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* गीता दर्शन भाग-7 *
सृष्टि के प्रारंभ को पकड़ने की बात व्यर्थ है। वह पकड़ा नहीं | की बात कही, क्योंकि उससे ही आपको दिखाई पड़ेगा कि आप जा सकता, क्योंकि सृष्टि सदा है। यह चक्र घूमता ही रहा है। आप एक उलटे वृक्ष हैं। इस चके पर कब सवार हो गए; आपने कब इससे जोर से गठबंधन __ संसार हो या न हो, आप हैं। और जब आप हैं, तब सारा रहस्य कर लिया; उस बिंदु को पकड़ें।
| खुल गया। तब आपको लगेगा, आपका मूल ऊपर है, शाखाएं उस बिंदु के पहले आप परमात्मा थे, उस बिंदु के बाद आप | नीचे की तरफ हैं। और जिसको आप विकास कह रहे हैं, वह पतन शाखाओं में भटक गए और शाखाएं लंबी हैं और वृक्ष नीचे की है। और जिसको आप पीछे कह रहे हैं, वही अंत है, वहीं पहुंच तरफ बढ़ता जाता है। और जिस दिन आप यह समझ लेंगे कि एक जाना है। क्षण ऐसा भी था, जब आप इस चके को नहीं पकड़े थे, बाहर थे, | आज इतना ही। उसी क्षण यह चका छूट भी जाएगा। क्योंकि तब इसे पकड़ने का कोई सार नहीं है।
जिस क्षण उस आनंद की झलक मिल जाएगी, जो इस संसार में उतरने के पहले थी, उसी क्षण संसार की दौड़ बंद हो जाएगी। क्योंकि हम उसी आनंद को इस संसार में खोजने का प्रयास कर रहे हैं।
यह जो मैंने ध्यान का छोटा-सा प्रयोग कहा, इसे आप करें, तो कृष्ण का जो तात्पर्य है, वह समझ में आएगा।
कृष्ण के शब्दों के तात्पर्य पर तो बहुत टीकाएं लिखी गई हैं। हजारों टीकाएं हैं। पर उन टीकाओं में से एक भी टीका नहीं है, जिसमें यह सझाव दिया हो कि आप अपने मल में लौट जाएं।। इसलिए मैं मानता हूं कि वे टीकाएं शाब्दिक हैं। और उनसे सत्य नहीं पकड़ा जा सकता। उनसे जो आप पकड़ेंगे, वह भी शाब्दिक ही होगा।
मुल्ला नसरुद्दीन के घर में बड़े चूहे थे। और वह परेशान था। और कंजूसी की वजह से चूहादान भी नहीं खरीद सकता था। लेकिन फिर हिम्मत की और खरीद लाया। चूहादान तो खरीद लिया, लेकिन अब मुसीबत यह थी कि उसमें एक रोटी का टुकड़ा भी रखना है। वह भी कंजूसी की वजह से मुश्किल है। तो उसने तरकीब निकाली। होशियार आदमी था, मौलवी था, मुल्ला था, जानता था शास्त्रों को। उसने एक अखबार में से रोटी की फोटो काटकर अंदर रख दी। और रात निश्चित सोया।
सुबह उसने अपना सिर पीट लिया। हुआ कुछ ऐसा कि जब उसने चूहादान खोला, तो रोटी की तस्वीर के पास एक कुतरा हुआ अखबार का टुकड़ा और पड़ा था, जिसमें एक चूहे की तस्वीर थी।
अखबार में छपी रोटी ज्यादा से ज्यादा अखबार में छपे हुए चूहे को पकड़ सकती है, और तो कुछ उपाय नहीं। इन शब्दों की शब्दों से व्याख्या हो सकती है, लेकिन तब आप असली चूहे को नहीं पकड़ पाएंगे। इसलिए मैंने इस पहले ही सूत्र में ध्यान की प्रक्रिया