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________________ ** आसुरी संपदा व्यर्थ था; यह पूरा श्रम आत्मघाती था। आप इसे छोड़ दे सकते हैं। कोई और आपको पकड़े हुए नहीं है, और कोई आपको अशांत नहीं कर रहा है। एक क्षण में जीवन अशांति के मोड़ से शांति की दिशा में गति करता है। एक तो उपाय यह है। लेकिन जब मैंने कल कहा कि जब आप अशांत हैं तब शांत होना मुश्किल होगा, उसका प्रयोजन दूसरा है। पहली तो बात यह कि जब आप अशांत हैं, तो मेरा अर्थ पूरी अशांति से नहीं है। आप आधे-आधे हैं। जैसे पानी को हम गरम करें; वह पचास डिग्री पर गरम हो, तो न तो वह भाप बन पाता है और न बर्फ बन पाता है। पानी ही रहता है। सिर्फ गरम होता है। या सौ डिग्री तक गरम हो जाए, तो रूपांतरण हो सकता है; पानी छलांग लगा ले, भाप बन जाए। और या शून्य डिग्री के नीचे गिर जाए, तो भी रूपांतरण हो सकता है; पानी समाप्त हो जाए, बर्फ बन जाए। दोनों हालत में पानी खो सकता है, लेकिन अतियों से। तो जब मैंने कल कहा कि जब आप अशांत हैं तब शांत होना मुश्किल होगा, उसका मतलब इतना ही है कि जब पानी गरम है, तो बर्फ बनानी मुश्किल होगी। पानी को ठंडा करना होगा, तो बर्फ बन सकती है। लेकिन दो उपाय हैं। या तो पानी को पूरा गरम कर लें, तो भी पानी खो जाएगा, आप एक नए जगत में प्रवेश कर जाएंगे। या फिर पानी को पूरा ठंडा हो जाने दें, तो भी पानी खो जाएगा और नई यात्रा शुरू हो जाएगी। अशांति से कूदने के दो उपाय हैं। या तो बिलकुल शांत क्षण आ और या बिलकुल अशांत क्षण आ जाए। आप जहां हैं, वहां से छलांग नहीं लग सकती। या तो पीछे लौटें और अपने को शांत करें या आगे बढ़ें और पूरे अशांत हो जाएं।' दोनों की सुविधाएं और दोनों के खतरे हैं। शांत होने की सुविधा तो यह है कि कोई विक्षिप्तता का डर नहीं है। इसलिए अधिक धर्मों ने शांत होने के छोर से ही छलांग लगाने की कोशिश की है। संन्यासियों को कहा गया है, घर-द्वार छोड़ दें, गृहस्थी छोड़ दें, काम-काज छोड़ दें। यह सब शांत होने की व्यवस्था है। उन परिस्थितियों से हट जाएं, जहां पानी गरम होता है। चले जाएं दूर हिमालय में, जहां कोई गरम करने को न होगा, धीरे-धीरे आप ठंडे हो जाएंगे। हट जाएं उन-उन स्थितियों से, जहां आप उबलने लगते हैं। बार-बार उबलने | लगते हैं, उबलने की आदत बन जाती है। हट जाएं उन व्यक्तियों से, जिनके संपर्क में आपको ठंडा होना मुश्किल हो रहा है। अधिक धर्मों ने, जहां आप हैं - मध्य में, अशांति में खड़े, | अधूरी अशांति में - वहां से पीछे लौटने की सलाह दी है। खतरा उसमें कम है। लेकिन कठिनाई भी है उसकी। क्योंकि आप परिस्थितियों से हट सकते हैं, लोगों से हट सकते हैं, दुकान - बाजार | छोड़ सकते हैं, लेकिन आपका मन आपके साथ हिमालय चला जाएगा। और जो मन यहां अशांत हो रहा था, वह मन तो आपके साथ होगा, सिर्फ अशांत करने वाली परिस्थितियां साथ न होंगी। तो हो सकता है कि आप थोड़े शांत होने लगें, लेकिन वह शांति धोखा भी सिद्ध हो सकती है। बीस साल हिमालय पर रहकर वापस लौटें, और जैसे ही नगर में आएं, अशांति वापस पकड़ सकती है। क्योंकि परिस्थिति से हट गए थे, आप शांत नहीं हुए थे; जहां अशांति होती थी, उस जगह से हट गए थे। तो खतरा भी है, सुविधा भी है। दूसरा उपाय कुछ धर्मों की विशेष शाखाओं ने किया है। जैसे बुद्ध-धर्म की झेन शाखा ने अशांत करने का पूरा प्रयोग किया है। | इस्लाम की सूफी शाखा ने अशांत करने का पूरा प्रयोग किया है। | वे कहते हैं, भागने से कुछ भी न होगा। चित्त को उसकी पूरी दौड़ | में चले जाने दें; उसको हो लेने दें जितना पागल होना है । उसको | उसके पूरे पागलपन को छू लेने दें और वहीं से छलांग लें। 317 इसके खतरे हैं, इसके लाभ हैं। खतरा तो यह है कि आप क्रमशः पाएंगे कि आप और भी पागल होते जा रहे हैं। खतरा यह है कि अगर आप पूरे छोर तक न पहुंचे, नब्बे डिग्री पर कहीं रुक गए, तो आप विक्षिप्त हालत में रह जाएंगे। बहुत से संन्यासी विक्षिप्त अवस्था में रह जाते हैं। सौ डिग्री तक पहुंचें, तो पानी भाप बन जाएगा, लेकिन जरूरी नहीं है कि आप पहुंच पाएं। अगर निन्यानबे डिग्री पर भी रह गए, तो आप सिर्फ पागल होंगे, उन्मत्त हो जाएंगे। उस उन्मत्तता की अवस्था में न तो पीछे लौटना आसान होगा, न आगे जाना आसान होगा। वह दुर्घटना घटती है। अगर बीच में अटके, तो कठिनाई बढ़ | जाएगी। और आप इस हालत में होंगे उबलने की कि फिर आप कुछ भी न कर पाएंगे। इसलिए यह जो दूसरा मार्ग है, अनिवार्यरूपेण किसी गरु के पास ही साधा जा सकता है। पहला मार्ग अकेला भी साधा जा सकता है, क्योंकि शांत होने
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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