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________________ 0 गीता दर्शन भाग-60 बहिरन्तश्च भूतानामचरं चरमेव च। बहुत कारण हो सकते हैं। सूक्ष्मत्वात्तदविज्ञेयं दूरस्थं चान्तिके च तत् ।। १५ ।। इसलिए भी अच्छा लग सकता है बोलना कि गीता आपको अविभक्तं च भूतेषु विभक्तमिव च स्थितम् । प्रीतिकर हो, आपके धर्म का ग्रंथ हो, तो आपके अहंकार को पोषण भूतभर्तृ च तज्ज्ञेयं ग्रसिष्णु प्रभविष्णु च ।। १६ ।। मिलता हो कि गीता ठीक है। आपकी सांप्रदायिक संस्कार वाली ज्योतिषामपि तज्ज्योतिस्तमसः परमुच्यते। मनःस्थिति को सहारा मिलता हो कि हमारा मानना बिलकुल ठीक ज्ञानं ज्ञेयं ज्ञानगम्यं हदि सर्वस्य विष्ठितम् ।। १७ ।। है, गीता महान ग्रंथ है। तथा वह परमात्मा चराचर सब भूतों के बाहर-भीतर परिपूर्ण | लेकिन सिर्फ बोलना ठीक लगे, तो कोई भी लाभ नहीं है; है और चर-अचर रूप भी वही है। और वह सूक्ष्म होने से | नुकसान भी हो सकता है। कुछ लोग शब्दों में ही जीते हैं। जीवनभर अविज्ञेय है अर्थात जानने में नहीं आने वाला है। तथा अति | पढ़ते हैं, सुनते हैं, और कभी कुछ करते नहीं। ऐसे लोग जीवन को समीप में और अति दूर में भी स्थित वही है। | ऐसे ही गंवा देंगे, और मरते समय सिवाय पछतावे के कुछ भी हाथ और वह विभागरहित एक रूप से आकाश के सदृश परिपूर्ण | | न रहेगा। क्योंकि मैंने क्या कहा गीता के संबंध में, वह मरते वक्त . हुआ भी चराचर संपूर्ण भूतों में पृथक-पृथक के सदृश काम आने वाला नहीं है। आपने क्या किया! सुना, वह मूल्य का स्थित प्रतीत होता है। तथा वह जानने योग्य परमात्मा भूतों नहीं है। क्या किया, वही मूल्य का है। लेकिन करने में कठिनाई का धारण-पोषण करने वाला और संहार करने वाला तथा मालूम पड़ती है। सब का उत्पन्न करने वाला है। सुनने में आपको कुछ भी नहीं करना पड़ता। मैं बोलता हूं, आप और वह ज्योतियों का भी ज्योति एवं माया से अति परे कहा सुनते हैं; करना आपको कुछ भी नहीं पड़ता। सुनने में आपको जाता है। तथा वह परमात्मा बोधस्वरूप और जानने के करना ही क्या पड़ता है? विश्राम करना पड़ता है। करने में आपसे योग्य है एवं तत्वज्ञान से प्राप्त होने वाला और सबके हृदय शुरुआत होती है। और जैसे ही कुछ करने की बात आती है, वैसे में स्थित है। ही तकलीफ शुरू हो जाती है। उन मित्र ने भी पूछा है कि कभी-कभी आप कोई ध्यान का शांत | प्रयोग-सूत्र भी दे दिया करते हैं, यहां तक तो ठीक है...। पहले कुछ प्रश्न। एक मित्र ने पूछा है, आप बोलते | क्योंकि वह प्रयोग भी उन्होंने किया नहीं है। वह भी मैं दे दिया हैं, तो ठीक लगता है। कभी-कभी कोई शांत ध्यान | करता हूं; यहां तक ठीक है। वह शांत प्रयोग भी उन्होंने किया नहीं का प्रयोग-सूत्र भी दे दिया करते हैं। यहां तक तो है। वह भी सुन लिया है। कीर्तन में अड़चन आती है, क्योंकि यहां ठीक है। लेकिन जब आपके कीर्तन का प्रयोग चलता कुछ लोग करते हैं। है, तो मन में वैसा भाव आता ही नहीं कि जैसा मंच अब यहां कुछ लोग करते हैं, तो उससे बचने के दो उपाय हैं। पर सभी लोग इतनी तेजी से नाचा करते हैं! या तो आप समझें कि ये पागल हैं, तब आपको कोई अड़चन न होगी। इनका दिमाग खराब हो गया है, हिप्नोटाइज्ड हो गए हैं, या नाटक कर रहे हैं; बनकर कर रहे हैं; या कुछ पैसे ले लिए होंगे, + न बातें समझनी चाहिए। एक, बोला हुआ ठीक लगना | इसलिए कर रहे हैं। ऐसा सोच लें, तो आपको सुविधा रहेगी, (II बहुत मूल्य का नहीं है। बोला हुआ ठीक लगता है, सांत्वना रहेगी। आपको करने की फिर कोई जरूरत नहीं है। ___यह सिर्फ मनोरंजन हो सकता है, यह केवल एक कुछ लोग करने से इस तरह बचते हैं, वे अपने मन को समझा बौद्धिक व्यायाम हो सकता है। या यह भी हो सकता है कि आप लेते हैं कि कुछ गलत हो रहा है। इसलिए फिर खुद को करने की जो सुनना चाहते हैं, उससे तालमेल बैठ जाता है, इसलिए रसपूर्ण तो कोई जरूरत नहीं रह जाती। लगता है। यह भी हो सकता है कि इतनी देर मन बोलने में उलझ तकलीफ तो उन लोगों को होती है, जिनको यह भी नहीं लगता जाता है, तो आपकी चिंताएं, परेशानियां, अशांति भूल जाती है। कि गलत हो रहा है और करने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाते। ये मित्र 276/
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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