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________________ * आसुरी संपदा * किसी को नुकसान भी पहुंचा सकता है; किसी के लिए | वाला नहीं है। कल्याणकारी हो सकता है। हिंदू इस बात को बड़े गहरे से समझ गए कि समाज बहता तो वह जो अतिक्रमण कर गया है जीवन की सारी स्थितियों को, | रहेगा, समस्याएं बनी रहेंगी। क्यों? क्योंकि समाज बनता है जो लौटकर देख सकता है सारे विस्तार को. जो आपके अंतःकरण | करोड़ों-करोड़ों, अरबों-अरबों लोगों से। और वे अरब-अरब में प्रवेश कर सकता है, जो आपके मन की आज की दशा जान | लोग अज्ञान से भरे हैं, वे अरब-अरब लोग पागलपन से भरे हैं, सकता है, जो आपके अतीत संस्कारों को ठीक से पहचान सकता | वे अरब-अरब लोग विक्षिप्त हैं। उन अरबों लोगों का जो समाज है और जो निर्णय ले सकता है कि भविष्य आपके लिए कौन-सा | है, वह कभी भी स्वस्थ नहीं हो सकता। बीमार होना उसका लक्षण सुगम होगा, उसके बिना मार्ग पर बढ़ जाना सदा ही जोखम का | ही रहेगा, जब तक कि ये सारे लोग प्रबुद्ध पुरुष न हो जाएं। काम है। बुद्धों का कोई समाज हो, तो समस्याओं के पार होगा। हमारा समाज समस्याओं के पार कभी हो नहीं सकता। और हम जो भी करेंगे...। एक तरफ हम सुधारेंगे, तो दस तरफ हम बिगाड़ कर दुसरा प्रश्नः कृष्ण ने गीता में लोक और शास्त्र के | लेते हैं। विरुद्ध आचरण का निषेध किया है। लेकिन इस आज से दो सौ साल पहले दुनियाभर के विचारकों का खयाल नियम से तो समाज लकीर का फकीर होकर रह | था, अगर शिक्षा बढ़ जाए जगत में, तो स्वर्ग आ जाएगा। अब जाएगा। शायद यही कारण है कि हिंदू समाज शिक्षा बढ़ गई है। अब सारा जगत शिक्षा के मार्ग पर गतिमान हुआ सदियों-सदियों से यथास्थिति में पड़कर सड़ रहा है। | है। अधिकतम लोग शिक्षित हैं। लेकिन अब शिक्षा के कारण जो इस प्रवृत्ति से तो दकियानूसीपन ही बढ़ेगा तथा | | परेशानियां आ रही हैं, वह दो सौ साल पहले के समाज-सुधारकों सुधार, परिवर्तन और क्रांति असंभव हो जाएंगे। इस को उनका कोई पता भी नहीं था। पर प्रकाश डालें। __ अब शिक्षा के कारण ही उपद्रव है। और बड़े विचारक, डी. | एच.लारेंस जैसा विचारक, यह सुझाव दिया कि सौ साल तक हमें सारे विश्वविद्यालय बंद कर देने चाहिए, सौ साल तक सारी शिक्षा र से समझना जरूरी है। बंद कर देनी चाहिए, तो ही हमारी समस्याओं का हल होगा, नहीं २. पहली बात, कृष्ण जो भी कह रहे हैं गीता में, वह कोई तो हल नहीं हो सकता। समाज-सुधार का आयोजन नहीं है, वह कोई| आज हमारे सारे पागलपन और उपद्रव का गढ़ विश्वविद्यालय समाज-सुधार की रूप-रेखा नहीं है। वह प्रस्तावना व्यक्ति की बन गया है। सब उपद्रव वहां से पैदा हो रहे हैं। सोचा था, शिक्षा आत्मक्रांति के लिए है। और ये दोनों बातें बड़ी भिन्न हैं। | स्वर्ग ले आएगी। लेकिन जिनको हमने शिक्षित किया है, वे समाज अगर व्यक्ति को आत्मक्रांति की तरफ जाना हो, तो यही उचित को और नरक बनाए दे रहे हैं! सोचा था कि शिक्षा से लोग सत्य, है कि वह व्यर्थ के उपद्रवों में न पड़े। क्योंकि शक्ति सीमित है, | | धर्म, नीति की तरफ बढ़ेंगे। लेकिन शिक्षा सिर्फ लोगों को बेईमान समय सीमित है, और जीवन और समाज के प्रश्न तो अनंत हैं। | और चालाक बना रही है। उनकी कभी कोई समाप्ति होने वाली नहीं है। शिक्षित आदमी के ईमानदार होने में कठिनाई हो जाती है, क्योंकि हजारों वर्षों से समाज है, हजारों रूपांतरण किए गए हैं, हजारों वह गणित बिठालने लगता है, चालाक हो जाता है। बुद्धि बढ़ेगी, सामाजिक क्रांतियां हो चुकी हैं, लेकिन समाज फिर भी सड़ रहा | | तो चालाकी भी बढ़ेगी। चालाकी बढ़ेगी, तो दूसरे का शोषण करने है। एक चीज बदल जाती है, तो दूसरी खड़ी हो जाती है। दूसरी | | में ज्यादा कुशल हो जाएगा। शिक्षा बढ़ेगी, तो महत्वाकांक्षा बढ़ेगी, बदल जाती है, तो तीसरा सवाल खड़ा हो जाता है। एक समस्या | | एंबीशन बढ़ेगी। महत्वाकांक्षा बढ़ेगी, तो वह संघर्ष करेगा। तृप्ति का हम समाधान करते हैं, तो समाधान से ही दस समस्याएं खड़ी | कम हो जाएगी, असंतोष घना हो जाएगा। हो जाती हैं। समस्याओं का समाज के लिए कभी कोई अंत आने | | वह देखता है कि दूसरा आदमी अगर एम.ए. पास है और चीफ 319
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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