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* एकाग्रता और हृदय-शुद्धि
पीछे है। वह अंत है। वह मूल है। वह उत्स है।
| है कि मैं कौन हूं। सेल्फ रिमेंबरिंग। मेमोरी नहीं, आत्म-बोध, कि अगर हम अपने भीतर के अंतर्यामी को पकड़ लें, वही हम हैं, | मैं कौन हूं! अगर उसमें हम खड़े हो जाएं और ठहर जाएं, तो हम कृष्ण में खड़े आप दुकानदार हैं, यह आत्म-बोध नहीं है। क्योंकि दुकानदार हो गए। और तब हम भी कह सकेंगे कि यह सूरज मेरी ही रोशनी | होना सांयोगिक है; कोई आपका स्वभाव नहीं है। है. और यह चांद मझसे ही चमकता है. औषधियां मझसे ही बडी | लेकिन हम उसको भी स्वभाव की तरह पकड लेते हैं। दकानदार होती हैं; और इस जगत में जो सोम बरस रहा है, वह मैं ही हूं। को दुकान से हटाओ, उसको लगता है, उसकी आत्मा जा रही है।
अंतर्यामी को आप पकड़ लें, तो यही घोषणा जो कृष्ण की है, | नेता को पद से हटाओ, उसको लगता है, मरे; गए। पद के बिना आपकी घोषणा हो जाएगी। और तभी आप समझ पाएंगे कि कृष्ण वह कुछ भी नहीं है। अहंकार के कारण यह घोषणा नहीं कर रहे हैं, यह एक आंतरिक मैंने सुना है, एक गांव से चार चोर निकलते थे। उन्होंने देखा कि अनुभव के कारण कर रहे हैं।
एक नट छलांग लगाकर बड़ी ऊंची रस्सी पर चढ़ गया। और रस्सी और मैं ही सब प्राणियों के हृदय में अंतर्यामीरूप से स्थित हूं | | पर नाचने के कई तरह के करतब दिखाने लगा। उन चोरों ने कहा, तथा मेरे से ही स्मृति, ज्ञान और अपोहन, संशय-विसर्जन होता है। | यह आदमी तो काम का है! इसको उड़ा ले चलें। हमें बड़ी मेहनत और सब वेदों द्वारा मैं ही जानने के योग्य हूं तथा वेदांत का कर्ता | पड़ती है मकानों में चढ़ने में रात। यह तो गजब का आदमी है! एक और वेदों को जानने वाला भी मैं ही हूं।
इशारा करो कि दूसरी मंजिल पर पहुंच जाए। मुझसे ही स्मृति, ज्ञान और अपोहन।
उस नट को उन्होंने उड़ा लिया। रात उन्होंने बड़े से बड़ा जो नगर तीन शब्दों का कृष्ण ने उपयोग किया है, स्मृति, ज्ञान और । | का सेठ था, उसकी हवेली चुनी; जिसको वे अब तक नहीं चुन पाए अपोहन। अपोहन का अर्थ है, संशय-विसर्जन। यह बड़ी समझने थे, क्योंकि हवेली बड़ी थी, चढ़ने में अड़चन थी। की बात है। अपोहन शब्द याद रखने जैसा है।
नट को लेकर वे पहुंचे। बड़े प्रसन्न थे। उन्होंने नट से कहा, अब आपके भीतर सदा ऊहापोह चलता है। ऊहापोह का मतलब है, | | तू देर न कर भाई। एक, दो, तीन, छलांग लगा; ऊपर चढ़। लेकिन यह ठीक कि वह ठीक। यह भी ठीक. वह भी ठीक। कछ समझ नट वहीं खडा रहा। उन्होंने फिर दबारा कहा: नट वहीं फिर खड़ा नहीं पड़ता, क्या ठीक। संशय! मन डोलता रहता है घड़ी के रहा। उन्होंने फिर तीसरी बार कहा। तीसरी बार एक चोर बिलकुल पेंडुलम की तरह, बाएं-दाएं; कहीं ठहरता नहीं मालूम पड़ता। यह | नाराज हो गया, उसने कहा, अभी तू खड़ा क्यों है? चढ़! हमारे ऊहापोह की अवस्था है।
पास ज्यादा समय नहीं है। अपोहन का अर्थ है, इससे विपरीत अवस्था। जहां कोई ऊहापोह | __नट ने कहा, पहले नगाड़ा बजाओ। बिना नगाड़े के कैसे नट नहीं; जहां संशय चला गया; जहां असंशय आप खड़े हो गए। जहां चढ़ सकता है! नगाड़ा जब बजे, तब उसने कहा, मैं...नहीं तो मेरे पेंडुलम घूमता नहीं है; खड़ा हो गया है थिर। जहां कोई कंपन नहीं पैर में गति ही नहीं है। हम खड़े नहीं हैं, कोई उपाय ही नहीं है। है। जहां यह ठीक या वह ठीक, ऐसा भी कोई सवाल नहीं है। जहां | | अब चोर नगाड़ा तो बजा नहीं सकता। पर नट ठीक कह रहा आप सिर्फ खड़े हैं; जहां चुनाव न रहा। जिसको कृष्णमूर्ति था। लेकिन उसको भी खयाल नहीं है कि अगर वह छलांग लगा च्वाइसलेसनेस कहते हैं, वह अपोहन है। जहां सब चुनाव शांत हो | | सकता है, तो नगाड़े से कुछ लेना-देना नहीं है। गए; जहां मुझे चुनना नहीं कि यहां जाऊं कि वहां जाऊं। जहां आप दुकानदार होना आपका, कि डाक्टर होना, कि मजदूर होना, कि बिना चुनाव चुपचाप खड़े हैं; जहां चित्त थिर है।
स्त्री होना, कि पुरुष होना, सांयोगिक है। वह कोई आपका स्वभाव कष्ण कहते हैं. स्मति मैं हं। क्योंकि आपके भीतर जिसको आप नहीं है। और आप वह नहीं रहेंगे, तो सब मिट गया, ऐसा कुछ नहीं स्मृति कहते हैं; उसको कृष्ण स्मृति नहीं कह रहे हैं। जिसको आप है। कुछ नहीं मिटता। उसकी जो स्मृति है, उसको कृष्ण नहीं कह मेमोरी कहते हैं, वह नहीं। कि आपको पता है कि आपका नाम क्या | | रहे हैं कि वह मैं हूं; नहीं तो आप सोचें कि कृष्ण...। है, आपकी तिजोरी में कितना रुपया जमा है, आपकी दुकान कहां कृष्ण कह रहे हैं, आत्म-स्मरण मैं हूं, सेल्फ रिमेंबरेंस मैं हूं। है, इससे प्रयोजन नहीं है स्मृति का। स्मृति से इस बात का प्रयोजन | जिस दिन आप स्मरण करेंगे इन सब संयोगों से हटकर आपका जो
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