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संबोधि और त्रिगुणात्मक अभिव्यक्ति
अनेक लोग सोचते हैं, मरते वक्त राम का नाम ले लेंगे। जिन्होंने जीवनभर नहीं लिया राम का नाम, मरते वक्त उनके गले से वह शब्द न उठेगा। उनके होंठ सूख जाएंगे। उनके हृदय में कहीं छाया भी राम की न मिलेगी। उस वक्त तो वही शब्द उठेगा, जो उन्होंने जिंदगीभर सोचा है । कोई धन सोच रहा था, तो धन उठ सकता है। नोट दिखाई पड़ सकते हैं । तिजोरियां दिखाई पड़ सकती हैं। राम नहीं दिखाई पड़ेंगे।
वही जीवन के अंत में प्रकट होता है, जिसे हमने जीवनभर सम्हाला, बुलाया, निमंत्रण दिया है। इसलिए कल की प्रतीक्षा मत करें। और मृत्यु की राह मत देखें। जीवन ही जगह है, जहां हम अपनी मृत्यु को भी कमाते हैं।
ध्यान रहे, मृत्यु कमाई जाती है, मुफ्त नहीं मिलती। जितना आप कमाते हैं, वैसी मृत्यु हो जाती है। और जैसी मृत्यु, फिर वैसा नया जन्म हो जाता है। मृत्यु बड़ी सार्थक घटना है। क्योंकि नया जन्म उस पर निर्भर होगा। वह बीज है। नया जन्म, उससे वृक्ष बनेगा । जीवन को सत्व की तरफ ले चलें, तो आप स्वर्ग की तरफ अनिवार्य रूप से चलते जा रहे हैं।
स्वर्ग एक मनोदशा है। आप कहां हैं, यह सवाल नहीं है, कि कहीं आकाश में स्वर्ग है, वहां आप हैं। स्वर्ग एक मनोदशा है। आप जहां भी हों, सत्व से भरा हुआ व्यक्ति स्वर्ग में है। आज इतना ही।
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