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________________ गीता दर्शन भाग-58 क्योंकि उनको पढ़ने में किसी की कोई उत्सुकता नहीं है। अखबारों जिसके द्वारा परमात्मा की विराटता क्षुद्रता से जुड़ी होती है, और को चोरों को खोजना पड़ता है, बेईमानों को खोजना पड़ता है, | जिसके द्वारा सागर बूंद से जुड़ा होता है। को, बीमारों को, रुग्ण-विक्षिप्तों को खोजना पड़ता है। कबीर ने कहा है कि मेरी बंद सागर में गिर गई. अब मैं उसे इसलिए अखबार अगर निन्यानबे प्रतिशत राजनीतिज्ञों की खबरों से कैसे खोजूं! भरा रहता है, तो उसका कारण है, क्योंकि राजनीति में निन्यानबे हेरत हेरत हे सखी, रह्या कबीर हेराई; प्रतिशत चोर और बेईमान और सब हत्यारे इकट्ठे हैं। बुंद समानी समुंद में, सो कत हेरी जाई। लेकिन हमें क्यों रस आता है इतना? बूंद खो गई सागर में, उसे कैसे निकालूं वापस। और कबीर आप भागे चले जा रहे हैं दफ्तर। और रास्ते पर दो आदमी छुरा खोजते-खोजते खुद ही खो गया। खोजने निकला था प्रभु को, खुद लेकर लड़ने खड़े हो जाएं, तो आप भूल गए दफ्तर! साइकिल | खो गया। बूंद उसके सागर में गिर गई। अब मैं उस बूंद को कैसे टिकाकर आप भीड़ में खड़े हो जाएंगे। और अगर झगड़ा ऐसे ही | वापस पाऊं! निपट जाए; कोई बीच में आकर छुड़ा दे, तो आप बड़े उदास लौटेंगे यह पहला वक्तव्य है। लेकिन कबीर ने तत्काल दूसरा वक्तव्य कि कुछ भी नहीं हुआ। कुछ होने की घड़ी थी, एक्साइटमेंट था, इसी के नीचे लिखा है और उसमें लिखा हैः । उत्तेजना थी; रस आने के करीब था। कुछ होता; लेकिन कुछ भी | हेरत हेरत हे सखी, रह्या कबीर हेराई नहीं हुआ! कोई नासमझ बीच में आ गया और सब खराब कर समुंद समाना बंद में, सो कत हेरा जाई। दिया। इतना बुराई को देखने का इतना रस क्यों है? बुराई में इतनी खोजते-खोजते कबीर खो गया। और यह तो बड़ी मुश्किल हो उत्सुकता क्यों है? गई। पहले तो मैंने समझा था, बूंद सागर में गिर गई, अब उसे कैसे उसका कारण है। जब भी हमें कोई बुरा दिखाई पड़ता है, हम | | वापस पाऊ! अब मैं पाता हूं कि यह तो सागर ही बूंद में गिर गया, बड़े हो जाते हैं। जब भी हमें कोई भला दिखाई पड़ता है, हम छोटे | अब मैं बूंद को कैसे वापस पाऊ! हो जाते हैं। बूंद सागर में गिरती है, वह हमारा योगशास्त्र है। और जब सागर लेकिन जो बड़े को देखने में असमर्थ है, वह परमात्मा को | बूंद में गिरता है, तब वह भगवान का योग, वह भगवान की समझने में असमर्थ हो जाएगा। इसलिए जहां भी कुछ बड़ा दिखाई | योगशक्ति है। पड़ता हो, श्रेष्ठ दिखाई पड़ता हो, कोई फूल जो दूर आकाश में | निश्चित ही, मिलन तो दो का होता है। यात्रा दो तरफ से होगी। खिलता है बहत कठिनाई से, जब दिखाई पड़ता हो, तो अपने इस एक यात्रा के संबंध में हमने सुना है कि आदमी परमात्मा की तरफ मन की बीमारी से सावधान रहना। परम ऐश्वर्य को कोई समझ | जाता है। एक और भी यात्रा है, जिसमें परमात्मा आदमी की तरफ पाए, तो ही आगे गति हो सकती है। आता है। सच तो यह है कि हम एक कदम चलते हैं परमात्मा की दूसरा शब्द कृष्ण ने कहा है, और मेरी योगशक्ति को। | तरफ, तो तत्काल परमात्मा का एक कदम हमारी तरफ उठ जाता यह थोडा कठिन है। क्योंकि आदमी के लिए योग तो अर्थपर्ण | है। यह संतुलन कभी नहीं खोता। जितना अ है, क्योंकि योग का अर्थ होता है, वह शक्ति, जो व्यक्ति को परमात्मा आपकी तरफ बढ़ आता है। परमात्मा से जोड़ दे। इसे थोड़ा समझें। योग का अर्थ है आदमी के | आप यह मत सोचना कि जब परमात्मा से मिलना होता है, तो लिए, क्योंकि योग का अर्थ है, वह जोड़ने वाली शक्ति, जो परमात्मा के घर में होता है। बिलकुल नहीं। यह बीच यात्रा में होता परमात्मा से जोड़ दे व्यक्ति को, जो क्षुद्र को विराट से जोड़ दे, जो है। आप चलकर पहुंचते हैं कुछ, परमात्मा चलकर आता है कुछ, बूंद को सागर से जोड़ दे। लेकिन परमात्मा की योगशक्ति क्या और ठीक बीच में यह मिलन होता है। होगी? आदमी की योग की प्रक्रिया समझ में आती है, कि आदमी | | आप ही मिलने को आतुर हैं परम से, ऐसा अगर होता, तो योग साधे और परमात्मा को उपलब्ध हो जाए। लेकिन परमात्मा की | जीवन बड़ा साधारण होता। परम भी आतुर है आपसे मिलने को। तरफ से योगशक्ति क्या होगी? वही जीवन का रस और आनंद है। अगर आदमी ही परमात्मा की ठीक विपरीत शक्ति परमात्मा की तरफ से योगशक्ति है। तरफ दौड़ रहा है और यह वन वे ट्रैफिक है, एक ही तरफ से यात्रा त 38|
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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