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________________ - गीता दर्शन भाग-60 जाएं, गीता की बात को मान लें, तो जीवन में, संसार | चिकित्सा खोजी जा सकी है। अगर संसार स्वास्थ्य है, तो धर्म तो में क्या रस बाकी रह जाएगा? | बिलकुल निष्प्रयोजन है। बड रसेल ने ठीक कहा है। उसने कहा है कि दुनिया में धर्म | तब तक रहेगा, जब तक दुख है। इसलिए अगर हमको धर्म को OT भी क्या रस है जीवन में? अभी कर्ता बने हुए हैं गीता | | मिटाना है, तो दुख को मिटा देना चाहिए। 1 के विपरीत, अभी क्या रस है जीवन में? और अगर वह ठीक कहता है। लेकिन दुख मिट नहीं सकता। पांच हजार जीवन में रस ही है, तो गीता को पढ़ने की जरूरत क्या साल का इतिहास तो हमें ज्ञात है। आदमी दुख को मिटाने की है? गीता को सुनने की क्या जरूरत है ? अगर जीवन में रस ही है, | कोशिश कर रहा है। और एक दुख मिटा भी लेता है, तो दस दुख तो धर्म की बात ही क्यों उठानी? परमात्मा और मोक्ष और ध्यान पैदा हो जाते हैं। पुराने दुख मिट जाते हैं, तो नए दुख आ जाते हैं। और समाधि की चर्चा ही क्यों चलानी? | लेकिन दुख नहीं मिटता। अगर जीवन में रस है, तो बात खतम हो गई। रस की ही तो निश्चित ही, हजार साल पहले दूसरे दुख थे, आज दूसरे दुख खोज है। रस ही तो परमात्मा है। बात खतम हो गई। फिर कुछ | हैं। कल दूसरे दुख होंगे। हिंदुस्तान में एक तरह का दुख है, करना नहीं है। फिर और ज्यादा कर्ता हो जाएं, ताकि और ज्यादा | अमेरिका में दूसरी तरह का दुख है, रूस में तीसरी तरह का दुख रस मिले। और संसार में उतर जाएं, ताकि रस के और गहरे स्रोत है। लेकिन दुख नहीं मिटता। मिल जाएं। जमीन पर कोई भी समाज आज तक यह नहीं कह सका कि हमारा अगर जीवन में रस मिल ही रहा है कर्ता बनकर, तो गीता वगैरह दुख मिट गया, अब हम आनंद में हैं। कुछ व्यक्ति जरूर कह सके को, सबको अग्नि में आहुति कर दें। कोई आवश्यकता नहीं है। | हैं कि हमारा दुख मिट गया और हम आनंद में हैं। लेकिन वे व्यक्ति और कृष्ण वगैरह की बात ही मत सुनना। नहीं तो वे आपका रस |. | वही हैं, जिन्होंने धर्म का प्रयोग किया है। आज तक धर्म से रहित नष्ट कर दें। आप बड़े आनंद में हैं, कहां इनकी बातें सुनते हैं! | व्यक्ति यह नहीं कह सका कि मैं आनंद में हूं। वह दुख में ही है। लेकिन आप अगर रस में ही होते, तो यह बात ठीक थी। आपको रसेल ठीक कहता है, धर्म को मिटाना हो तो दुख को मिटा देना रस बिलकुल नहीं है। दुख में हैं, गहन दुख में हैं। हां, रस की आशा | | चाहिए। मैं भी राजी हूं। लेकिन दुख अगर मिट सके, तब। बनाए हुए हैं। जब भी हैं, तब दुख में हैं; और रस भविष्य में है। दो संभावनाएं हैं। दुख मिट जाए, तो धर्म मिट जाए, एक संसार में जरा भी रस नहीं है। सिर्फ भविष्य की आशा में रस है। | संभावना। एक दूसरी संभावना है कि धर्म आ जाए, तो दुख मिट जहां हैं. वहां तो दखी हैं। लेकिन सोचते हैं कि कल एक बड़ा जाए। रसेल पहली बात से राजी है। मैं दसरी बात से राजी हैं। मकान बनेगा और वहां आनंद होगा। जितना है, उसमें तो दुखी हैं। दुख मिट नहीं सकता। लेकिन धर्म आ जाए, तो दुख मिट लेकिन सोचते हैं, कल ज्यादा हो जाएगा और बड़ा रस आएगा। सकता है। धर्म तो चिकित्सा है। वह तो जीवन से दुख के जो-जो कल कुछ होगा, जिससे रस घटित होने वाला है। कारण हैं, उनको नष्ट करना है। जिस कारण से हम दुख पैदा कर कल की आशा में आज के दुख को हम बिताते हैं। वह कल लेते हैं जीवन में, उस कारण को तोड़ देना है। वह कारण है, कर्ता कभी नहीं आता। कल होता ही नहीं। जो भी है, वह आज है। संसार का भाव। वह कारण है कि मैं कर रहा हूं, वही दुख का मूल है। आशा है। उस आशा में रस है। डर लगता होगा कि अगर साक्षी | अहंकार, मैं हूं, वही दुख का मूल है। उसे तोड़ते से ही दुख विलीन हो जाएंगे, तो फिर रस खो जाएगा। क्योंकि साक्षी होते ही भविष्य | हो जाता है और आनंद की वर्षा शुरू हो जाती है। खो जाता है; वर्तमान ही रह जाता है। इसलिए सवाल तो बिलकुल ये मित्र कहते हैं, जीवन में रस क्या रह जाएगा? सही है। जीवन में रस है ही नहीं, पहली बात। पर दूसरी बात सोचने जैसी संसार में रस नहीं है, जो खो जाएगा। क्योंकि संसार में रस है, भविष्य का जो रस है, वह जरूर खो जाएगा। साक्षी के लिए होता, तब तो धर्म की कोई जरूरत ही नहीं थी। संसार में दुख है, कोई भविष्य नहीं है। इसलिए धर्म पैदा हो सका है। संसार में बीमारी है, इसलिए धर्म की । इसे थोड़ा समझें। समय के हम तीन विभाजन करते हैं, अतीत, 1388]
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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