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रूपांतरण का आधार-निष्कंप चित्त और जागरूकता
रहता है।
अनिश्चय में ही करता है। कोई भी कदम उठाता है, तो भी पूरा मन | | ज्यादा हिस्सा जहां कहता है, वहां हम चले जाते हैं। साठ प्रतिशत कभी कोई कदम नहीं उठाता। एक हिस्सा मन का विरोध करता ही | | मन जो कहता है, वही हम हो जाते हैं। चालीस प्रतिशत जो मन
कहता है, उसे हम नहीं करते। बहुमत मन का जो कहता है, हम अगर आप किसी को प्रेम करते हैं, तो भी मन पूरा प्रेम नहीं | उसके पीछे चले जाते हैं। करता; मन का एक हिस्सा, जिसे आप प्रेम करते हैं, उसी के प्रति लेकिन जो अभी बहुमत है, वह कल सुबह तक बहुमत रहेगा, घृणा से भी भरा रहता है। और इसीलिए किसी भी दिन प्रेम घृणा यह पक्का नहीं है। ठीक वैसे ही जैसे पार्लियामेंट में भी पक्का नहीं बन सकता है। मन में घृणा तो मौजद ही है। जिसे आप प्रेम करते है कि जो अभी बहुमत है, वह कल सुबह तक भी बहुमत रहेगा। हैं, किसी भी क्षण उसी के प्रति क्रोध से भर सकते हैं। एक क्षण में दलबदलू वहां ही नहीं हैं, मन के भीतर भी हैं। प्रेम की शीतलता क्रोध की अग्नि बन सकती है, क्योंकि मन तो | सांझ जिसने तय किया था कि सबह चार बजे उठंगा और सोचा क्रोध से भरा ही है।
| था, दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकेगी; सुबह चार बजे घड़ी और पूरे मन से न हम प्रेम करते हैं, और न पूरे मन से हम शांत | का अलार्म बजता है, वही आदमी करवट लेकर कहता है, ऐसी भी होते हैं, और न पूरे मन से हम सच्चे होते हैं। पूरा मन जैसी कोई | क्या बात है, अभी सर्दी बहुत है और अगर आधी घड़ी सो भी लिए, चीज ही नहीं होती। यह समझने में थोड़ी कठिनाई पड़ेगी। तो हर्ज क्या है! वही आदमी सुबह सात बजे उठकर पछताता है .. जहां पूरा हो जाता है मन, वहां मन समाप्त हो जाता है। जब तक | और कहता है, यह कैसे हुआ! क्योंकि मैंने संकल्प किया था कि अधूरा होता है, तभी तक मन होता है। इसे हम ऐसा समझें कि चार बजे उठूगा ही, चाहे कुछ भी हो जाए। फिर मैं चार बजे उठा अधूरा होना, मन का स्वभाव है। अपने ही भीतर बंटा होना, मन क्यों नहीं? दुखी होता है। का स्वभाव है। अपने ही भीतर लड़ते रहना, मन का स्वभाव है। - ये तीन बातें एक ही आदमी कर लेता है! सांझ तय करता है, द्वंद्व, कलह, खंडित होना, मन की नियति और प्रकृति है। | उलूंगा, चाहे कुछ भी हो जाए। चार बजे तय कर लेता है, छोड़ो भी,
आपने जीवन में बहुत बार निर्णय लिए होंगे, रोज लेने पड़ते हैं, | | कुछ ऐसा उठना अनिवार्यता नहीं है; किसी की गुलामी तो नहीं है। लेकिन मन से कभी कोई निर्णय पूरा नहीं लिया जाता। मेरे पास | घड़ी बज जाए, हम कोई घड़ी के गुलाम तो नहीं हैं कि उठ जाएं। लोग आते हैं, वे कहते हैं, संन्यास हमें लेना है, लेकिन अभी सत्तर | और सुबह सात बजे यही आदमी पछताता है। प्रतिशत मन तैयार है; अभी तीस प्रतिशत मन तैयार नहीं है। कोई यह एक ही आदमी इसलिए कर पाता है, क्योंकि मन का बहुमत आता है, वह कहता है, नब्बे प्रतिशत मन तैयार है; अभी दस | बदल जाता है। सांझ नब्बे प्रतिशत से निर्णय लिया था, लेकिन उसे प्रतिशत मन तैयार नहीं है। जब मेरा परा मन तैयार हो जाएगा. तब भी पता नहीं कि छः घंटे सोने के बाद आलस्य की ताकतें बढ़ गई मैं संन्यास में छलांग लगाऊंगा। मैं उनसे कहता हूं कि पूरा मन | | होंगी; और नींद के क्षण में मन का वह हिस्सा वजनी हो जाएगा, तुम्हारा किसी और चीज में कभी तैयार हुआ है?
जो रात को कमजोर था; सांझ अल्पमत में था, सुबह चार बजे पूरा मन कभी तैयार होता ही नहीं। और जब कोई व्यक्ति पूरा | बहुमत में हो जाएगा। फिर वही आदमी सात बजे पछताता है, तैयार होता है, तो मन शून्य हो जाता है; मन तत्क्षण विदा हो जाता | क्योंकि सुबह जागकर सांझ की बुद्धि का खयाल आता है। होश है। अधूरे आदमी के पास मन होता है, पूरे आदमी के पास मन नहीं | | बढ़ता है। सुबह के सूरज के साथ भीतर भी प्रकाश बढ़ता है। वह होता। बुद्ध, या राम, या कृष्ण जैसे व्यक्तियों के पास मन नहीं | | जो अल्पमत में हो गया था चार बजे रात के अंधेरे में, वह फिर होता। और जहां मन नहीं होता, वहीं आत्मा के दर्शन, वहीं बहुमत में हो गया है। पछतावा शुरू हो जाता है। यह आदमी सांझ परमात्मा की झलक मिलनी श
| फिर तय करेगा, रात फिर बदलेगा, सुबह फिर पछताएगा। पूरी साधारण-सी बात में भी मन झिझकता है! बाएं रास्ते से जाऊ || जिंदगी आदमी की ऐसी है। या दाएं से, तो भी मन सोचता है। तो भी आधा मन कहता है बाएं | मन कोई भी निर्णय पूरा नहीं ले पाता। से, आधा मन कहता है दाएं से। और अगर हम कभी जाते भी हैं, | | सुना है मैंने, बंगाल में एक भक्त हुआ। कभी मंदिर में नहीं तो वह निर्णय डेमोक्रेटिक होता है, पार्लियामेंटरी होता है। मन का गया। पिता बहुत धार्मिक थे। तो पिता चिंतित थे, स्वभावतः।