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* गीता दर्शन भाग-7*
नहीं लौटता। वही मूल-स्रोत है, वही उदगम है।
वैज्ञानिक बड़ी खोज करते हैं कि कोई ऐसा प्रकाश उपलब्ध हो और हे अर्जुन, इस देह में यह जीवात्मा मेरा ही सनातन अंश है | | जाए, जो बिना ईंधन के चले। क्योंकि सब ईंधन चुकते जाते हैं, और वही इन त्रिगुणमयी माया में स्थित हुई मन सहित पांचों इंद्रियों | सब ईंधनों की सीमा है। कोयला खत्म होता जाता है, पेट्रोल खत्म को आकर्षण करता है।
| होता जाता है। आज नहीं कल सब ईंधन चुक जाएंगे। और आदमी उस स्व-प्रकाशित ज्योति-पुंज का एक हिस्सा ही प्रत्येक देह के बिना ईंधन के जी नहीं सकता। तो बड़ी कठिनाई खड़ी हो गई है। भीतर छिपा है।
| वैज्ञानिक सोचते हैं, ईंधनरहित कोई प्रकाश...। __ इसे हम ऐसा समझें। आप आंख बंद कर लें, तो आप अपने और कृष्ण उसी प्रकाश की बात कर रहे हैं। वह प्रकाश प्रत्येक विचारों को देख सकते हैं। आंख बंद है; विचार देखे जा सकते हैं। के भीतर है। लेकिन उसे यंत्र से पैदा करने का कोई भी उपाय नहीं कौन देखता है? भीतर क्रोध उठे, कामवासना उठे, आप उसे भी है। चैतन्य उसी प्रकाश का नाम है। देख सकते हैं। कौन देखता है? वह जो देखने वाला है, उसको आप इस देह में यह जीवात्मा मेरा ही सनातन अंश है-उस परम नहीं देख सकते।
| प्रकाश का ही अंश है-और वही इन त्रिगुणमयी माया में स्थित जिस-जिसको आप देख सकते हैं, वह-वह आप नहीं हैं; यह हुई मन सहित पांचों इंद्रियों को आकर्षण करता है। गणित है। और जो सबको देखता है, लेकिन स्वयं नहीं देखा जा और यह जो चेतना का अंश आपके भीतर है, यही आपकी पांचों सकता, वह आप हैं। वही आपका मूल उत्स है। उससे पीछे जाने | इंद्रियों को अपने में आकर्षित किए हए है. सम्हाले हए है। यह का कोई उपाय नहीं। नहीं तो उसको भी आप देख लेते। उससे | थोड़ा समझने जैसा है। क्योंकि बड़ी भ्रांति है इस संबंध में। पीछे खड़े हो जाते, उसको भी देख लेते। लेकिन उसे आप नहीं | __आमतौर से आदमी सोचते हैं कि इंद्रियों ने आपको बांधा हुआ देख सकते।
है। कृष्ण कह रहे हैं कि आप ही इंद्रियों को पकड़े हुए हैं। इंद्रियां सब देख सकते हैं। शरीर देखा जा सकता है; मन के विचार देखे | | आपको क्या बांधेगी! इंद्रियां जड़ हैं, वे आपको बांधे, इसका कोई जा सकते हैं; हृदय की भावनाएं देखी जा सकती हैं; कुंडलिनी के | | उपाय नहीं है। आप बंधे हुए हैं। और यह आपका ही संकल्प है; अनुभव देखे जा सकते हैं; सब देखा जा सकता है। जो भी देखा | यह आपका ही निर्णय है। इस निर्णय की बड़ी प्रक्रिया है। जा सकता है, वह आपका स्वभाव नहीं है। देखने वाला जो है, वही __आप रूप देखना चाहते हैं। रूप देखने की जो वासना है, वह आपका स्वभाव है। वह जो द्रष्टा है, वह इररिड्यूसिबल है। उसे | आपकी आंखों को आपसे बांधे रखती है। उस वासना के रज्जु से आप दृश्य नहीं बना सकते। उसको आप विषय नहीं बना सकते। आंख बंधी रहती है। अगर आपकी देखने की इच्छा खो जाए, आप वह हमेशा विषयी है। वह हमेशा सब्जेक्ट है; वह आब्जेक्ट नहीं इसी क्षण अंधे हो जाएंगे। हो सकता।
___ मेरे पास एक युवती को लाया गया। वह अचानक अंधी हो गई। जैसे ही सारे विषय खो जाते हैं, और सिर्फ जानने वाला ही रह और चिकित्सकों ने जांच की और पाया कि उसकी आंख में कोई जाता है, और जानने को कुछ नहीं बचता, परम प्रकाश का उदय शारीरिक भूल-चूक नहीं है। आंख बिलकुल ठीक है। इसलिए होता है। यह परम प्रकाश बाहर से नहीं आता, न सूरज से, न चांद इलाज का कोई उपाय नहीं है। और चिकित्सकों ने कहा कि यह तो से; यह आपके भीतर ही छिपा है।
मानसिक अंधापन है; कुछ किया नहीं जा सकता। सुरज भी चुक जाएगा। उसकी गरमी भी कम होती है। यह | किसी ने सुझाव दिया; उसके मां-बाप उस युवती को मेरे पास बिजली भी चुक जाएगी। दीया जलता है; तेल चुक जाएगा, दीया ले आए। मैंने उससे पूछा कि कैसे हुआ? क्या हुआ? क्योंकि अगर बुझ जाएगा। सिर्फ एक ज्योति है, जो कभी नहीं बुझती, क्योंकि वह | | मानसिक घटना है, तो उसका इतिहास होगा। क्योंकि मन तो अतीत बिना ईंधन के जलती है, वह चेतना की ज्योति है। कोई तेल उसे | | से काम करता है, मन तो अतीत है। तो मैंने मां-बाप को कहा कि नहीं जलाता। कोई ईंधन, कोई पेट्रोल, कोई बिजली, कोई हीलियम आप जाएं; मैं उस युवती से अलग से ही बात कर लूं। गैस उसे नहीं जलाती। इसलिए उसके समाप्त होने का कोई उपाय| उससे पूछताछ की, खोजा-बीना, तो पता चला कि पड़ोस के नहीं है। वह शाश्वत है।
युवक से उसका प्रेम है। और उसके बिना वह नहीं रह सकती।
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