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O गीता में समस्त मार्ग हैं -
चांद-तारों की तारीफ कर रहा था। और कभी मैं सागर की लहरों पास से गुजरते-गुजरते कोई गुरु उसे पकड़ लेता है। लेकिन तब की तारीफ कर रहा था। उन तारीफों में फर्क होगा। क्योंकि गुलाब | | भी गुरु को ऐसी ही व्यवस्था करनी पड़ती है कि शिष्य को लगे कि गुलाब है। चांद-तारे चांद-तारे हैं। लहरें लहरें हैं। और जगत | | उसने ही चुना है। ये जरा जटिलताएं हैं। विराट है।
गुरु को ऐसा इंतजाम करना पड़ता है कि जैसे शिष्य ने ही उसे जो व्यक्ति इन सब के बीच तालमेल बिठालने की कोशिश चुना है। क्योंकि शिष्य के अहंकार को यह बात बरदाश्त के बाहर करेगा, वह मुश्किल में पड़ जाएगा, अड़चन में पड़ जाएगा। होगी कि गुरु ने उसे चुन लिया। वह भाग खड़ा होगा। यह पता चलते तालमेल बिठालने की जरूरत ही नहीं है। आपको इस सब में जो ही कि गुरु ने उसे चुना है, वह भाग जाएगा। तो गुरु उसे इस ढंग से ठीक लग जाए, उस पर चलने की जरूरत है। फिर बाकी बातों को व्यवस्था देगा कि उसे लगे कि उसने ही गुरु को चुना है। और अगर आप छोड़ दें। गीता ज्ञान को भी कहेगी, कर्म को भी कहेगी, भक्ति कभी किसी दिन गुरु को उसे अलग भी करना होगा, तो गुरु ऐसी ही को भी कहेगी। आप फिक्र छोड़ें कि तीनों में कौन श्रेष्ठ है। जो | | व्यवस्था देगा कि शिष्य समझेगा, मैंने ही गुरु को छोड़ दिया है। आपको श्रेष्ठ लग जाए, आप उस पर चल पड़ें।
गुरु का काम जटिल है, और गहन है, और गुह्य है। लेकिन लेकिन कुछ लोग हैं, जो चलते नहीं हैं, जो बैठकर इस चर्चा में | | हमेशा गुरु ही आपको चुनता है, क्योंकि उसके पास दृष्टि है। वह जीवन व्यतीत करते हैं कि क्या श्रेष्ठ है। ज्ञान श्रेष्ठ है ? भक्ति श्रेष्ठ | | जानता है। वह आपके भीतर झांक सकता है। वह आपका है? कर्म श्रेष्ठ है? पूरी जिंदगी लगा देते हैं। इनके मस्तिष्क विक्षिप्त | | आगा-पीछा देख सकता है। आप क्या कर सकते हैं, क्या हो सकते हैं। ये होश में नहीं हैं कि ये क्या कर रहे हैं।
हैं, इसकी उसके पास देखने की दूरी, क्षमता, निरीक्षण है। शिष्य अर्जुन के सामने कृष्ण ने सब मार्ग खोलकर रख दिए हैं। और कैसे खोजेगा? हर मार्ग को उन्होंने इस तरह से प्रस्तावित किया है, जैसा उस मार्ग मेरे पास लोग आते हैं। पश्चिम में बहुत दौड़ है; और पश्चिम से को मानने वाला प्रस्तावित करेगा, पूरी उसकी शुद्धता में। उस मार्ग युवक निकलते हैं गुरु की तलाश में; सारी जमीन को खोज डालते को प्रस्तावित करते समय वे उसी मार्ग के साथ एक हो गए हैं। । | हैं। कभी इस मुल्क में ऐसी दौड़ थी। वह खो गई। यह मुल्क बहुत
कृष्ण तो जानकर गुरु हैं। और बहुत बार ऐसा होता है कि आप | दिन पहले अध्यात्म की दिशा में मर चुका है। जब बुद्ध जिंदा थे, तब जानकर शिष्य नहीं होते। हो भी नहीं सकते। क्योंकि शिष्य को | | इस मुल्क में भी ऐसी दौड़ थी। लोग एक कोने से दूसरे कोने तक इतना भी होश कहां है कि वह क्या है, इसका पता लगा ले। । | घूमते थे गुरु की तलाश में, कि कोई चुंबक मिल जाए, जो खींच ले।
इजिप्त के पुराने शास्त्रों में कहा गया है कि शिष्य कभी गुरु को | | सारी दुनिया से हिंदुस्तान उस समय भी लोग आते थे। नहीं खोज सकता। शिष्य खोजे
व्य खोजेगा कैसे? उसके पास मापदंड कहां अब फिर पश्चिम में एक दौड़ शुरू हुई है। पश्चिम के युवक है? वह कैसे परखेगा कि यही है गुरु? और कैसे परखेगा कि यही | और युवतियां खोजते निकल रहे हैं, गुरु कहां है! गुरु मेरे लिए है? कैसे जानेगा कि यह आदमी ठीक है या गलत __ मेरे पास बहुत लोग आते हैं। मैं उनसे कहता हूं कि तुम खोज न है? क्या है उसके पास मार्ग, दिशासूचक यंत्र जिससे पहचानेगा | पाओगे गुरु को, लेकिन खोज मत बंद करो। खोज जारी रखो, कि इस आदमी के पीछे चलकर मैं पहुंच जाऊंगा? शिष्य कैसे गुरु | ताकि तुम अवेलेबल, उपलब्ध रहो। घूमते रहो। कोई गुरु तुम्हें चुन को खोजेगा?
| लेगा। और तुम्हारी अगर इतनी ही तैयारी हुई कि तुम किसी गुरु से इजिप्त की पुरानी किताबें कहती हैं कि शिष्य कभी गुरु को नहीं चुने जाने के लिए राजी हो गए, और किसी गुरु की धारा में बहने खोजता। इसका यह मतलब नहीं है कि शिष्य को खोज छोड़कर | को राजी हो गए, इतनी तुम्हारी तैयारी रही, तो तुम्हारे जीवन में घर बैठ जाना चाहिए। खोजना तो उसे चाहिए, हालांकि वह खोज | रूपांतरण आसान है। न सकेगा। लेकिन खोजने के उपक्रम में गुरुओं के लिए उपलब्ध | ___ अर्जुन के सामने कृष्ण सारे मार्ग रखे दे रहे हैं। यह सिर्फ मार्ग हो जाएगा। कोई गुरु उसको खोज लेगा।
| रखना ही नहीं है; मार्ग समझा रहे हैं और यहां ऊपर से कृष्ण की हमेशा गुरु ही शिष्य को खोजता है। और गुरु खोजने नहीं| चेतना अर्जुन में झांककर भी देखती जा रही है। कौन-सा मार्ग उसे निकलता, शिष्य खोजने निकलता है। लेकिन अनेक गुरुओं के जमता है! कौन-से मार्ग में वह ज्यादा रस लेता है! कौन-से मार्ग
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