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* गीता दर्शन भाग-7 *
मनमोल
हर आदमी सोचता है कि मैं सदा ही स्वस्थ होता और कभी | है। जिसे हम खो ही नहीं सकते, वह हमारे सिर पर बोझ हो जाएगा। बीमार न होता, तो बहुत अच्छा। लेकिन आपको पता नहीं। आप ___ अगर परमात्मा कुछ ऐसा हो कि जिसे आप खो ही न सकें, तो जो मांग रहे हैं, वह नासमझी से भरा हुआ है। अगर आप कभी भी आप जितने परमात्मा से ऊब जाएंगे, उतने किसी चीज से नहीं। बीमार न होते, तो आपको स्वास्थ्य का कोई पता ही नहीं चलता। परमात्मा से ऊबने का कोई उपाय नहीं है, क्योंकि क्षण में आप उसे
और अगर आप दुखी न हो सकते होते, तो सुख की कोई प्रतीति | | खो सकते हैं। और जिस दिन आप संसार से ऊब जाएं, उसी क्षण नहीं हो सकती। कैसे होती सुख की प्रतीति? और सत्य अगर | परमात्मा में लीन वापस हो सकते हैं। आपको मिला ही होता हाथ में और असत्य की तरफ जाने का कोई | अगर इस बात को ठीक से समझ लें, तो जीवन की बहुत-सी मार्ग न होता, तो वह सत्य दो कौड़ी का होता, उसका कोई मूल्य समस्याएं साफ हो जाएंगी। आपको कभी पता नहीं चलता। सत्य का मूल्य है, क्योंकि हम उसे | ___ पहला बुनियादी सिद्धांत है कि मनुष्य की आत्मा स्वतंत्रता है, खो सकते हैं
| परम स्वातंत्र्य है, टोटल फ्रीडम। यह जो परम स्वातंत्र्य है चेतना ___ मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि जगत में प्रेम की संभावना है. क्योंकि
का, इसको ही हर
है। जो इसे जान लेता है, वह मुक्त प्रेम खो सकता है। और मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि जिस दिन हम । है। जो इसे नहीं जानता, वह बंधा हुआ है। .
आदमी को अमर कर लेंगे और आदमी की मृत्यु बंद हो जाएगी, लेकिन वह बंधा इसीलिए है कि वह बंधना चाहता है। और तब उसी दिन जीवन में जो भी महत्वपूर्ण है, सब खो जाएगा। सब तक बंधा रहेगा, जब तक बंधन इतना दुख न देने लगे कि उसे महत्वपूर्ण मृत्यु पर टिका है।
तोड़ने का भाव न आ जाए, उससे छूटने का भाव न आ जाए, उससे __ आप प्रेम कर पाते हैं, क्योंकि जिसे आप प्रेम करते हैं, वह कल उठने का भाव न आ जाए। मर सकता है। अगर आपको पता हो कि शाश्वत है सब, न कोई | और इस जगत में कोई भी घटना असमय नहीं घटती: अपने मर रहा है, न कोई मरने का सवाल है, प्रेम तिरोहित हो जाएगा। | समय पर घटेगी। समय का मतलब यह है कि जब आप पक मृत्यु के बिना प्रेम का कोई उपाय नहीं। मृत्यु के बिना मित्रता व्यर्थ | | जाएंगे, तब घटेगी। जब फल पक जाएगा, तो गिर जाएगा। जब हो जाएगी। मृत्यु है, इसलिए मित्रता में इतनी सार्थकता है। मृत्यु न तक कच्चा है, तब तक लटका रहेगा। जिस दिन आपका दख भी होगी, तो जीवन की सारी जिन चीजों को हम मूल्य दे रहे हैं, कोई पक जाएगा संसार के साथ, उस दिन आप तत्क्षण टूट जाएंगे और मूल्य नहीं है। विपरीत से मूल्य पैदा होता है।
परमात्मा में गिर जाएंगे। __इसलिए सुबह जब फूल खिलता है, उसका सौंदर्य सिर्फ खिलने | __ अगर आप अटके हैं, तो इसलिए नहीं कि आपकी साधना में में ही नहीं है, इस बात में भी छिपा है कि सांझ वह मुरझा जाएगा। | कोई कमी है। आप अटके हैं इसलिए कि आप दुख को भी पूरा नहीं
और अगर फूल कभी न मुाए, तो वह प्लास्टिक का फूल हो भोग रहे हैं। आप पकने के भी पूरे उपाय नहीं होने दे रहे हैं। जाए। और अगर बिलकुल ही–वह प्लास्टिक का फूल भी नष्ट समझ लें कि एक फल जो धूप में पकता हो, वह फल अपने को होता है-अगर फूल सदा के लिए हो जाए, तो उसकी तरफ देखने | | छाया में छिपाए हुए है कि धूप न लग जाए। और फिर वह सोच का भी कोई अर्थ नहीं रह जाएगा।
| रहा है, मैं कच्चा क्यों हूं! आप ऐसे ही फल हैं, जो सब तरफ से जीवन की सारी रहस्यमयता विपरीत पर निर्भर है। सत्य का | | अपने को छिपा भी रहे हैं, बचा भी रहे हैं। उससे ही आप बचा रहे मूल्य है, क्योंकि असत्य में उतरने का उपाय है। और परमात्मा में हैं, जिसकी पीड़ा के कारण ही आप मुक्त हो सकेंगे। जाने का रस है, क्योंकि संसार में आने का दुख है। ___ इसलिए मैं निरंतर कहता हूं, संसार में पूरे जाओ, ताकि तुम
लोग मुझसे पूछते हैं, आखिर परमात्मा संसार बना ही क्यों रहा। | संसार के बाहर आ सको। बाहर जाने का एक ही उपाय है कि तुम है? संसार है ही क्यों?
पूरे भीतर चले जाओ; वहां कुछ और जानने को शेष न रह जाए। अगर संसार न हो, तो परमात्मा का कोई भी रस नहीं है। दुख से छूटने की एक ही व्यवस्था है, एक ही विधि है। बाकी परमात्मा अपने से विपरीत को पैदा कर रहा है, ताकि आप उसे खो सब विधियां बहाने हैं। और वह विधि यह है कि तुम दुख को पूरा सकें और पा सकें। और जिसे हम खो सकते हैं. उसे पाने का आनंद | | भोग लो। तुम उसमें पक जाओ। तुम अपने ही आप गिर जाओगे।
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