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* दैवी संपदा का अर्जन *
उपलब्ध होता है। जो अपने भीतर अपने लिए बचाता नहीं, उसकी यह फर्क बारीक है, नाजुक है। और इसको आप प्रयोग करेंगे, इंद्रियां अपने आप शांत हो जाती हैं।
| तो ही खयाल में आ सकता है। अपने को वंचित करना किसी को यह जो इंद्रियों की शांति है, जो दान से या प्रेम से फलित होती | देने के लिए, तब उस वंचित करने में एक सुख है। और सिर्फ अपने है, इस शांति में और इंद्रियों को दबा लेने में बड़ा फर्क है, बुनियादी को वंचित करना बिना किसी को देने के खयाल से, उसमें कोई रस विरोध है। कोई व्यक्ति अगर इंद्रियों को जोर से दबा ले, तो भीतर | नहीं है, कोई सुख नहीं है। उसमें पीड़ा होगी। अशांति पैदा होगी, शांति पैदा नहीं होगी।
तो आप भूखे रह सकते हैं, और जो पैसा बचे, वह बैंक में जमा आप किसी भी इंद्रिय को दबाकर देखें। और आप पाएंगे कि उस | कर सकते हैं। उस भूख में सिर्फ भूख ही होगी। दबाने से और अशांति पैदा होती है, क्योंकि इंद्रिय निकलना चाहती __ भूखे रहना प्राथमिक न हो, किसी का पेट भरना प्राथमिक हो। है, बाहर आना चाहती है, भोग में जाना चाहती है। इंद्रिय आपको | | और अगर उसके पीछे भूखे रहना पड़े, तो भूखे रहने की स्वीकृति कहीं ले जाना चाहती है।
हो। जो दबाएगा, वह तो और अशांत हो जाएगा। लेकिन अगर कोई | । दान से सारी इंद्रियां रूपांतरित हो सकती हैं। आप नग्न खड़े हो अपने को बांटने को राजी है, तो उसकी इंद्रियां अपने आप शांत | जाएं सड़क पर, यह एक बात है। यह नग्नता अधूरी है, और इस होती चली जाएंगी।
नग्नता में अहंकार है। लेकिन कोई नग्न खड़ा हो और अपने वस्त्र इस फर्क को आप ऐसा समझें। आप उपवास करें एक दिन। तो | उसको ओढ़ा दें, उस नग्नता का रस और है। उस नग्नता में न क्या करेंगे? उपवास करेंगे, तो दबाएंगे भूख को। भूख रोज लगी | अहंकार है, न तप का कोई भाव है। उस नग्नता की पवित्रता और है, आज भी लगेगी; उसे दबाएंगे। दबाएंगे तो भूख और फैलेगी | पूर्णता और है। उसका गुणधर्म और है। रोएं-रोएं में भीतर। और चौबीस घंटे सिर्फ भोजन का स्मरण | .. लेकिन अक्सर यह हुआ कि जो भी धर्म दान के माध्यम से आपका स्मरण होगा।
जीवन को रूपांतरित करने को पैदा हुए, दान तो भूल गया, वह जो लेकिन घर में एक मेहमान आया है। और घर में इतना ही भोजन | दान का आधा हिस्सा था, वह भीतर रह गया। उस आधे हिस्से का है कि या तो आप कर लें या मेहमान को करा दें। और आप प्रसन्न कोई अर्थ नहीं है। हैं कि मेहमान घर में आया, और आप आनंदित हैं। तो आपने | __ आप खूब उपवास कर सकते हैं, लेकिन आपका उपवास किसी मेहमान को भोजन कराया। यह उपवास बड़े और ढंग का होगा। के पेट भरने का हिस्सा होना चाहिए। आप बिलकुल दरिद्र हो इस उपवास में एक खुशी होगी, एक प्रफुल्लता होगी। भूख अब | | सकते हैं, उसका कोई मूल्य नहीं है। आपकी दरिद्रता किसी को भी लगी है, लेकिन आपने भूख को दबाया नहीं, आपने भोजन को | समृद्ध करने का हिस्सा होना चाहिए, तब बात पूरी होती है। और बांटा, आपने दान किया।
तब जीवन में इंद्रियों का उत्पात जिस भांति शांत होता है, उस भांति इसलिए मां, अगर बेटा भूखा हो, तो उसे खिला देगी, खुद भूखी कोई भी दमन करके कभी उन्हें शांत नहीं कर पाया। सो जाएगी। इस उपवास का मजा और है। इस उपवास में जो आनंद यज्ञ, स्वाध्याय, तप, शरीर और इंद्रियों के सहित अंतःकरण की है, वह किसी साधारण साध के, संन्यासी के उपवास में नहीं हो सरलता। सकता। क्योंकि वह केवल भूख को दबा रहा है। इसने भूख को __ यज्ञ एक वैज्ञानिक प्रक्रिया का नाम है। उसके बाह्य रूप से तो दबाया नहीं है, भोजन को बांटा है। यहां बुनियादी फर्क है। यहां | हम परिचित हैं। लेकिन बाह्य रूप तो सिर्फ प्रतीक है। बाहर के किसी और की भूख को पूरा किया है। और उसकी भूख को पूरा | प्रतीक से कुछ भीतर की बात कहने की कोशिश की गई है। यज्ञ किया है, जिसके प्रति प्रेम है।
एक तकनीक है, एक विधि है, कि भीतर कैसे अग्नि प्रज्वलित हो, दान, अगर जीवन के सब पहलुओं में समा जाए, तो सभी इंद्रियां | और उस अग्नि में मैं कैसे भस्मीभूत हो जाऊं।। अपने आप शांत हो जाती हैं। और दान से ही दमन आए, तो दमन, सारा जीवन अग्नि का खेल है। आप भी अग्नि के एक रूप हैं। में एक उत्सव है। बिना दान के दमन आए-लोभ से भी दमन | भोजन पच रहा है, खून बन रहा है, खून दौड़ रहा है, हृदय गति आता है-तब एक तरह की विकृति और कुरूपता है। करता है, श्वास चलती है, सब अग्नि का खेल है। शरीर से अग्नि
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