? प्रयोजन नहीं है। और जैसे ही कोई स्वस्थ हुआ कि अस्पताल से | नहीं, सभी के लिए निमंत्रण है; विरले उसको स्वीकार करते बाहर हो जाएगा। | हैं, यह दूसरी बात है। निमंत्रण सार्वजनिक है। धर्म सभी के लिए संसार को भारत अस्पताल से भिन्न नहीं मानता, वह अस्वस्थ | है। स्वस्थ होने की संभावना सभी के लिए है। लेकिन जो स्वस्थ चित्त की जगह है। वहां आत्मा हमारी बीमार है, इसलिए हम हैं। होने की प्रक्रिया से गुजरेंगे, जो साधना का पथ लेंगे, वे विरले जैसे ही आत्मा स्वस्थ होगी, हमें संसार से बाहर हो जाना पड़ेगा। मुक्त हो पाएंगे। इसलिए यह कोई अभिशाप नहीं है कि संसार सदा ही विक्षिप्त तीसरी बात, धर्म कोई पलायन नहीं है और न संसार को छोड़कर रहेगा। जब तक विक्षिप्त आत्माएं हैं, तब तक संसार रहेगा, यह | शून्य में खो जाना है। धर्म की दृष्टि में तो संसार शून्य है, स्वप्नवत बात पक्की है। जब तक बीमार हैं, तब तक अस्पताल रहेगा। है, पानी का बबूला है। इस शून्यवत को छोड़कर सत्य में प्रवेश कर बीमार नहीं होंगे, अस्पताल खो जाएगा। जाने का निमंत्रण है। यह संसार के लिए कोई अभिशाप नहीं है; यह संसार का लेकिन अगर हम बीमार आदमी से कहें कि जब तक तू सारी स्वभाव है; यह संसार की नियति है। हम गलत हैं, इसलिए हम | | बीमारियां न छोड़ देगा, तब तक अस्पताल से बाहर न जाने देंगे। वहां हैं। वह एक बड़ा शिक्षण का स्थल है, एक बड़ा । | तो वह कहेगा, आप मुझे शून्य होने के लिए मजबूर कर रहे हैं! विश्वविद्यालय है। वहां जैसे-जैसे हम ठीक होंगे, वैसे-वैसे हम सभी बीमारियां छोड़नी पड़ेंगी? तो फिर मेरे पास बचेगा क्या? तो 336
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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