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असंग साक्षी... 101
श्री रजनीश के जीवन में त्रिगुणों की अभिव्यक्ति किस प्रकार? / रजोगुण माध्यम था: जीसस और मोहम्मद के लिए / तमोगुण माध्यम था: लाओत्से और रमण के लिए / कृष्ण द्वारा तीनों गुणों का मिश्रित उपयोग / एक गुणी व्यक्ति में संगति / कृष्ण में असंगति / कृष्ण को समग्रता में स्वीकारना कठिन / मेरे द्वारा तमस, रजस और सत्व का अलग-अलग काल-खंडों में उपयोग / गर्भ में बच्चा पूर्ण तमस में-मोक्ष जैसी अवस्था में / मेरे प्राथमिक वर्ष गहन तमस में / निष्क्रियता का साक्षी / दर्शन-शास्त्र की क्लास में सोना : संस्मरण / निद्रा में जागरण का अनुभव / आलसी प्रोफेसर को मात करनाः संस्मरण / विश्वविद्यालय के परम आलस्य के दिन / कमरे की सफाई कभी नहीं / कमरे में सांपों का आना-जाना / मित्रों व प्रोफेसरों द्वारा सहायता / पड़े-पड़े छत को देखना / आलस्य की साधना ः शून्य की अनुभूति / तमस की परिपूर्ण निर्जरा के बाद करुणामय सक्रियता का जन्म / दस-पंद्रह वर्षों की रजोगुणी भाग-दौड़ / खंडन और विवाद की आंधी / रजोगुण के खेल और उनका रस / हरिगिरी बाबा और पुरी के शंकराचार्य से विवाद / रजोगुण का जोशः रजोगुण की आग / रजोगुण की निर्जरा और सत्व गुण का उदय / शून्य, जागरूक शांति-सत्व की / तीनों गुणों की निर्जरा और गुणातीत साक्षी में प्रतिष्ठा / तीन गुणों की आपसी असंगति और गुणातीत की संगति / सात्विक कर्म का फल सुख, ज्ञान और वैराग्य है / तो यदि तमस व रजस गुण साधना का आधार हों तो उनके फलों में क्या भिन्नता होगी? / गुणों के फल निश्चित हैं / द्रष्टा-भाव और तादात्म्यशून्यता से सुख-दुख से दूरी / हर स्थिति में कुंजी एकः साक्षीभाव / रजस या तमस के माध्यम से साधना करने पर वैराग्य के प्रकटीकरण में क्या भिन्नता होगी? / वैराग्य हमेशा सहज / कुछ पाने के लिए किया गया त्याग-सहज वैराग्य नहीं / वैराग्य अर्थात समस्त चाहों का गिर जाना / संतोष-अभी और यहीं / सभी साधना का हल-वैराग्य / अर्जुन रजोगुणी है / निमित्त मात्र होकर युद्ध करने का संदेश / कर्ताभाव हो तो सत्व से भी बंधन / गुणों की प्रक्रियाएं–साक्षी सदा अलग / हारमोंस के खेल / काम, क्रोध-सब प्रकृति के गुणों से / मस्तिष्क के यांत्रिक नियंत्रण के खतरे / देलगाडो द्वारा स्पेन में सांड पर प्रयोग / सारा कर्तृत्व प्रकृति के गुणों का / कर्ताभाव एक भ्रम है / सांख्य की गहरी खोज-प्रकृति और पुरुष की भिन्नता / द्रष्टा क्रिया नहीं-स्वभाव है / द्रष्टा . को कर्ताभाव का भ्रम लेने की क्षमता / महाभारत का युद्ध गुणों का ही वर्तन है-कोई उसमें कर्ता नहीं है / सदा से अलग द्रष्टा की पहचान-तत्क्षण संभव / बुढ़ापे में वासनाओं का क्षीण होना-प्रकृति के गुणों के कारण / साक्षी को पहचानते ही समस्त बंधनों का गिर जाना / कर्म नहीं बांधते-कर्ता बांधता है / संन्यास अर्थात देखने के सिवाय करने को अब कुछ न रहा / कर्ताशून्य कर्म में कोई पाप नहीं / साक्षी है-गुणों के पार, जन्म-मृत्यु के पार।
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संन्यास गुणातीत है ... 117
व्यक्तित्व का रूपांतरण रासायनिक द्रव्यों से भी संभव है-और साधना से भी / इन दोनों विधियों में क्या भिन्नता है? / वासना, क्रोध और हिंसा को रासायनिक द्रव्यों से निर्जीव करना संभव / आचरण बदल जाएगा-चेतना नहीं / आत्मिक उत्थान को खतरा / सेक्स हारमोंस को नष्ट करने पर नपुंसकता फलित-ब्रह्मचर्य नहीं / परिधि पर परिवर्तन-केंद्र में कोई क्रांति नहीं / रासायनिक उपायों से साक्षीभाव पैदा न होगा / साक्षीभाव आंतरिक विकास का फल है / आचरणवादी धर्मों की पूर्ति विज्ञान द्वारा संभव / अपराधियों की रासायनिक चिकित्सा के असफल प्रयोग / अपराधियों को दंडित करना भी काम का नहीं / रूस और चीन में प्रयुक्त विधियां / विद्रोह और बगावत के तत्वों को नष्ट करना / शामक रासायनिक द्रव्य / काम, क्रोध का रूपांतरण / वृत्तियों का साक्षीत्व और तादात्म्य का टूटना / ऊर्जा का सृजनात्मक उपयोग / मूर्छा अधोगमन है और साक्षीत्व-ऊर्ध्वगमन / साधना अनिवार्य कदम है / सात्विक कर्म भी अगर बांधता है, तो उसका फल ज्ञान और वैराग्य क्यों कहा गया है? / ज्ञान और वैराग्य भी बांध सकता है | रहस्य अनंत है / ज्ञान का दावा मूढ़तापूर्ण / जब तक मन शेष है, तब तक बंधन / सत्य की झलकें और अहंकार का खतरा / सुख में तादात्म्य होने का खतरा