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गीता दर्शन भाग-7 *
दशा थी, वह टूट जाती है। वह ज्यादा डोसाइल, ज्यादा आज्ञाकारी, | रहे हैं, बल्ब को नहीं तोड़ रहे हैं। बल्ब को तोड़ने का कोई अर्थ ही अनुशासनबद्ध हो जाता है। यह मारने से भी बुरा है। | नहीं है। बल्कि बल्ब तो उपयोगी है। क्योंकि वह बताता है, धारा
देलगाडो ने सुझाव दिया है सारी दुनिया की सरकारों को, कि | बह रही है या नहीं; धारा है या नहीं। आप युद्ध बंद नहीं कर सकते, अपराध बंद नहीं कर सकते। और | | आपके भीतर क्रोध यह बताता है कि अभी आप अज्ञान में डूबे पांच हजार साल का मनुष्य-इतिहास कह रहा है कि कितना ही हैं। वासना बताती है कि अभी आपके प्राण जागरूक नहीं हुए हैं। समझाओ, आदमी को बदला नहीं जा सकता। मेरा सुझाव मान | अगर ये तत्व हमने अलग कर लिए, तो क्रोध प्रकट होना बंद हो लिया जाए।
जाएगा और आपको यह पता चलना भी बंद हो जाएगा कि आप देलगाडो का सुझाव यह है कि ऐसे तत्व विज्ञान ने खोज लिए गहन अज्ञान में पड़े हैं। यह तो ऐसा हुआ, जैसे कोई आदमी बीमार हैं, जिनको सिर्फ पानी में मिला देने की जरूरत है हर नगर की हो और हम उसके बीमारी के लक्षण छीन लें, तो उसे यह भी पता झील में। और आपके घर में पानी तो आ ही रहा है झील से पीने | न चले कि वह बीमार है। के लिए। उस पानी को पीकर ही आप अपने आप लड़ने की वृत्ति और यह भी खयाल में रहे कि क्रोध एक अवसर है। क्रोध सिर्फ से शून्य हो जाएंगे।
बुरा है, ऐसा नासमझ कहते हैं; मैं नहीं कहता। क्रोध एक अवसर लेकिन ध्यान रहे, इस तरह के शामक रासायनिक द्रव्य को | है, उसका आप बुरा उपयोग कर सकते हैं और भला भी। क्रोध एक पीकर जो लड़ने की वृत्ति से शांत हो जाएगा, वह बुद्ध या महावीर मौका है। उसमें आप मूर्छित होकर पागल हो सकते हैं; उसी में नहीं हो जाएगा। उसमें कोई बुद्ध की गरिमा प्रकट नहीं होगी। उसमें | आप जागरूक होकर बुद्धत्व को प्राप्त कर सकते हैं। . तो क्रोध की जो थोड़ी-बहुत गरिमा प्रकट होती थी, वह भी बंद हो | तो अवसर को तोड़ देना उचित नहीं है। जब क्रोध आप में उठता जाएगी। वह केवल निर्जीव हो जाएगा। वह सुस्त और हारा हुआ | | है, अगर आप क्रोध के साथ तादात्म्य कर लेते हैं, एक हो जाते हैं,
के भीतर से प्राण खींच लिए गए हों। वह नींद-नींद तो आप किसी की हत्या कर बैठते हैं। लेकिन अगर आप क्रोध को में चलेगा। लड़ेगा नहीं, क्योंकि लड़ने के लिए भी जितनी ऊर्जा | सजग होकर देखते रहें, तो जो क्रोध किसी की हत्या बन सकता चाहिए, वह भी उसके पास नहीं है।
था, वही क्रोध आपके भीतर नवजीवन का जन्म बन जाएगा। सिर्फ सिर्फ न लड़ने से कोई बुद्ध नहीं होता। बुद्ध होने से न लड़ना आप साक्षी होकर देखते रहें। क्रोध का धुआं उठेगा। बादल घने निकलता है, तब एक गौरव है, गरिमा है। जब आप भीतर इतने ऊंचे होंगे। लेकिन आप दूर खड़े रहेंगे, आप मुक्त होंगे, पार होंगे, शिखर को छू लेते हैं कि लड़ना क्षुद्र हो जाता है, व्यर्थ हो जाता है। अलग होंगे।
एक तो उपाय यह है कि बिजली का बल्ब जल रहा है, हम एक यह अलग होने का अनुभव, क्रोध से ही अलग होने का अनुभव डंडा मारकर इसे तोड़ दें। बल्ब टूट जाएगा, बिजली लुप्त हो | नहीं, शरीर से अलग होने का अनुभव बन जाएगा। क्योंकि क्रोध जाएगी। लेकिन आप डंडा मारकर बिजली को नष्ट नहीं कर रहे हैं। शरीर के गुणों में पैदा हो रहा है।
आप सिर्फ अभिव्यक्ति के माध्यम को तोड़ रहे हैं। बल्ब टूट गया, वासना उठेगी, काम उठेगा, वे भी शरीर के गुणों की परिणतियां बिजली तो अभी भी धारा की तरह बही जा रही है। और जब भी | | हैं, उनका ही वर्तन हैं। असली सवाल यह है कि हम उनके साथ बल्ब आप उपलब्ध कर देंगे, बिजली फिर जल उठेगी। आपने सहयोग करके उनमें बह जाएं या उनके साथ सहयोग तोड़कर साक्षी बिजली नहीं तोड़ी, केवल बिजली के प्रकट होने की जो व्यवस्था की तरह खड़े हो जाएं? हम उनके गुलाम हो जाएं या हम उनके थी, वह तोड़ दी है। बिजली अभी भी बह रही है।
मालिक हो जाएं? हम उन्हें देखें खुली आंखों से या अंधे होकर ये जो आपके शरीर के परमाणु हैं, रासायनिक परमाणु हैं, ये उनके पीछे चल पड़ें? केवल अभिव्यक्ति के माध्यम हैं। इनको हटा लिया जाए, तो | अवसर को मिटा देना खतरनाक है। इसलिए मैं मानता हूं कि आपके भीतर जो छिपा हआ है, वह प्रकट होना बंद हो जाएगा। अगर वैज्ञानिकों की सलाह मान ली गई, तो लोगों का आचरण तो फिर से डाल दिया जाए, फिर प्रकट होने लगेगा।
अच्छा हो जाएगा, लोगों का व्यवहार तो अच्छा हो जाएगा, लेकिन साधना का अर्थ है कि हम बिजली की धारा को ही विलीन कर आत्माएं बिलकुल खो जाएंगी। वह दुनिया बड़ी रंगहीन होगी,
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