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गीता दर्शन भाग-5
कहते रहें, उससे कुछ होगा नहीं। आप कहेंगे, कृष्ण तो कहते हैं कि मुझे निरंतर भजते हैं!
इसमें ध्यान रखना, निरंतर शब्द कीमती है। अगर आप राम-राम कहते हैं, तो भी भजन निरंतर नहीं होगा, क्योंकि दो राम के बीच में थोड़ी-सी जगह तो बिना राम के छूट ही जाएगी। मैंने कहा, राम; मैंने फिर कहा, राम, बीच में थोड़ी जगह छूट ही जाएगी। इसलिए कोई कितनी ही तेजी से राम-राम कहे, वह निरंतर भजन नहीं है; उसमें बीच में गैप होंगे; डिसकंटिन्युटी हो जाएगी।
निरंतर भजन का तो एक ही अर्थ हो सकता है कि शब्द न हो, भाव हो, क्योंकि भाव में गैप नहीं होता । भाव में बीच-बीच में अंतराल नहीं होते; शब्द में तो अंतराल होते हैं। शब्द में तो अंतराल होंगे ही, नहीं तो एक शब्द दूसरे शब्द के ऊपर चढ़ जाएगा और शब्दों का अर्थ ही खो जाएगा। वह तो एक्सिडेंट हो जाएगा, जैसे मालगाड़ी टकरा जाएं दो, और डिब्बे एक-दूसरे के ऊपर चढ़
।
शब्दों में तो अंतराल जरूरी है। एक शब्द और दूसरे शब्द के बीच में खाली जगह है। उस खाली जगह में क्या है? जब मैं कहता हूं, राम; और जब मैं कहता हूं, राम; दो राम के बीच में क्या है ? वहां तो राम नहीं होगा। या आप कहेंगे कि हम तीसरा राम वहां रख लेंगे। तो ध्यान रहे, तीसरा राम रख लेंगे, तीन राम हो जाएंगे तीन अंगुलियों की तरह, तो दो अंतराल हो जाएंगे एक ही जगह; ' दो खाली जगह हो जाएंगी! और आप यह सोचते हों कि हम दो में और दो रख लेंगे, तो ध्यान रखना, अंतराल उतने ही बढ़ जाएंगे। अंतराल, इंटरवल, तो रहेगा ही शब्दों में। सिर्फ भाव अविच्छिन्न होता है।
लेकिन भाव बड़ी और बात है। समझाना कठिन है। कबीर ने कहा है...। किसी ने कबीर से पूछा कि कैसे उसका स्मरण करें कि अविच्छिन्न हो? कैसे उसका भजन हो कि बीच में कुछ अंतराल न हो, सतत हो, निरंतर हो? तो कबीर ने कहा, बड़ी कठिन बात पूछी। जाओ नदी के किनारे, वहां से ग्राम-वधुएं पानी भरकर मटकियां सिर पर लेकर गांव की तरफ लौट रही होंगी। तुम जरा उन्हें गौर से देखना ।
गांवों में ग्राम-वधुएं नदी से पानी भरकर घड़ा सिर पर रखकर लौटती हैं, दोनों हाथ छोड़ देती हैं; घड़ा सिर पर होता है। चर्चा करती रहती हैं । गीत भी गा सकती हैं। यात्रा भी करती हैं, चलती भी हैं। लेकिन उस घड़े का स्मरण तो पूरे समय बना रहता है, नहीं तो वह गिर जाए। लेकिन वह स्मरण है शब्दरहित; जस्ट ए
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रिमेंबरिंग विदाउट एनी वर्ड्स; सिर्फ स्मरण है। घड़ा सिर पर है, उसका सिर्फ स्मरण है, भाव है। जरा ही घड़ा डिगेगा, हाथ सम्हाल | लेगा। फिर बातचीत वे करने लगेंगी। भाव का अर्थ है, शब्दरहित बोध |
एक मां है, सो रही है, उसका बच्चा उसके पास सो रहा है। | वैज्ञानिक चिंतक बड़े हैरान हुए। तूफान आ जाए, आकाश में बादल गड़गड़ाने लगें, बिजलियां कौंधने लगें, मां की नींद नहीं खुलती । और बच्चा जरा-सा, जरा-सा हिले-डुले, जरा-सी आवाज कर दे, और मां का हाथ बच्चे के ऊपर पहुंच जाता है। क्या मामला होगा ? आकाश में बादल गरजते हों, तो मां की नींद नहीं टूटती; और | बच्चा जरा-सा कुरमुर कर दे, तो उसकी नींद टूट जाती है!
तो मनोचिकित्सक सोचते थे बहुत कि बात क्या होगी ? तब खयाल में आना शुरू हुआ कि कोई एक शब्दरहित स्मरण, जो भीतर रात नींद में भी मौजूद रहता है! शब्दरहित स्मरण, नींद में भी बना रहता है।
वह जो प्रतीति है, कृष्ण उसी प्रतीति के लिए कह रहे हैं। श्रद्धा और भक्ति से युक्त हुए बुद्धिमानजन मुझ परमेश्वर को निरंतर भजते हैं। निरंतर भजते हैं अर्थात निरंतर मेरे भाव में रहते हैं।
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भाव क्या है? भाव, वह निश्चल ध्यान के द्वारा एकता की जो प्रतीति हुई है, उस प्रतीति को सतत बनाए रखते हैं। बनाए रखते हैं, कहना ठीक नहीं; बनी रहती है। निश्चल ध्यान योग से जो प्रतीति होती है, उस प्रतीति का स्मरण भीतर ऐसे ही बना रहता है, जैसे श्वास चलती रहती है। श्वास में भी गैप होते हैं, उसमें वह गैप भी नहीं होते । श्वास भी चलती है, फिर थोड़ी रुकती है, फिर निकलती है; उसमें भी अंतराल होते हैं, आना-जाना होता है। लेकिन स्मरण सतत होता है।
उस सतत भाव की दशा का नाम ही भक्ति है। और सतत भाव की दशा का नाम ही भजन है।
आज इतना ही।
पांच मिनट रुकें। शायद उस भजन का कोई खयाल यहां चलने वाले भजन से आ जाए। पांच मिनट रुकें। कोई उठे नहीं। जब मैं यहां से उठूं, तभी आपको उठना है। पांच मिनट कीर्तन में सम्मिलित हों।