SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 433
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॐ मनुष्य बीज है परमात्मा का 0 के महल में एक कुत्ता घुस गया। राजा ने जो महल बनाया था, | लेने जरूरी हैं। और पहला सूत्र यह है कि अंत में जो आप हो उसमें उसने हजारों कांच के टुकड़े लगाए थे। हर कांच का टुकड़ा जाएंगे, वह आप आज और अभी-यहीं हैं। कितना ही समय लगे, एक दर्पण था। कुत्ता जब अंदर गया, तो उसने देखा कि लाखों कुत्ते | लेकिन समय केवल वही प्रकट कर पाएगा, जो आपमें छिपा था। खड़े हैं। हर कांच के दर्पण में एक-एक कुत्ता खड़ा था, पूरा का | महावीर को, बुद्ध को, कृष्ण को हम भगवान कहते हैं इसीलिए परा। ऐसा नहीं कि एक टकडा कि लाख कांच लगे थे. तो लाख कि उनमें वह प्रकट हो गया है. जो हममें प्रकट नहीं है। लेकिन टुकड़े हो गए कुत्ते के और एक-एक टुकड़ा एक-एक कांच में | | हममें और उनके स्वभाव में कोई फर्क नहीं है। सिर्फ अभिव्यक्ति दिखाई पड़ने लगा। लाख कांच लगे थे, तो लाख कुत्ते हो गए, पूरे | | का फर्क है। के पूरे। पूरा कुत्ता टुकड़ों में दिखाई पड़ने लगा। ऐसा समझिए कि दो कवि हैं। एक कवि चुप बैठा है और एक __ कुत्ता घबड़ाया, भौंका। लाख कुत्ते भौंके। कुत्ता घबड़ा गया और | कवि गा रहा है। जो गा रहा है, वह आपको कवि मालूम पड़ेगा। भी ज्यादा। क्योंकि लाख कुत्ते भौंक रहे थे चारों तरफ से। चीखा। | जो चुप है, वह कवि नहीं मालूम पड़ेगा। लेकिन कवि होने में जरा दौड़ा। कुत्ता कांच के आईनों की तरफ दौड़ा। कांच के आईनों के भी अंतर नहीं है। वह भी गाएगा। वह भी गा सकता है। वह गाएगा कुत्ते कुत्ते की तरफ दौड़े। कुत्ता वहां मर गया उसी रात। लड़ता रहा | ही; भीतर उसके गीत मौजूद है, वह प्रकट होगा। रातभर। मर गया। एक बीज पड़ा है और एक वृक्ष लगा है। वृक्ष में फूल खिल गए करीब-करीब आदमी की हालत ऐसी है। आपमें परमात्मा पूरा | हैं, और बीज में तो कुछ भी पता नहीं चलता है, कंकड़-पत्थर की प्रतिबिंबित हो रहा है। आप एक दर्पण हैं, एक मिरर। हर आदमी | | तरह पड़ा हुआ है। आपको वृक्ष अलग दिखाई पड़ता है, आप वृक्ष एक मिरर है। और आदमी ही क्यों, पौधा, पशु, पक्षी, सभी; | | को नमस्कार करते हैं, बीज को नहीं। लेकिन बीज में भी वृक्ष छिपा समस्त कण इस जगत के दर्पण हैं। और आपमें परमात्मा पूरा | | है। और यह जो वृक्ष आज खड़ा है, कल यह भी बीज की तरह कहीं छलक रहा है, पूरा उसका प्रतिबिंब बन रहा है; कट नहीं गया, | | पड़ा था। और आज जो बीज की तरह पड़ा है, कल भविष्य में वृक्ष टुकड़ा नहीं हो गया। लेकिन आप अपने में बनते प्रतिबिंब को नहीं | हो जाएगा। देख रहे हैं। आप भी उस कुत्ते का व्यवहार कर रहे हैं। आप.भौंक | | आप बीज हैं परमात्मा के, जब मैं जोर देता हूं कि आप परमात्मा रहे हैं आस-पास के दर्पणों में, वहां से उत्तर आ रहा है। घबड़ा रहे | | हैं। इसकी स्वीकृति, इसका सहज स्वीकार आपके विकास में हैं, परेशान हो रहे हैं! सहयोगी, साथी बन जाता है। इसका अस्वीकार संकुचन दे देता है। जिंदगी एक चिंता है, क्योंकि संघर्ष है चारों तरफ। वह कुत्ता जैसे आप अपने भीतर कुंद होकर बंद हो जाते हैं। फिर आपकी मर्जी। मर गया उस रात उस महल में, हम भी संसार में ऐसे ही परेशान __ अब हम सूत्र को लें। होकर मरते हैं। और जिससे हम परेशान हो रहे थे, वह और हम, | हे विश्वमूर्ते! मैं पहले न देखे हुए आश्चर्यमय आपके इस रूप एक का ही प्रतिबिंब थे। और जिससे हम परेशान हो रहे थे, वह | | को देखकर हर्षित हो रहा हूं। और मेरा मन भय से अति व्याकुल हमारी ही छाया थी और हम उसकी छाया थे। लेकिन यह गहन भी हो रहा है। इसलिए हे देव! आप उस अपने चतुर्भुज रूप को ही अनुभव तभी संभव हो पाता है, जब विचार की एक पृष्ठभूमि तैयार | मेरे लिए दिखाइए। हे देवेश! हे जगनिवास! प्रसन्न होइए। हो जाए। पहले न देखे हुए आश्चर्यमय आपके इस रूप को देखकर हर्षित जब मैं कहता हूं कि आप परमात्मा हैं, तो सिर्फ इसलिए कि एक | भी हो रहा हूं। और मेरा मन भय से अति व्याकुल भी हो रहा है। विचार की भूमिका तैयार हो जाए और फिर आप इस यात्रा पर | | अर्जुन बड़ी दुविधा में है। दोहरी बातें एक साथ हो रही हैं। निकल पाएं। राबिया, एक सूफी फकीर औरत के बाबत सुना है मैंने कि वह आप जिद्द करते हैं कि नहीं हैं। आप जिद्द यह कर रहे हैं कि हमें | | हंसती भी थी और रोती भी थी, साथ-साथ! और जब लोग उससे इस यात्रा पर नहीं जाना हो, आपकी मर्जी। आपको | पूछते कि राबिया, क्या त पागल हो गई? त हंसती भी है और रोती जबर्दस्ती इस यात्रा पर नहीं भेज सकता है। भी है, साथ-साथ! हमने रोते हुए लोग भी देखे, हमने हंसते हुए लेकिन अगर जाना हो, तो आपको इस यात्रा के कुछ सूत्र समझ लोग भी देखे। बाकी दोनों साथ-साथ करता हुआ हमने कभी नहीं 403]
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy