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________________ ॐ गीता दर्शन भाग-500 में एक अनुभव होता है, वह संसार है। परमात्मा को हम अज्ञान न, वे भी नहीं गए हैं। उन्होंने भी खबर सुनी है दो तरह के लोगों में जैसा जानते हैं, उसका नाम संसार है। और ज्ञान में हम जैसा | से। अज्ञानी तो कम से कम सांप देखकर लौटा है। वे उतने भी नहीं संसार को जानते हैं, उसका नाम परमात्मा है। ये दो नाम हैं, ये गए हैं कि सांप भी देखकर लौट आएं। वे अपने घर में ही बैठकर हमारे मन की दो स्थितियों के अनुरूप नाम हैं; इनका दो चीजों से | खबरों का हिसाब जोड़ रहे हैं। कुछ लोग कहते हैं, सांप है; कुछ संबंध नहीं है। लोग कहते हैं, रस्सी है! तो जरूर दो चीजें हैं, इन दोनों के बीच लेकिन आदमी अदभुत है, और होगा, क्योंकि उसकी उलटी क्या संबंध है? बद्धि है। उलटा खड़ा हआ वह जगत को देख रहा है। तो अगर हम | सारी दुनिया में इन दो के बीच, दो के नाम कुछ भी हों-संसार कभी सोचते भी हैं परमात्मा का, तो हम सोचते हैं, परमात्मा कुछ हो, मोक्ष हो; आत्मा हो, पदार्थ हो; माइंड हो, मैटर हो-कुछ भी और है, संसार कुछ और है। दुकान कुछ और है, और मंदिर कुछ नाम हों, इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता। दो के बीच संबंध क्या है? और है। शरीर कुछ और है, और आत्मा कुछ और है। पत्थर कुछ | दुनिया में सैकड़ों दर्शनशास्त्र विकसित हुए हैं। कोई कहता है, दोनों और है, और परमात्मा कुछ और है। जब हम सोचते भी हैं, तो हम | पैरेलल हैं, समानांतर हैं। कोई कहता है, दोनों के बीच संबंध है। दो हिस्सों में सोचते हैं। हम दो अस्तित्व बना लेते हैं। उन दो कोई कहता है, दोनों के बीच कोई भी संबंध नहीं है, दोनों अपने अस्तित्वों के बीच और कठिनाई खड़ी हो जाती है, क्योंकि वे दोनों | स्वभाव से ही वर्तन करते रहते हैं। कोई कहता है कि एक झूठ है, झूठ हैं। वे दोनों झूठ हैं। दूसरा सत्य है। कोई कहता है, दूसरा झूठ है, पहला सत्य है। बुद्ध से कोई पूछता है कि जब आपको ज्ञान हुआ, तो फिर संसार | लेकिन ये सब वे ही लोग हैं, जिन्होंने प्रकाश ले जाकर देखा नहीं और सत्य में क्या संबंध होता है, वह आप बताएं। जब आपको कि वहां दो हैं भी! ज्ञान हुआ, तो आत्मा और शरीर में क्या संबंध होता है, वह आप __ कृष्ण कहते हैं कि अज्ञान, अंधकार मिट जाता है। इस बुद्धियोग बताएं। जब आपको ज्ञान हुआ, तो आप संसार में किस भांति जीते | | के द्वारा जो ज्योतिप्रज्ञा प्रकट होती है, जो ज्योति प्रकट होती है, हैं, वह आप हमें बताएं। अंधकार मिट जाता है। बुद्ध ने कहा कि एक आदमी गुजरता हो रास्ते से, अंधेरा हो, इस अंधकार मिट जाने में दो नहीं रह जाते, एक ही रह जाता है। और रस्सी पड़ी हो, और सांप उसे खयाल में आ जाए। भागे, दौड़े, शायद यह भी कहना ठीक नहीं कि एक रह जाता है, क्योंकि एक तड़फड़ाए, पसीना-पसीना हो जाए। घबड़ा जाए। खून की रफ्तार | से हमें तत्काल संख्या का बोध होता है। इसलिए इस देश ने बड़ा बढ़ जाए। रक्तचाप बढ़ जाए। हृदय की धड़कन होने लगे। बेचैन कीमती शब्द खोजा, अद्वैत। यह भी नहीं कहा कि एक रह जाता है। हो जाए। फिर कोई उसे कहे, घबड़ाओ मत। यह लालटेन हाथ में कहा कि बस, दो नहीं रह जाते। क्योंकि एक रह जाता है, इसमें भी लो और चलो। वह आदमी कहे कि मैं चलूंगा बाद में। मैं आपसे | ऐसा लगता है कि हमें संख्या का आग्रह है। और जब भी आप एक पूछता हूं कि आपने लालटेन लेकर उस सांप को देखा है? अगर का सोचेंगे, तो दो का तत्काल खयाल आएगा। आपने लालटेन लेकर उस सांप को देखा है, तो मुझे यह बताइए | एक का कोई अर्थ ही नहीं होता, अगर दो न होते हों। एक का कि सांप और रस्सी में क्या संबंध है? तो वह आदमी जिसके हाथ | कुछ अर्थ ही होता है दो के संदर्भ में। इसलिए फिर जिन्होंने जाना में लालटेन है, क्या कहेगा? वह कहेगा, जब लालटेन लेकर वहां | था प्रकाश में, उन्होंने इतना ही कहा कि दो नहीं हैं वहां। एक है, कोई जाता है, तो रस्सी ही रह जाती है; सांप होता ही नहीं। और | यह भी हम नहीं कहते। हम इतना ही कहते हैं, दो वहां नहीं हैं। वे जब अंधेरे में कोई जाता है, तो सांप होता है; रस्सी होती ही नहीं। | दोनों वहां नहीं हैं, जो तुमने जाने हैं, जो तुमने सुने हैं। वहां कुछ लेकिन एक आदमी खबर देता है रस्सी की और एक आदमी | | है, एक्स, अज्ञात, रहस्यमय, और वह जानने से ही जाना जा खबर देता है सांप की, तो सुनने वाले को लगता है कि दो चीजें हैं, | सकता है। कहे हुए वक्तव्य, सुने हुए वचन, पढ़े हुए शब्द, उसको सांप है और रस्सी है। फिर वह पूछता है, सांप और रस्सी के बीच नहीं जनाते हैं। संबंध क्या है? फिर बुद्धिमान लोग हैं हमारे पास, जो संबंध के धर्म एक अंतर-क्रांति है, एक अल्केमी है, एक कीमिया है, लिए बड़े-बड़े शास्त्र निर्मित करते हैं कि क्या संबंध है। | जिसमें आदमी अपने को बदले और जानने के नए तलों पर
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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