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*गीता दर्शन भाग-7 *
दम्भो दपोंऽभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च। | होता; हम थोड़े अशांत होते हैं। जब हम समझते हैं कि हम बहुत अज्ञानं चाभिजातस्म पार्थ संपदमासुरीम् ।।४।। अशांत हैं, तब भी हम थोड़े ही अशांत होते हैं। जब हम सोचते हैं
दैवी संपद्धिमोक्षाय निबन्धायासुरी मता। कि असहनीय हो गई है दशा, तब भी सहनीय ही होती है, मा शुचः संपदं देवीमभिजातोऽसि पाण्डव ।।५।। असहनीय नहीं होती। क्योंकि असहनीय का तो अर्थ है कि आप
द्वौ भूतसगी लोकेस्मिन्दैव आसुर एव च।। बचेंगे ही नहीं। दैवो विस्तरशः प्रोक्त आसुरं पार्थ मे शृणु।।६।। जिसको आप असहनीय अशांति कहते हैं, उसे भी आप सह तो और हे पार्थ, पाखंड, घमंड और अभिमान तथा क्रोध और लेते ही हैं। प्रियजन मर जाता है, बेटा मर जाता है, मां मर जाती है, कठोर वाणी एवं अज्ञान, ये सब आसुरी संपदा को प्राप्त हुए पत्नी मर जाती है, पति मर जाता है, असहनीय दुख हम कहते हैं, पुरुष के लक्षण हैं।
लेकिन उसे भी हम सह लेते हैं; और हम बच जाते हैं उसके पार उन दोनों प्रकार की संपदाओं में देवी संपदा तो मुक्ति के भी। दो-चार महीने में घाव भर जाता है; हम फिर पुराने हो जाते हैं;
लिए और आसुरी संपदा बांधने के लिए मानी गई है। फिर जिंदगी वैसी ही चलने लगती है। हमने कहा था असहनीय, इसलिए हे अर्जुन, तू शोक मत कर, क्योंकि तू दैवी संपदा लेकिन वह सहनीय था। अशांति पूरी न थी। - __को प्राप्त हुआ है।
अशांति पूरी होती, तो दो घटनाएं संभव थीं। या तो आप मिट और हे अर्जुन, इस लोक में भूतों के स्वभाव दो प्रकार के जाते, बचते न; और अगर बचते, तो पूरी तरह रूपांतरित होकर बताए गए हैं। एक तो देवों के जैसा और दूसरा असुरों के बचते। हर हालत में आप जैसे हैं, वैसे नहीं बच सकते थे। या तो जैसा । उनमें देवों का स्वभाव ही विस्तारपूर्वक कहा गया, आत्मघात हो जाता, या आत्मा-रूपांतरण हो जाता; पर आप जैसे इसलिए अब असुरों के स्वभाव को भी विस्तारपूर्वक | हैं, वैसे ही बच नहीं सकते थे। मेरे से सुन।
लेकिन देखा जाता है कि सब दुख आते हैं और चले जाते हैं, और आपको वैसा ही छोड़ जाते हैं जैसे आप थे; उसमें रत्तीभर भी
भेद नहीं होता। आप वही करते हैं फिर, जो पहले करते थे वही पहले कुछ प्रश्न।
जीवन, वही चर्या, वही ढंग, वही व्यवहार। थोड़ा-सा धक्का पहला प्रश्नः कल आपने कहा, पूरा अशांत होने पर लगता है, फिर आप सम्हल जाते हैं। फिर गाड़ी पुरानी लीक पर शांति की साधना कठिन हो जाती है। लेकिन आप चलने लगती है। यह भी कहते रहे हैं कि विपरीत ध्रुवीयता के नियम आत्महत्या हो जाएगी और या आत्मक्रांति हो जाएगी, दोनों ही के अनुसार अति पर पहुंचकर ही बदलाहट संभव होती | स्थिति में आप मिट जाएंगे। अति पर क्रांति घटित होती है। यदि है। इसे समझाएं।
| कोई परा अशांत हो जाए, तो उसका अर्थ हआ कि अब और अशांत होने की जगह न बची। अब इसके आगे अशांति में जाने
का कोई मार्ग न रहा। आखिरी पड़ाव आ गया। अब गति का कोई त्म-रूपांतरण, आत्यंतिक क्रांति तो अति पर ही संभव | उपाय नहीं। इस क्षण क्रांति घट सकती है। इस क्षण आप इस होती है। जब तक हम जीवन की एक शैली के व्यर्थता को समझ सकते हैं। यह अशांत होने का सारा रोग व्यर्थ
आखिरी छोर पर न पहुंच जाएं, जब तक हम उसकी मालूम पड़ सकता है। पीड़ा को पूरा न भोग लें, उसके संताप को पूरा न सह लें, तब तक और ध्यान रहे, कोई और तो आपको अशांत करता नहीं, आप रूपांतरण नहीं होता।
ही अशांत होते हैं। यह आपका ही अर्जन है, यह आपका ही लगाया __ अशांत अगर कोई पूरा हो जाए, तो छलांग लग सकती है शांति हुआ पौधा है, आपने ही सींचा और बड़ा किया है। ये जो अशांति में। लेकिन पूरा अशांत हो जाए, यह शर्त खयाल रहे। आधी| के फल और फूल लगे हैं, ये आपके ही श्रम के फल हैं। और अगर अशांति से नहीं चलेगा। और हममें से कोई भी पूरा अशांत नहीं आप पूरे अशांत हो गए, तो आपको दिखाई पड़ जाएगा कि सब
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