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* आसुरी संपदा *
रूस ने लाख उपाय किए, क्रांति कर डाली। पुराना मजदूर मिट लेकिन ये रुख यात्रा के बिलकुल अलग-अलग हैं। जो व्यक्ति गया, नया मजदूर पैदा हो गया। पहले अमीर आदमी था, गरीब | | समाज की तरफ उत्सुक हो जाएगा कि समाज को बदलना है, वह आदमी था; अब सरकारी आदमी है और गैर-सरकारी आदमी है। व्यक्ति अपने को बदलने में उत्सुक नहीं होता। अगर गहरे से फर्क उतना ही है। तब भी कोई छाती पर बैठा था और कोई जमीन समझना चाहें, तो असल में हम दूसरे को बदलने में इसलिए उत्सुक पर पड़ा था; अब भी कोई जमीन पर पड़ा है और कोई छाती पर | | होते हैं, क्योंकि हम अपने को बदलना नहीं चाहते। यह एक तरह बैठा है। नाम बदल जाते हैं, बीमारी कायम रहती है।
का पलायन है, यह एक तरकीब है। जिस व्यक्ति को आत्म-क्रांति में लगना है. उसे व्यर्थ के उपद्रव | तो हम देखते हैं, कहां-कहां दुनिया में भूल-चूक है, उसको से अपने को बचाना चाहिए, यह कृष्ण का अर्थ है। तो वे कहते हैं, | बदलना है। सिर्फ अपने में कोई भूल-चूक नहीं देखते। और अपने शास्त्र और समाज का जो नियम है, उसमें वह जो दैवी संपदा का | | में भूल-चूक दिखाई भी नहीं पड़ेगी, क्योंकि दुनिया में काफी व्यक्ति है, वह व्यर्थ की अड़चन नहीं डालता। उसे खेल का नियम भूल-चूकें हैं। मानकर पूरा कर देता है। वह कहता है, बाएं चलना है तो हम बाएं और अगर मैंने यह तय कर लिया कि जब तक दुनिया न बदल चल लेते हैं। वह इस पर झगड़ा खड़ा नहीं करता कि नहीं, दाएं जाए, तब तक मैं अपनी तरफ ध्यान न दूंगा, तो मैं अनंत जन्मों तक चलेंगे। इस पर जीवन नहीं लगा देता। इसका कोई मूल्य भी नहीं लगा रहूं, तो भी मुझे अपने पर ध्यान देने का समय नहीं मिलेगा। है। और ऐसा व्यक्ति अपने जीवन का, अपनी ऊर्जा का सम्यक | | यह दुनिया कभी पूरी बदल जाने वाली नहीं है। उपयोग कर पाता है।
इसलिए समाज को चुपचाप स्वीकार कर लेना दकियानूसीपन और बड़े मजे की बात, विरोधाभासी दिखे तो भी बड़े मजे की नहीं है, एक बहुत बुद्धिमत्ता का कृत्य है। और इसका यह अर्थ बात यह है कि ऐसे व्यक्ति के जीवन के द्वारा समाज में कुछ घटित | | कदापि नहीं है कि ऐसे व्यक्ति से क्रांति घटित नहीं होती। ऐसे ही भी होता है। लेकिन वह प्रत्यक्ष नहीं होता घटित। वह सीधा समाज | व्यक्ति से क्रांति घटित होती है। लेकिन वह क्रांति परोक्ष है। वह को बदलने नहीं जाता, वह अपने को बदल लेता है। लेकिन उसकी | क्रांति लेनिन और मार्क्स और माओ जैसी क्रांति नहीं है। वह क्रांति बदलाहट के परिणाम समाज में भी प्रतिध्वनित होते हैं। महावीर, कृष्ण और बुद्ध की क्रांति है। वह बड़ी चुपचाप घटित
हजारों क्रांतिकारी जो फर्क समाज में नहीं कर पाते, वह एक होती है। आत्मा को उपलब्ध व्यक्ति कर पाता है। लेकिन वह उसकी इच्छा | और इस जगत में जो भी महत्वपूर्ण है, वह चुपचाप घटित होता नहीं है; वह उसके लिए कोशिश में भी नहीं लगा है। उसकी | | है। और जो भी व्यर्थ है, कचरा-कूड़ा है, वह काफी शोरगुल करता मौजूदगी, उसके जीवन का प्रकाश अनेकों को बदलता है। लेकिन | है। इस जगत में जो भी महत्वपूर्ण है, इतिहास उसको अंकित ही . वह बदलाहट बड़ी सौम्य है। वह कोई क्रांति नहीं है। वह बहुत | नहीं कर पाता। इस जगत में जो भी उपद्रव, उत्पात है, इतिहास
सौम्य विकास है। उसका कोई शोरगुल भी नहीं है। वह चुपचाप | उसको अंकित करता है। घटित होता है। वह मौन ही घट जाता है।
एक यहूदी फकीर के संबंध में मैं पढ़ता था। वह अक्सर लोगों बुद्ध कोई क्रांति नहीं करते हैं समाज में, लेकिन बुद्ध के बाद से कहता था कि मैं सिर्फ दो किताबें पढ़ता हूं, एक भगवान की और दुनिया दूसरी हो जाती है। बुद्धों की मौजूदगी, उनके ज्ञान की घटना, | | एक शैतान की। अनेक बार लोग उससे पूछते कि भगवान की मनुष्य की चेतना को कहीं गहरे में रूपांतरित कर जाती है; किसी किताब तो हम समझते हैं कि तालमुद यहूदियों का धर्मग्रंथ है, वह को पता भी नहीं चलता। यह ऐसे हो जाता है, जैसे चुपचाप कोई आप पढ़ते होंगे। लेकिन शैतान की किताब ? यह इसका नाम क्या फूल खिलता है और उसकी सुगंध हवाओं में फैल जाती है। न कोई | | | है? तो वह हंसता और टाल जाता। बैंड बजता, न कोई नगाड़े बजते; कोई शोरगुल नहीं होता, चुपचाप | जब उसकी मृत्यु हुई, तो पहला काम उसके शिष्यों ने यह किया सुगंध हवाओं में भर जाती है। फूल खो भी जाता है, तो सुगंध | | कि उसकी कोठरी खोलकर देखा कि वह शैतान की किताब! उसके तिरती रहती है। सदियों-सदियों तक उस सुगंध से लोग आप्लावित | वहां दो तख्तियां लगी थीं: एक तरफ भगवान की किताब-वहां होते हैं, रूपांतरित होते हैं।
तालमद रखी थी, और शैतान की किताब-वहां रोज का
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