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0 गीता दर्शन भाग-60
तुम्हारे देखने की दृष्टि से ही तो शोध पैदा हुई है; राम की घटना से पैदा नहीं हुई। क्योंकि राम पर तो बहुत लोग शोध करते हैं, लेकिन यह शोध किसी ने भी नहीं की है।
इन सज्जन ने खोजबीन की है कि सीता का निकालना, धोबी का तो बहाना था, राम सीता को निकालना ही चाहते थे।
राम के मन में क्या था, यह तो पता लगाने का कोई उपाय नहीं है। लेकिन जो आदमी यह खोज कर रहा है, इसके मन की स्थिति तो सोचने जैसी हो जाती है।
आप जब तक अपने भीतर परमात्मा को न देख पाएं, तब तक राम में भी दिखाई नहीं पड़ेगा। और जिस दिन आप अपने भीतर देख पाएं, उस दिन रावण में भी दिखाई पड़ेगा। क्योंकि अपनी सारी पीड़ाओं, दुखों, चिंताओं, वासनाओं के बीच भी जब आपको भीतर की ज्योति दिखाई पड़ने लगती है, तो आप जानते हैं कि चाहे कितना ही पाप हो चारों तरफ, भीतर ज्योति तो परमात्मा की ही है। चाहे कांच पर कितनी ही धूल जम गई हो, और चाहे कांच कितना ही गंदा हो | गया हो, लेकिन भीतर की ज्योति तो निष्कलुष जल रही है। ज्योति पर कोई धूल नहीं जमती, और ज्योति कभी गंदी नहीं होती।
हां, ज्योति के चारों तरफ जो कांच का घेरा है, वह गंदा हो सकता है। जब आप अपने गंदे से गंदे घेरे में भी उस ज्योति का अनुभव कर लेते हैं, तत्क्षण सारा जगत उसी ज्योति से भर जाता है। ज्ञानी का लक्षण है, परमात्मा का सर्वत्र अनुभव करना। पांच मिनट रुकेंगे। बीच से कोई उठे न। कीर्तन पूरा हो जाए, तब जाएं।
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