________________
* आंतरिक सौंदर्य
यहां कोई भूत-प्रेत न हो! थालियां तिरोहित हो गईं, भूत-प्रेत चारों और जैसे आप हैं, वैसे ही सत्य का आपको अनुभव होता है। तरफ खड़े हो गए। वह घबड़ाया कि यह तो बड़ा उपद्रव है, कोई | अगर आप रस से भरे हैं, प्रेम से भरे गए हैं, तो सत्य जिस रूप में गला न दबा दे! भूत-प्रेतों ने उसका गला दबा दिया। प्रकट होता है, वह प्रेम होता है। अगर आप गणित, तर्क, विचार, ___आपको अगर कल्पवृक्ष मिल जाए, तो भागना, क्योंकि आपको साधना, तप, हिसाब से भरे गए हैं, कैलकुलेटेड, तो जो सत्य अपनी इच्छाओं का कोई पक्का पता नहीं कि आप क्या मांग बैठेंगे! प्रकट होता है, उसका रूप गणित होता है। क्या आपके भीतर से निकल आएगा! आप झंझट में पड़ जाएंगे, अरस्तू ने कहा है कि परमात्मा बड़ा गणितज्ञ है। किसी और ने वहां पूरा हो जाता है सब कुछ।
नहीं कहा। क्योंकि अरस्तू बड़ा गणितज्ञ था। और अरस्तू सोच ही __मनसविद कहते हैं कि कल्पवृक्ष की कल्पना गर्भ की ही अनुभूति नहीं सकता था परमात्मा की और कोई छवि, जो गणित से भिन्न हो।
और स्मति का विस्तार है। गर्भ में बच्चा जो भी चाहता है. चाहने | क्योंकि गणित अरस्तू के लिए परम सत्य है। और गणित से ज्यादा के पहले–कल्पवृक्ष के नीचे तो पहले चाहना पड़ता है, फिर सत्यतर कुछ भी नहीं है। इसलिए अरस्तू को लगता है, परमात्मा मिलता है-गर्भ में बच्चा चाहता है, उसके पहले मां के शरीर से | भी एक बड़ा गणितज्ञ है और सारा जगत गणित का एक खेल है। उसे मिल जाता है। बच्चे को कभी वासना की पीड़ा नहीं होती। जो मीरा से कोई पूछे, तो मीरा कहेगी, परमात्मा एक नर्तक है। सारा मांगता है, मांगने के पहले मिल जाता है। वह तृप्त होता है, पूर्ण जगत नृत्य का एक विस्तार है। तृप्त होता है।
- अगर बुद्ध से कोई पूछे, तो बुद्ध कहेंगे, परम शून्य, शांति, ___ यह जो कृष्ण का विराट, विकराल, भयंकर रूप देखकर अर्जुन | | मौन। विराट मौन, जहां कुछ भी नहीं है; न लहर उठती है, न मिटती घबड़ा गया है। वह कह रहा है, तुम चारों हाथ वाले गर्भ बन है। सदा से ऐसा ही है। जाओ। मैं तुममें डूब जाऊं, तुम्हारे प्रेम में, तुम्हारी सुरक्षा में। जो यह प्रत्येक व्यक्ति जिस तरह से पहुंचता है, जो उसके पहुंचने मैंने देखा है, इसको बैलेंस कर दो। दूसरे पलड़े पर इतना ही प्रेम, | की व्यवस्था होती है, जो उसका अपना व्यक्तित्व का ढांचा होता इतनी ही सुरक्षा बरसा दो।
है, उसके अनुकूल परमात्मा उसे प्रतीत होता है। और जब वह उसे कृष्ण कहते हैं, तेरे लिए, जो अति दुर्लभ है और देवता भी जिसे भाषा देता है, तब और भी अनुकूल हो जाता है। देखने को तरसते हैं, वह मैं तेरे लिए प्रकट करता हूं। हे अर्जुन, न | | कृष्ण कह रहे हैं कि तप से तो यह रूप मिलने वाला नहीं, वेदों से, न तप से, न दान से, न यज्ञ से, इस प्रकार चतुर्भुज रूप | क्योंकि तपस्वी इस रूप की मांग भी नहीं करता। वाला मैं देखा जाने को शक्य हूं, जैसा तू मुझे देखता है। परंतु हे महावीर की हम सोच भी नहीं सकते कि वे कहें कि सत्य, चार श्रेष्ठ तप वाले अर्जुन, अनन्य भक्ति करके तो इस प्रकार चतुर्भुज | भुजाओं वाला हमारे सामने प्रकट हो! असंभव। अशक्य। रूप वाला मैं प्रत्यक्ष देखने के लिए और तत्व से जानने के लिए अकल्पनीय। महावीर कहेंगे कि क्या मतलब है चार भुजाओं वाले तथा प्रवेश करने के लिए अर्थात एकीभाव से प्राप्त होने के लिए | से! ऐसे सत्य की कोई जरूरत नहीं। महावीर के लिए सत्य कभी भी शक्य हूं।
चार भुजाओं वाला सोचा भी नहीं जा सकता। जो छीन-झपट करता है तप से, जो सौदा करता है कि मैं यह ___ अर्जुन कह रहा है कि चार भुजाओं वाला सत्य। प्रेमपूर्ण सत्य। देने को तैयार हूं, मुझे यह अनुभव चाहिए, उसको तो यह अनुभव | मां के हृदय जैसा, गर्भ जैसा सत्य। जहां मैं सुरक्षित हो जाऊं। मैं नहीं मिल पाता, क्योंकि यह अनुभव प्रेम का है। सत्य को | | भयभीत हो गया हूं। एक छोटे बच्चे की पुकार है, जो इस जगत में रूखा-सूखा साधक पा लेता है; लेकिन चार भुजाओं वाला, | अपनी मां को खोज रहा है। इस पूरे अस्तित्व को जो मां की तरह प्रेमपूर्ण, भक्त ही पा पाता है। साधक भी सत्य को पा लेता है। | देखना चाहता है। लेकिन उसका जो अनुभव होता है, वह सत्य का होता है, | | तो कृष्ण कहते हैं, लेकिन अनन्य भक्ति से जिसने पुकारा हो, मैथमेटिकल, गणित का। भक्त का जो सत्य का अनुभव होता है, | प्रेम से जिसने पुकारा हो, उसके लिए मैं प्रत्यक्ष हो जाता हूं इस रूप वह होता है काव्य का, प्रेम का। गणित का नहीं, पोएटिकल। भक्त | | में। न केवल प्रत्यक्ष हो जाता हूं, बल्कि वह मुझमें प्रवेश भी कर पहुंचता है रस से डूबा हुआ।
| सकता है और मेरे साथ एक भी हो सकता है।
439]