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0 गीता दर्शन भाग-6600
पुरुषः प्रकृतिस्थो हि भुङ्क्ते प्रकृतिजान्गुणान् । सभी की बात कर रहे हैं। कारणं गुणसङ्गोऽस्य सदसद्योनिजन्मसु ।। २१ ।। इस बात के करने का फायदा है। इन सारे मार्गों को अर्जुन समझ
उपद्रष्टानुमन्ता च भर्ता भोक्ता महेश्वरः । ले, तो उसे खयाल में आना कठिन न रह जाएगा कि कौन-सा मार्ग परमात्मेति चायुक्तो देहेऽस्मिन्पुरुषः परः ।। २२ ।। उसके सर्वाधिक अनुकूल है। और जिसे आप नहीं जानते, उससे य एवं वेत्ति पुरुषं प्रकृति च गुणैः सह ।
खतरा है; और जिसे आप जान लेते हैं, उससे खतरा समाप्त हो सर्वथा वर्तमानोऽपि न स भूयोऽभिजायते ।। २३ ।। जाता है। परंतु प्रकृति में स्थित हुआ ही पुरुष प्रकृति से उत्पन्न हुए सभी रास्तों के संबंध में जान लेने के बाद जो निर्णय होगा, वह त्रिगुणात्मक सब पदार्थों को भोगता है। और इन गुणों का ज्यादा सम्यक होगा। इसलिए कृष्ण सभी रास्तों की बात कर रहे हैं। संग ही इसके अच्छी-बुरी योनियों में जन्म लेने में कारण है। | इस अर्थ में, कृष्ण का वक्तव्य, उनका उपदेश बुद्ध, महावीर, वास्तव में तो यह पुरुष इस देह में स्थित हुआ भी पर ही है, | मोहम्मद और जीसस के वक्तव्य से बहुत भिन्न है। केवल साक्षी होने से उपद्रष्टा और यथार्थ सम्मति देने वाला जीसस एक ही मार्ग की बात कर रहे हैं। महावीर एक ही मार्ग होने से अनुमंता एवं सबको धारण करने वाला होने से भर्ता, | की बात कर रहे हैं। बुद्ध एक ही मार्ग की बात कर रहे हैं। कृष्ण जीवलप से भोक्ता तथा ब्रह्मादिकों का भी स्वामी होने से | सभी मार्गों की बात कर रहे हैं। और यह सभी मार्गों की बात जान महेश्वर और शुद्ध सच्चिदानंदघन होने से परमात्मा, | लेने के बाद जब कोई चुनाव करता है, तो चुनाव ज्यादा सार्थक, ऐसा कहा गया है।
ज्यादा अभिप्रायपूर्ण होगा। और उस मार्ग पर सफलता भी ज्यादा इस प्रकार पुरुष को और गुणों के सहित प्रकृति को जो आसान होगी। मनुष्य तत्व से जानता है, वह सब प्रकार से बर्तता हुआ भी बहुत बार तो कोई मार्ग शुरू में आकर्षक मालूम होता है, लेकिन फिर नहीं जन्मता है अर्थात पुनर्जन्म को नहीं प्राप्त होता है। | पूरे मार्ग के संबंध में जान लेने पर उसका आकर्षण खो जाता है।
बहुत बार कोई मार्ग शुरू में बहुत कंटकाकीर्ण और कठिन मालूम
| पड़ता है, लेकिन मार्ग के संबंध में पूरी बात समझ लेने पर सुगम पहले कुछ प्रश्न। एक मित्र ने पछा है कि पुरी गीता हो जाता है। अर्जुन को उसका स्वधर्म और मार्ग समझाने के लिए ___ इसलिए कृष्ण सारी बात खोलकर रखे दे रहे हैं। अर्जुन के कही गई मालूम होती है। क्या कृष्ण और अर्जुन के माध्यम से जैसे वे पूरी मनुष्यता से ही बात कह रहे हैं। बीच गुरु-शिष्य का संबंध है? यदि हां, तो श्रीकृष्ण मनुष्य जिस-जिस मार्ग से परमात्मा तक पहुंच सकता है, वे अर्जुन से उन अनेक मार्गों की अनावश्यक बातें क्यों | सभी मार्ग अर्जुन के सामने कृष्ण खोलकर रख रहे हैं। इन सभी करते हैं, जिन पर अर्जुन को चलना ही नहीं है? | मार्गों पर अर्जुन चलेगा नहीं। चलने की कोई जरूरत भी नहीं है।
लेकिन सभी को जानकर जो मार्ग वह चुनेगा, वह मार्ग उसके लिए
| सर्वाधिक अनुकूल होगा। - स संबंध में पहली तो यह बात जान लेनी जरूरी है कि | | दूसरी बात, कृष्ण और अर्जुन के बीच जो संबंध है, वह गुरु र जिन मार्गों पर आपको नहीं चलना है, उन पर भी | | और शिष्य का नहीं, दो मित्रों का है। दो मित्रों का संबंध और
चलने का झुकाव आपके भीतर हो सकता है। और वह गुरु-शिष्य के संबंध में बड़े फर्क हैं। और इसीलिए कृष्ण गुरु की झुकाव खतरनाक है। और वह झुकाव आपके जीवन, आपकी | | भाषा में नहीं बोल रहे हैं, एक मित्र की भाषा में बोल रहे हैं। वे सभी शक्ति को, अवसर को खराब कर सकता है।
बातें अर्जुन को कह रहे हैं, जैसे वे अर्जुन को परसुएड कर रहे हैं, तो कृष्ण उन सभी मार्गों की बात कर रहे हैं अर्जुन से, जिन पर | फुसला रहे हैं, राजी कर रहे हैं। उसमें आदेश नहीं है, उसमें आज्ञा चलने के लिए किसी भी मनुष्य के मन में झुकाव हो सकता है। | नहीं है। एक मित्र एक दूसरे मित्र को राजी कर रहा है, समझा रहा मनुष्य मात्र जिन मार्गों पर चलने के लिए उत्सुक हो सकता है, उन है। उसमें कृष्ण ऊपर खड़े होकर अर्जुन को आज्ञा नहीं दे रहे हैं;
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