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________________ गीता दर्शन भाग-7 का मतलब है कि मरेगा अब; अब लौटने का कोई उपाय नहीं है। जमीन पर आप बैठे हैं, वह गोल है; आप उस पर कोई भी रेखा साठ साल के लिए तेरी तैयारी...। | खींचें, अगर उसको बढ़ाए चले जाएं, तो वह पूरी जमीन को घेर अनंत प्रतीक्षा का अर्थ ही यह होता है कि हमारी तैयारी इतनी है | लेगी, बड़े वर्तुल का हिस्सा हो जाएगी। कि कभी भी न घटे, तो भी हम शिकायत न करेंगे। भक्त का अर्थ तो सभी रेखाएं किसी बहुत बड़े वर्तुल का हिस्सा हैं। इसलिए ही यह होता है, जो शिकायत न करे। और जिसकी शिकायत है, कोई रेखा सीधी नहीं है। सभी रेखाएं तिरछी हैं, घूमती हुई हैं; वर्तुल वह भक्त नहीं है। का अंग हैं। सीधी रेखा जैसी कोई चीज है ही नहीं जगत में। ___ पर आप हैरान होंगे, नास्तिक तो मिल जाएंगे आपको जिनकी ___ इसलिए सभी चीजें गोल घूमती हैं। चांद, पृथ्वी, तारे, सूरज, कोई शिकायत नहीं है; आस्तिक खोजना मुश्किल है बिना मौसम, आदमी का जीवन, सब वर्तुलाकार घूमता है। और जब दो शिकायत के। और आस्तिक का लक्षण यह है कि उसकी कोई अतियां एक रेखा की करीब आती हैं, तो वर्तुल पूरा होता है। किसी शिकायत न हो। भी रेखा को, उसकी अतियों को पास ले आएं; जहां दोनों अतियां तो दुनिया में दो तरह के नास्तिक हैं। एक तो नास्तिक हैं, जो | मिलती हैं, वहीं वर्तुल पूरा होता है। घोषणा किए हैं कि ईश्वर नहीं है। इसलिए शिकायत करने का उपाय __ अनंत धैर्य रेखा का एक कोना है। और क्षण में घट सकती है भी नहीं है; किससे शिकायत करें? इसलिए जो है, ठीक है। दूसरे घटना, सडेन, यह रेखा का दूसरा कोना है। जहां ये दोनों कोने नास्तिक वे हैं, जो माने हुए हैं कि ईश्वर है। लेकिन माने सिर्फ मिलते हैं, वहां वर्तुल पूरा होता है। और इन दोनों के बीच जरा-सा इसीलिए हैं, ताकि शिकायत करने को कोई हो। बस, उनका ईश्वर | भी फासला नहीं है। ये अतियां जरूर हैं, लेकिन अतियां मिलती हुई सिर्फ शिकायत के लिए है; कि वे कह सकें कि देखो यह नहीं हो | अतियां हैं। रहा; यह नहीं हो रहा; यह करो; यह क्यों नहीं किया? इतनी देर _और यह भी ध्यान रहे कि जीवन में जो भी छलांग लगती है, वह क्यों हो रही है ? बिना ईश्वर के किससे शिकायत करिएगा? हमेशा अति से लगती है, मध्य से नहीं लगती। इस कमरे के बाहर आपका ईश्वर सिर्फ आपकी शिकायतों का पंजीभत रूप है। जाना हो, तो या तो इस तरफ की खिड़की खोजनी पड़े या उस तरफ और भक्त का शिकायत से कोई संबंध नहीं है। की खिड़की खोजनी पड़े। लेकिन यहां कमरे के मध्य में खड़े होकर यह जो मैं कहता हूं अनंत प्रतीक्षा, यह शिकायत-शून्य, बाहर जाने का कोई उपाय नहीं है। मध्य से कोई द्वार जाता ही नहीं। शर्तरहित धैर्य है। इसे जरा सोचें। अगर ऐसी आपके पास चित्त की | मध्य का मतलब ही यह हुआ कि द्वार से दूरी है। परिधि पर जाना दशा हो, तो कोई कारण नहीं है कि अभी क्यों घटना न घट जाए। पड़ेगा। अति को पकड़ना पड़ेगा। अनंत धैर्य खुले आकाश की तरह हो जाता है। फिर हृदय के इसलिए दुनिया की सभी साधना-पद्धतियां अतियां हैं। अति का कहीं कोई द्वार, सीमाएं कुछ भी न रहीं। सब खुला है, कुछ बंद न | मतलब है, आखिरी छोर। वहां से छलांग लग सकती है। मध्य से रहा। अब और ज्यादा परमात्मा को उतरने के लिए चाहिए भी क्या? कहां कूदिएगा? कमरे में ही उछलते रहेंगे। किनारे पर जाना पड़े। इतना ही चाहिए। ___एक अति है कि क्षण में घटना घट सकती है। सडेन इसलिए इन दोनों में कोई विरोध नहीं है, पहली बात। ये दोनों एनलाइटेनमेंट को मानने वाला वर्ग है। विशेषकर जापान में झेन एक ही साधना के हिस्से हैं। फकीर, तत्क्षण मानते हैं कि घटना घट सकती है, एक क्षण में घट रह गई दूसरी बात, निश्चित ही ये दोनों अतियां हैं, एक्सट्रीम्स सकती है। और इसी के लिए तैयार करते हैं साधक को कि वह एक हैं। लेकिन एक ही रेखा की दो अतियां हैं। और इस जगत में कोई क्षण के लिए तैयार हो। तैयारी में वर्षों लगते हैं। घटना एक ही क्षण भी रेखा रेखा नहीं है सीधी। सभी रेखाएं वर्तुलाकार हैं। सभी रेखाएं। | में घटती है, लेकिन तैयारी में वर्षों लगते हैं; कभी-कभी जन्म भी बड़े वर्तुल का हिस्सा हैं। लगते हैं। यूक्लिड कहता था, जिसने ज्यामिति खोजी, कि सीधी रेखा होती। ऐसे ही जैसे हम पानी को गरम करते हैं, तो पानी भाप तो एक है। लेकिन फिर आइंस्टीन और बाद के खोजियों ने सिद्ध किया कि क्षण में बन जाता है, सौ डिग्री पर पहुंचा कि भाप बनना शुरू हुआ। सीधी रेखा होती नहीं, स्ट्रेट लाइन होती ही नहीं। क्योंकि जिस लेकिन सौ डिग्री तक पहुंचने में घंटों लग जाते हैं। और इस पर |272
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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