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* गीता दर्शन भाग-7 *
जाते हैं. गंध भी छोड जाते हैं। फिर कोई देह उपलब्ध नहीं होती.
अपने साथ फिर कोई गर्भ उपलब्ध नहीं होता। फिर किसी शरीर में प्रवेश का लेकिन यह तो हमारी समझ में आ जाता है कि इस तरह कोई उपाय नहीं रह जाता। प्रवेश का उपाय आपको साथ लेकर चलना | अपने को आत्मघात करे तो पाप है, बुरा है और इसके दुष्परिणाम पड़ता है।
| होंगे। लेकिन छोटी-छोटी आत्महत्याएं लोग करते हैं, वे हमारी __ और उस शरीर में स्थित हुआ यह जीवात्मा श्रोत्र, चक्षु और समझ में नहीं आती हैं। त्वचा को तथा रसना, घ्राण और मन को आश्रय करके अर्थात इन | | एक आदमी आंखें बंद करके बैठ जाता है। वह एक बटे पांच सबके सहारे से ही विषयों का सेवन करता है।
आत्महत्या हुई, क्योंकि पांच इंद्रियां हैं। एक आदमी ने पांचों को फिर यात्रा शुरू हो जाती है। फिर वही भोग शुरू हो जाता है। | जला लिया, और एक आंख बंद करके बैठ गया। फूल बदल जाते हैं, गंध की यात्रा चलती रहती है। इंद्रियां बदल सूरदास की हमने कथा सुनी है। अगर सूरदास ढंग के आदमी जाती हैं, वासना की यात्रा चलती रहती है।
रहे हों, तो कथा झूठी होनी चाहिए। अगर कथा सच्ची हो, तो इंद्रियों को छोड़ना नहीं है, वासनाओं को छोड़ देना है। इंद्रियां सूरदास ढंग के आदमी नहीं हो सकते। कथा है कि एक सुंदर युवती अपने से छूट जाती हैं। लेकिन हमें इंद्रियां छोड़ना आसान मालूम को देखकर उन्होंने अपनी आंखें फोड़ ली। पड़ता है। कोई भोजन छोड़ देता है; कोई भोजन में नमक छोड़ देता यह तर्क तो समझ में आता है। इस तरह के बहुत सूरदास हैं। है; कोई भोजन में घी छोड़ देता है; कोई भोजन में शक्कर छोड़ देता | लेकिन सुंदर स्त्री की जो वासना उठती है, वह सुंदर स्त्री से नहीं उठ है; कोई आंखें नीची करके चलने लगता है; कोई स्त्री के स्पर्श से | रही है, वह मेरे भीतर से उठ रही है। वह मेरी आंखों से भी नहीं उठ भयभीत हो जाता है; कोई कीमती वस्त्र का स्पर्श नहीं करता। यह | रही। आंखों से मेरे भीतर से आ रही है; आंखों से गुजर रही है। सब इंद्रियों का छोड़ना है।
उस सुंदर स्त्री को शायद पता भी न हो कि कोई उसके पीछे यह वैसे ही है, जैसे कोई जीवन से ऊबा हुआ आदमी आत्महत्या | सूरदास हो गया। और इन आंखों का कोई कसूर भी न था। आंखें कर ले। और आत्महत्या से जीवन समाप्त नहीं होता: सिर्फ देह तो वहीं गई. जहां मैं ले जाना चाहता था। आंखों ने वही देखा. जो बदलती है। मरे नहीं कि नया शरीर ग्रहण हो जाएगा। और मैं देखना चाहता था। आंखों ने वही चाहा, जो मेरी चाह थी। आंखें आत्महत्या करने वाले को और भी विकृत देह के उपलब्ध होने की | मेरा अनुसरण कर रही थी। और मैंने आंखें फोड़ दीं। संभावना है। क्योंकि जिसने अपने को नष्ट करना चाहा, उसका ___ यह आत्महत्या हुई, एक बटा पांच। इस तरह की आत्महत्या चित्त विकृत अवस्था में है। और इस विकृति की छाप उसके ऊपर | करने वाले को हम साधु कहते हैं। मगर यह भी विकृति है। और इस रहेगी, आत्महत्या की।
| तरह की आत्महत्या करने वाला भी दुर्गति को उपलब्ध होता है। __ आपने अपने को आग लगाकर जला लिया। तो एक क्षण में तो सवाल इंद्रियों को नष्ट करने का है ही नहीं; सवाल इंद्रियों से नहीं जल जाएंगे। जलने के पहले सोचेंगे, विचारेंगे, सब विकृति मुक्त होने का है। और इंद्रियों ने आपको नहीं बांधा है, आपने भीतर इकट्ठी होगी। फिर आग लगाएंगे। फिर तड़पेंगे। फिर उस | उनको बांधा है। इसलिए इंद्रियों का कहीं भी कोई कसूर नहीं है। तड़पती हुई आग में बचना भी चाहेंगे, और बच भी न सकेंगे। | आपका भी कोई कसूर नहीं है। अगर आप चाहते हैं यही, तो कोई पुकारेंगे, चीखेंगे, सोचेंगे कि भूल हो गई; बड़ा विषाद उत्पन्न होगा, कसूर नहीं है। पर इसे होशपूर्वक होने दें। फिर इसमें प्रसन्न हों। फिर बड़ा संताप, बड़ी पीड़ा होगी। और उस पीड़ा में मरेंगे। | वैराग्य की कामना न करें। ___ इस पीड़ा की छाप, ये कुंठित वासनाएं, ये जलती हुई आग की राग की कामना कर रहे हैं और वैराग्य के सवाल उठाते हैं, तब लपटें, सब की गंध आपके साथ चली जाएगी। गंध तो जाएगी ही, आप दुविधा में पड़ जाते हैं। दुर्गंध भी जाएगी, उत्तप्तता भी जाएगी। और नया गर्भ आप लेंगे, रोज मेरे पास लोग आते हैं, जिनका कष्ट एक ही है, राग और वह गर्भ भी विकृत, उत्तप्त होगा। उसमें भी आप अपंग पैदा होंगे, वैराग्य की दुविधा। राग तो उनके जीवन का रस है और किन्हीं अंधे पैदा होंगे, टूटे-फूटे पैदा होंगे, खंडहर की तरह पैदा होंगे। सिरफिरों की बातें सुनकर वैराग्य उनको पकड़ गया है। तो वैराग्य क्योंकि खंडहर करने की जो चेष्टा आपने की, उसका संस्कार भी उनके सिर में घूम रहा है। और राग उनकी अवस्था है। अब
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