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________________ ॐ गीता दर्शन भाग-500 एक दफा कहा था, बहुत चिल्लाकर कहा था कि मैं जीसस क्राइस्ट | अपने ही लोग पकड़ेंगे, यह भरोसे के बाहर था। और जीसस को मैं ईश्वर का पत्र हं: मैं तम्हारे लिए संदेश लेकर आया परम जाकर चर्च की एक कोठरी में ताला लगाकर बंद कर दिया गया। जीवन का; और जो मुझे समझ लेगा, वह मुक्त हो जाएगा, क्योंकि आधी रात किसी ने दरवाजा खोला; कोई छोटी-सी लालटेन को सत्य मुक्त कर देता है। लेकिन इस बार, अब तो वे लोग मुझे वैसे लेकर भीतर प्रविष्ट हुआ। जीसस ने उस अंधेरे में थोड़े से प्रकाश ही पहचान लेंगे, घर-घर में तस्वीर है। अब तो कोई जरूरत न होगी में देखा, पादरी है; वही पुरोहित! मुझे घोषणा करने की। वे चुपचाप खड़े रहे। उसने लालटेन एक तरफ रखी, दरवाजा बंद करके ताला लोगों ने पहचाना जरूर, लेकिन गलत ढंग से पहचाना। भीड़ लगाया। फिर जीसस के चरणों में सिर रखा और कहा कि मैं इकट्ठी हो गई, और लोग हंसने लगे, और मजाक करने लगे। और पहचान गया था। लेकिन बाजार में मैं नहीं पहचान सकता हूं। तुम किसी ने कहा कि बिलकुल बन-ठनकर खड़े हो! बिलकुल जीसस हो पुराने उपद्रवी! हमने अठारह सौ साल में किसी तरह व्यवसाय जैसे ही मालूम पड़ते हो! खूब स्वांग रचा है! अभिनेता कुशल हो, | ठीक से जमाया है। अब सब ठीक चल रहा है, तुम्हारी कोई जरूरत जरा भी भूल-चूक निकालनी मुश्किल है! नहीं; हम तुम्हारा काम कर रहे हैं। तुम हो पुराने उपद्रवी! अगर तुम जीसस को कहना ही पड़ा कि तुम गलती कर रहे हो। मैं कोई वापस आए, तो तुम सब अस्तव्यस्त कर दोगे, तुम हो पुराने अभिनय नहीं कर रहा हूं। मैं वही जीसस क्राइस्ट हूं, जिसकी तुम | अराजक। तुम फिर सत्य की बातें कहोगे और सब नियम भ्रष्ट हो पूजा करके बाहर आ रहे हो। तो लोग हंसने लगे और उन्होंने कहा | जाएंगे। और तुम फिर परम जीवन की बात कहोगे, और लोग कि जल्दी से तुम यहां से भाग जाओ, इसके पहले कि मंदिर का स्वच्छंद हो जाएंगे। हमने सब ठीक-ठीक जमा लिया प्रधान पुरोहित बाहर निकले। नहीं तो तुम मुसीबत में पड़ोगे। और | तुम्हारी कोई भी जरूरत नहीं है। अब तुम्हें कुछ भी करना हो, तो रविवार का दिन है, चर्च में बहुत लोग आए हुए हैं, व्यर्थ तुम्हारी | हमारे द्वारा करो। हम तुम्हारे और मनुष्य के बीच की कड़ी हैं। तो मारपीट भी हो जा सकती है। तुम भाग जाओ। मैं तुम्हें भीड़ में नहीं पहचान सकता हूं। और अगर तुमने ज्यादा जीसस ने कहा, क्या कहते हो, ईसाई होकर! पहली दफा जब | गड़बड़ की, तो मुझे वही करना पड़ेगा, जो अठारह सौ साल पहले मैं आया था, तो यहूदियों के बीच में आया था, कोई ईसाई न था; | दूसरे पुरोहितों ने तुम्हारे साथ किया था। हम मजबूर हो जाएंगे तुम्हें तो मुझे कोई पहचान न सका। यह स्वाभाविक था। लेकिन तुम भी सूली पर चढ़ाने को। तुम्हारी मूर्ति की हम पूजा कर सकते हैं और मुझे नहीं पहचान पा रहे हो! तुम्हारे क्रास को हम गले में डाल सकते हैं, और तुम्हारे लिए बड़े • और तभी पादरी आ गया। चर्च के बाहर और लोग आ गए मंदिर बना सकते हैं, और तुम्हारे नाम का गुणगान कर सकते हैं, ' और बाजार में भीड़ लग गई। जीसस पर जो लोग हंस रहे थे, वे | लेकिन तुम्हारी मौजूदगी खतरनाक है। जीसस के पादरी के चरणों में झक-झककर नमस्कार करने लगे। जब भी ईश्वर अपने परम ऐश्वर्य में कहीं प्रकट होगा. तब लोग जमीन पर लेट गए। बड़ा पादरी! बड़ा पुरोहित मंदिर के । | उसकी मौजूदगी खतरनाक हो जाती है। वे जो हमारे क्षुद्र अहंकार बाहर आया है! | हैं, उन क्षुद्र अहंकारों को बड़ी पीड़ा शुरू हो जाती है। जब भी विराट जीसस बहुत चकित हुए। फिर भी जीसस के मन में एक आशा | | ईश्वर सामने होता है, तो हमारा क्षुद्र अहंकार बेचैन हो जाता है। थी कि लोग भला न पहचान पाएं, लेकिन मेरा पुजारी तो पहचान | | हम मरे हुए ईश्वर को पूज सकते हैं, जीवित ईश्वर को पहचानना ही लेगा! लेकिन पादरी के जब लोग चरण छू चुके, और उसने मुश्किल है। आंखें ऊपर उठाकर देखा, तो कहा कि बदमाश को पकड़ो और कृष्ण का यह सूत्र कीमती है। इसमें ऐश्वर्य शब्द को ठीक से नीचे उतारो! यह कौन शरारती आदमी है? जीसस एक बार आ| पहचान लेना। और जहां भी, जहां भी कोई झलक मिले उसकी, जो चुके, और अब दुबारा आने का कोई सवाल नहीं है। पार है, दूर है, तो उसे प्रणाम करना, उसे स्वीकार करना। सको पकड़ लिया। जीसस को अठारह सौ साल पदार्थ में भी झलक मिलती है उसकी। फल पदार्थ ही है। लेकिन पहले का खयाल आया। ठीक ऐसे ही वे तब भी पकड़े गए थे। | जीवंत होकर जब खिलता है, तो पदार्थ के पार जो है, उसकी खबर लेकिन तब पराए लोग थे और तब समझ में आता था। लेकिन अब | आती है उसमें। वीणा भी पदार्थ है। लेकिन जब कोई गहरे प्राणों से
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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