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संकल्प-संसार का या मोक्ष का *
इन दो झंडों के नीचे उनकी यात्रा चल रही है। इससे वे बड़े कष्ट चुनाव है। और अगर इस गुलामी को भी मैंने चुना है, तो जिस क्षण में हैं और खंडित हो गए हैं, टूट गए हैं, स्प्लिट। दो आदमी हैं। मैं चाहूं, उसी क्षण तोड़ सकता हूं। यह ध्यान आते ही रुख बदल उनके भीतर। एक राग की तरफ खींचता है, एक वैराग्य की तरफ | जा सकता है। खींचता है।
इसलिए एक क्षण में समाधि लग सकती है, और एक क्षण में इस संताप से कोई आत्म-उपलब्धि होने वाली नहीं है। वैराग्य | | बोध उत्पन्न हो सकता है। बुद्ध होने के लिए अनंत जन्मों की जरूरत और राग साथ-साथ नहीं जी सकते हैं। जब तक राग है, तब तक नहीं है। एक क्षण में भी घटना घट सकती है। वैराग्य को पकड़ भी नहीं सकते आप; सिर्फ सोच सकते हैं शब्दों कृष्ण यही अर्जुन को कह रहे हैं कि मेरा ही अंश तेरे भीतर है, में। शब्दों में सोचने का कोई अर्थ नहीं है; वह निष्प्राण है। सबके भीतर है। उसी अंश ने इंद्रियों को पकड़ा है। और वही अंश ___ मुल्ला नसरुद्दीन और उसकी पत्नी में कुछ खटापटी हो गई, उन इंद्रियों की गंध को ले जाता है नई यात्राओं पर। जिस क्षण तू बोलचाल बंद हो गया, जैसा पति-पत्नी में अक्सर हो जाता है। ऐसे जान लेगा कि तेरा संकल्प ही तेरी यात्रा है, उस क्षण तू चाहे तो तो बोलचाल चलता है, तब भी बंद ही रहता है। लेकिन यात्रा रुक सकती है। और अगर तू यात्रा करना चाहे, तो कर सकता कभी-कभी बिलकुल ही बंद हो जाता है।
है। लेकिन तब यात्रा खेल होगी; तब यात्रा लीला होगी। क्योंकि तू __मुल्ला की पत्नी को सुबह कहीं जाना था जल्दी, सर्दी के दिन | ही कर रहा है; कोई करवा नहीं रहा है। तेरी ही मौज है। थे। तो वह कैसे पति को कहे? और जब भी बोलचाल बंद होता। ___ इस संबंध में यह बड़ी क्रांतिकारी बात है। क्योंकि ईसाई सोचते है, तो पति को ही शुरू करना पड़ता है। पत्नी कभी शुरू नहीं | | हैं कि ईश्वर ने दंड दिया आदमी को, इसलिए संसार है। अदम ने करती। वह स्त्री का स्वभाव नहीं है, पहल करने का, इनीशिएटिव | भूल की, पाप किया, गुनाह किया, तो निष्कासित किया अदम को। लेने का।
मुसलमान भी वैसा ही सोचते हैं। जैन सोचते हैं कि आदमी ने कोई तो पत्नी बड़ी मुश्किल में पड़ी। सर्दी के दिन हैं, सुबह जल्दी | पाप किया, कोई कर्म-बंध किया, उसकी वजह से भटक रहा है। उठना है। तो उसने एक कागज पर लिखकर नसरुद्दीन को दिया कि | बुद्ध भी ऐसा ही सोचते हैं। - मुल्ला, सुबह पांच बजे मुझे उठा देना। नसरुद्दीन ने चिट्ठी खीसे में हिंदुओं का सोचना बहुत अनूठा है। हिंदू चिंतना यह है कि यह रख ली।
तुम्हारा संकल्प है। न तुम्हारा पाप है, न किसी ने तुम्हें दंड दिया है, सुबह जब पत्नी की नींद खुली, तो वह चकित हुई; सूरज उग | न कोई दंड देने वाला बैठा है। और पाप तुम करोगे कैसे? कभी तो चुका था और कोई आठ बज रहे थे। कुछ कह तो सकती नहीं | | तुमने शुरुआत की होगी! कभी तो पहले दिन तुमने किया होगा नसरुद्दीन से, क्योंकि बोलचाल बंद है। आस-पास देखा; एक चिट बिना किसी पिछले कर्म के! आज हो सकता है कि मैं जो कर रहा रखी थी उसके बिस्तर पर, कि देवी जी, पांच बज गए हैं, उठिए। | हूं-पिछले कर्मों के कारण; पिछले जन्म में और पिछले कर्मों के
बस, आपका वैराग्य ऐसा कागजी हो सकता है। उससे आप | कारण। लेकिन प्रथम क्षण में तो बिना किसी कर्म के मैंने कुछ किया उठेंगे नहीं; सोए ही रहेंगे राग में और वैराग्य की चिट्ठियां आपके | होगा। वह मेरा संकल्प रहा होगा। वह मैंने चाहा होगा। आस-पास तैरती रहेंगी। शास्त्र से आया हुआ वैराग्य कागजी होगा। ___ अगर यह मेरी चाह से ही संसार का वृक्ष है, तो मेरी चाह से ही
अपने राग को ठीक से समझें। और यह भी समझें कि यह मेरा | | समाप्त हो जा सकता है। राग संसार में उतरने का संकल्प है. संकल्प है। यह मैंने ही तय किया है, चाहे अनंत जन्मों पहले तय | वैराग्य संसार से पार होने का संकल्प है। किया हो। यह मेरा ही निर्णय है कि मैं शरीर की यात्रा पर जाता है; आज इतना ही। इस संसार के सागर में उतरता हूं; इस संसार के वृक्ष में डूबता हूं; यह मेरा निर्णय है। मैं नियंता हूं। जिस दिन मैं यह निर्णय बदलूंगा, उसी दिन धारा बदल जाएगी। कोई मुझे ले जा नहीं रहा है।
यह हिंदू विचार अनूठा है। कोई मुझे ले जा नहीं रहा है, मैं मालिक हूं; इस गुलामी में भी मैं मालिक हूं। मैं जा रहा हूं, यह मेरा
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