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* आसुरी संपदा *
टांग दे। अगर उसे कोई बहाना न मिले, तो वह बहाना निर्मित कर | लिए निर्मित किया है। कारागृह ऐसा, जो आपने ही अपने लिए लेगा। अगर उसे कोई भी क्रोध करने को न मिले, तो वह अपने पर बनाया है। भी क्रोध करेगा। लेकिन क्रोध करेगा और उसकी वाणी में उसके __दैवी संपदा मुक्त करेगी; दीवारें गिरेंगी, खुला आकाश प्रकट क्रोध की लपटें बहती रहेंगी। वह जो भी बोलेगा, वह तीर की तरह होगा। पंख आपके पास हैं; लेकिन पंखों पर अगर आपने बंधन हो जाएगा, किसी को चुभेगा और चोट पहुंचाएगा।
बांध रखे हैं, तो उड़ना असंभव है। और अगर बहुत समय से आप क्रोध और कठोर वाणी एवं अज्ञान, ये सब आसुरी संपदा को । उड़े नहीं हैं, तो आपको खयाल भी मिट जाएगा कि आपके पास प्राप्त हुए पुरुष के लक्षण हैं।
पंख हैं। अज्ञान का अर्थ ठीक से समझ लेना। अज्ञान का अर्थ यह नहीं चील बड़े ऊंचे वृक्षों पर अपने अंडे देती है। फिर अंडों से बच्चे है कि वह कम पढ़ा-लिखा होगा। वह खूब पढ़ा-लिखा हो सकता | आते हैं। वृक्ष बड़े ऊंचे होते हैं। बच्चे अपने नीड़ के किनारे पर है। अज्ञान का यह मतलब नहीं है कि वह पंडित नहीं होगा। वह | बैठकर नीचे की तरफ देखते हैं, और डरते हैं, और कंपते हैं। पंख पंडित हो सकता है। रावण पंडित है, महापंडित है। जानकारी उनके पास हैं। उन्हें कुछ पता नहीं कि वे उड़ सकते हैं। और इतनी उसकी बहुत हो सकती है। लेकिन बस, वह जानकारी होगी, ज्ञान नीचाई है कि अगर गिरे, तो प्राणों का अंत हुआ। उनकी मां, उनके न होगा। ज्ञान का अर्थ है, जो स्वयं अनुभूत हुआ हो। जानकारी का पिता को वे आकाश में उडते भी देखते हैं. लेकिन फिर भी भरोसा अर्थ है, जो दूसरों ने अनुभव की हो और आपने केवल संगृहीत नहीं आता कि हम उड़ सकते हैं। कर ली हो।
तो चील को एक काम करना पड़ता है...। इन बच्चों को ज्ञान अगर उधार हो, तो पांडित्य बन जाता है। ज्ञान अगर आकाश में उड़ाने के लिए कैसे राजी किया जाए! कितना ही अपना, निजी हो, तो प्रज्ञा बनती है।
समझाओ-बुझाओ, पकड़कर बाहर लाओ, वे भीतर घोंसले में अज्ञान का यहां अर्थ है कि वह चाहे जानता हो ज्यादा या न | जाते हैं। कितना ही उनके सामने उड़ो, उनको दिखाओ कि उड़ने का जानता हो, लेकिन स्वयं को नहीं जानेगा। सब जानता हो, सारे | आनंद है, लेकिन उनका साहस नहीं पड़ता। वे ज्यादा से ज्यादा जगत के शास्त्रों का उसे पता हो, लेकिन स्वयं की उसे कोई पहचान घोंसले के किनारे पर आ जाते हैं और पकड़कर बैठ जाते हैं। न होगी, आत्म-ज्ञान न होगा।
तो आप जानकर हैरान होंगे कि चील को अपना घोंसला तोड़ना और जो भी वह जानता है, वह सब उधार होगा। उसने कहीं से | पड़ता है। एक-एक दाना जो उसने घोंसले में लगाया था, एक-एक सीखा है, वह उसकी स्मृति में पड़ा है। लेकिन उसके माध्यम से कूड़ा-कर्कट जो बीन-बीनकर लाई थी, उसको एक-एक को उसका जीवन नहीं बदला है। वह उस ज्ञान में जला और निखरा नहीं | | गिराना पड़ता है। बच्चे सरकते जाते हैं भीतर, जैसे घोंसला टूटता है। उस ज्ञान ने उसको तोड़ा और नया नहीं किया। वह ज्ञान उसकी | | है। फिर आखिरी टुकड़ा रह जाता है घोंसले का। चील उसको भी मत्य भी नहीं बना और उसका जन्म भी नहीं बना। वह ज्ञान धल छीन लेती है। बच्चे एकदम से खले आकाश में हो जाते हैं। एक की तरह उस पर इकट्ठा हो गया है। उस ज्ञान की पर्त होगी उसके क्षण भी नहीं लगता, उनके पंख फैल जाते हैं और आकाश में वे पास, लेकिन वह ज्ञान उसके हृदय तक नहीं पहुंचा है। वह ज्ञान को चक्कर मारने लगते हैं। दिन, दो दिन में वे निष्णात हो जाते हैं। दिन, ढोएगा, लेकिन ज्ञान उसका पंख नहीं बनेगा कि उसको मुक्त कर | | दो दिन में वे जान जाते हैं कि खुला आकाश हमारा है; पंख हमारे दे। उसका ज्ञान वजन होगा, उसका ज्ञान निर्भार नहीं है। पास हैं।
अज्ञान का यहां अर्थ है, अपने को न जानना; अपने स्वभाव से ___ हमारी हालत करीब-करीब ऐसी ही है। कोई चाहिए, जो आपके अपरिचित होना।
घोंसले को गिराए। कोई चाहिए, जो आपको धक्का दे दे। गुरु का उन दोनों प्रकार की संपदाओं में दैवी संपदा तो मुक्ति के लिए है | वही अर्थ है। और आसुरी संपदा बंधन के लिए मानी गई है...। ___ कृष्ण वही कोशिश अर्जुन के लिए कर रहे हैं। सारी गीता अर्जुन
आसुरी संपदा बांधेगी, आपको बंद करेगी। जैसे कोई कारागृह का घर, घोंसला तोड़ने के लिए है। सारी गीता अर्जुन को स्मरण में पड़ा हो। और यह कारागृह ऐसा नहीं कि किसी दूसरे ने आपके दिलाने के लिए है कि तेरे पास पंख हैं, तू उड़ सकता है। यह सारी
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