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* मूल-स्रोत की ओर वापसी *
तक ऐसा हो नहीं पाया पृथ्वी पर, कभी हो पाएगा, इसकी भी | चिकित्सक, मनोचिकित्सक भी उत्सुक और आतुर हो गया। संभावना कम है—किसी दिन अगर मां-बाप ज्यादा विचारशील | | उसने पूछा, कौन-सा स्वप्न है ? उसने कहा, रोज एक स्वप्न देखता होंगे, वस्तुतः धार्मिक होंगे, ऐसे धार्मिक नहीं जैसे कि सभी मां-बाप | | हूं। बैठा हूं अपने मकान के सामने, एक अति सुंदर युवती निकलती अभी हैं, वस्तुतः धार्मिक होंगे, तो वे बच्चे को आगे भी ले जाएंगे
| है और मैं उसके पीछे भागता हं। और वह जाती है और अपने और निरंतर पीछे भी ले जाएंगे। वे बच्चे को कभी भी अतीत के | मकान में चली जाती है, और दरवाजा बंद कर लेती है। मैं दरवाजे बोझ से दबने न देंगे। वे उसके बचपन में लौटने की प्रक्रिया को, | पर खड़ा ठोंक रहा हूं दरवाजा, ठोंक रहा हूं। कई साल हो गए, रोज बचपन में बार-बार डूबने की प्रक्रिया को जिंदा रखेंगे।
यही स्वप्न! अगर आप अपने छोटे बच्चों को रोज कह सकें कि वे रोज का | तो मनोचिकित्सक ने कहा, इस स्वप्न से आप मुक्त होना चाहते दिन पुनः जी लें रात सोने के पहले...। जब वे रात सोने जाएं, तो | हैं? नसरुद्दीन ने कहा, आप गलती समझे। मैं चाहता हूं, वह पीछे लौटें। सुबह से शुरू न करें, पीछे लौटें। बिस्तर पर लेटना दरवाजा बंद न कर पाए।
आखिरी काम है, इससे पीछे लौटें। और एक-एक काम जो इसके मन दौड़ रहा है सपनों में। सपनों में भी महत्वाकांक्षाएं हैं, पहले किया है, उससे शुरू कर सुबह तक वापस जाएं! जब सुबह | उनकी पूर्ति की इच्छा है, दरवाजा बंद न हो पाए। सपने से छूटने वे जगे थे बिस्तर से, वहां तक पीछे लौटें।
को कोई तैयार नहीं है। सपने को सुंदर बनाने की चेष्टा है। इसे __ अगर हर बच्चे को बचपन से सिखाया जा सके रोज पीछे | थोड़ा खयाल रखें। लौटना, तो धूल इकट्ठी न होगी; वह रोज ही अपने कर्म को झाड़ | । मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं कि छुड़ाएं इस संसार से। रहा है। तो जब जवान होगा, तब सच में ही जवान होगा, ताजा | | कोई छूटना नहीं चाहता। वे यह कह रहे हैं, बनाएं इस संसार को होगी। वह जब बूढ़ा होगा, तब भी ताजा होगा। उसके वार्धक्य में | जरा सुंदर, दरवाजा बंद न हो पाए। उनका मोक्ष, उनका स्वर्ग, सब एक गरिमा होगी। उसका वार्धक्य ताजगी से भरा होगा। उसके पीछे | इसी संसार के सुंदर रूप हैं, जहां दरवाजा सदा खुला है। साधारण कोई अतीत नहीं, कोई धूल नहीं है। वह रोज उसे झाड़ता रहा है। आदमी का नहीं; जिनको हम बहुत समझदार, बुद्धिमान कहते हैं, वह रोज साफ करता रहा है।
उनका भी। सपने कैसे सफल हो जाएं। कैसे और सुंदर हो जाएं! घर तो हम साफ करते हैं, रोज करते हैं; स्वयं को हम कभी साफ | | पर जितने ही सुंदर होंगे सपने और जितने ही सफल होंगे, उतने नहीं करते। और धर्म स्वयं को साफ करने से ज्यादा कछ भी नहीं। ही आप खो जाएंगे. उतना ही स्मरण कम रह जाएगा। स्वप्न का है। उसका न कुछ परमात्मा से लेना-देना है, न मोक्ष से। स्वयं को अर्थ ही है स्वयं को खोना, विस्मरण कर देना। साफ करने से उसका संबंध है। क्योंकि स्वयं अगर आप साफ हैं, सारी प्रक्रियाएं स्वयं को स्मरण करने की प्रक्रियाएं हैं। स्वप्न तो आप परमात्मा हैं, आप मोक्ष हैं।
शुरू नहीं हुए थे गर्भ में। वहीं लौट जाना है, जहां स्वप्न की पहली आपकी गंदगी, आप संसार हैं। आपका बोझ, आप संसार हैं। चोट भी नहीं पड़ी थी। आप निर्बोझ, आप परमात्मा हैं।
इसलिए पतंजलि ने योग-सूत्र में कहा है कि समाधि सुषुप्ति की पीछे लौटना सीखें। आगे की दौड़ में ज्यादा शक्ति न गंवाएं। | ही अवस्था है, गहरी निद्रा की अवस्था है। जहां एक भी स्वप्न नहीं, लेकिन सपनों में रस है।
एक भी विचार नहीं। पर सुषुप्ति और समाधि में इतना ही फर्क है मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन अपने मनोचिकित्सक के पास | कि सुषुप्ति में आप बेहोश हैं और समाधि में आप होश से भरे हैं। एक बार गया। और उसने कहा कि मैं बड़ा व्यथित हूं और जब | | होशपूर्वक पीछे लौट जाना है और उस बिंदु को पा लेना है, जहां बहुत थक गया और परेशान हो गया, तब आपके पास आया हूं। | से प्रारंभ है। उस मनोचिकित्सक ने पूछा कि क्या तकलीफ है? नसरुद्दीन ने ___ इस बात की चिंता मत करें कि संसार कैसे प्रारंभ हुआ! इस बात कहा, एक ही स्वप्न बार-बार आता है; रोज आता है। और अब मैं | | की फिक्र मत करें कि संसार को किसने बनाया! क्यों बनाया! थक गया हूं वर्षों से। अब मैं सो भी नहीं पाता। दिनभर भी लगता किसलिए बनाया! इस बात की फिक्र करें कि आप कब प्रारंभ हुए! है, वह स्वप्न रात आएगा; और रात उस सपने में बीतती है। कैसे प्रारंभ हुए! उस क्षण को पकड़ें, जब आप प्रारंभ हुए थे।
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