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________________ चरण-स्पर्श का विज्ञान* दोनों थे, तो एक का ही भोजन हो सकता था। मांगने वाला। अन्यथा हम प्रार्थना ही नहीं करते। जब मांगना होता तो विवेकानंद मां को कहकर कि मैं आज घर भोजन नहीं लूंगा, | | है, तभी प्रार्थना करते हैं। जब नहीं मांगना होता, तो प्रार्थना भी खो किसी मित्र के घर निमंत्रण है, मां भोजन कर ले, इसलिए घर से जाती है। हमारी सारी प्रार्थना भिक्षु की, मांगने वाले की प्रार्थना है। बाहर चले जाते। कहीं भी गली-कूचों में चक्कर लगाकर-कोई हम भिक्षा-पात्र लेकर ही परमात्मा के सामने खड़े होते हैं। यह ढंग मित्र का निमंत्रण नहीं होता-वापस खुशी लौट आते कि बहुत उचित नहीं है। यह प्रार्थना का ढंग ही नहीं है। फिर प्रार्थना क्या है ? अच्छा भोजन मिला, ताकि मां भोजन कर ले। साधारणतः लोग समझते हैं कि प्रार्थना कुछ करने की चीज रामकृष्ण को पता लगा तो उन्होंने कहा, तू भी पागल है। तू है कि आपने जाकर स्तुति की, कि गुणगान किया, कि भगवान जाकर मां से क्यों नहीं मांग लेता! तू रोज यहां आता है। जा मंदिर की बड़ी प्रशंसा की-कुछ करने की चीज है। प्रार्थना न तो मांग है में और मां से मांग ले, क्या तुझे चाहिए। रामकृष्ण ने कहा तो और न कुछ करने की चीज है। प्रार्थना एक मनोदशा है। विवेकानंद को जाना पड़ा। रामकृष्ण बाहर बैठे रहे। आधी घड़ी | | उचित होगा कहना कि प्रार्थना की नहीं जाती, आप प्रार्थना में हो बीती। एक घड़ी बीती। घंटा बीतने लगा। तब उन्होंने भीतर | | सकते हैं। यू कैन नाट डू प्रेयर, यू कैन बी इन इट। प्रार्थना में हो झांककर देखा। विवेकानंद आंख बंद किए खड़े हैं। आंख से आनंद सकते हैं, प्रार्थना की नहीं जा सकती। वह कोई कृत्य नहीं है कि के आंसू बह रहे हैं। सारे शरीर में रोमांच है। आपने कुछ किया-घंटा बजाया, नाम लिया। वे सब बाह्य फिर जब विवेकानंद बाहर आए, तो रामकृष्ण ने कहा, मांग उपकरण हैं। प्रार्थना भीतर की एक मनोदशा है; एस्टेट आफ माइंड। लिया मां से? विवेकानंद ने कहा, वह तो मैं भूल ही गया। जो मिला दो तरह की मनोदशाएं हैं। मांग, डिजायर, वासना। वासना है, वह इतना ज्यादा है कि मैं तो सिर्फ अनुग्रह के आनंद में डूब कहती है, यह चाहिए। मन की एक दशा है कि यह चाहिए, यह गया। अब दोबारा जब जाऊंगा, तब मांग लूंगा। चाहिए, यह चाहिए। चौबीस घंटे हम वासना में हैं, यह चाहिए, दूसरे दिन भी यही हुआ। तीसरे दिन भी यही हुआ। रामकृष्ण ने | यह चाहिए, यह चाहिए। एक क्षण ऐसा नहीं है, जब वासना न हो। कहा, पागल, तू मांगता क्यों नहीं है? तो विवेकानंद ने कहा कि कुछ न कुछ चाहिए। चाह धुएं की तरह चारों तरफ घेरे रहती है। आप नाहक ही मेरी परीक्षा ले रहे हैं। भीतर जाता हूं, तो यह भूल __एक स्थिति है, वासना। अगर आप मांग लेकर प्रार्थना कर रहे ही जाता हूं कि वे क्षुद्र जरूरतें, जो मुझे घेरे हैं, वे भी हैं, उनका कोई | | हैं, तो वासना ही बनी हुई है, स्थिति बदली ही नहीं। वहां आप फिर अस्तित्व है। जब मां के सामने होता है, तो विराट के सामने होता | | कुछ मांग रहे हैं। बाजार में कुछ मांग रहे थे। पत्नी से कुछ मांग रहे हूं, तो क्षुद्र की सारी बात भूल जाती है। यह मुझसे नहीं हो सकेगा। | थे। पति से कुछ मांग रहे थे। बेटे से, बाप से कुछ मांग रहे थे। रामकृष्ण ने अपने शिष्यों को कहा कि इसीलिए इसे भेजता था, | समाज से कुछ मांग रहे थे। राज्य से कुछ मांग रहे थे। संसार से कि अगर इसकी प्रार्थना अभी भी मांग बन सकती है, तो इसे प्रार्थना कुछ मांग रहे थे। अब परमात्मा से मांग रहे हैं। जिससे मांग रहे थे, की कला नहीं आई। अगर यह अब भी मांग सकता है प्रार्थना के | | वह बदल गया, लेकिन मांगने वाला मन, वह भिखारी वासना क्षण में, तो इसका मन संसार में ही उलझा है, परमात्मा की तरफ | मौजूद है। कभी इससे मांगा, कभी उससे मांगा। जब कहीं भी न उठा नहीं है। | मिल सका, तो लोग भगवान से मांगने लगते हैं। सोचते हैं, जो आप पूछते हैं कि क्या मांगें? कहीं नहीं मिला, वह भगवान से मिल जाएगा! मांगते लेकिन जरूर मांगें मत। मांग संसार है। और जो मांगना छोड़ देता है, वही | | हैं। यह वासना है। केवल परमात्मा में प्रवेश करता है। तो कुछ भी न मांगें। सुख नहीं, | प्रार्थना बिलकुल उलटी अवस्था है। वासना है दौड़, कुछ जो कुछ भी मत मांगें। मोक्ष भी मत मांगें, मुक्ति भी मत मांगें। क्योंकि | | नहीं है, उसके लिए। प्रार्थना, जो है, उसका आनंदभाव। प्रार्थना है मांग ही उपद्रव है। मांग ही बाधा है। वह जो मांगने वाला मन है, | ठहर जाना, वासना है दौड़। वासना है भविष्य में, प्रार्थना है अभी वह प्रार्थना में हो ही नहीं पाता। और यहीं। प्रार्थनापूर्ण चित्त का अर्थ है, मिट गया अतीत, मिट गया साधारणतः हमने सारी प्रार्थना को मांग बना लिया है। मांगना | भविष्य; यह क्षण सब कुछ है। चाहते हैं, तभी हम प्रार्थना करते हैं। प्रार्थी का मतलब ही हो गया | खड़े हैं परमात्मा की प्रतिमा के सामने। और यह प्रतिमा कहीं भी 379
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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