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ॐ बेशर्त स्वीकार ®
के लिए? किस इरादे से बैंक में धन इकट्ठा करेंगे? किसी और के | पड़ेगी। इसमें अहंकार को रस तो रह नहीं गया। भोग के लिए? किस इरादे से लड़ेंगे किसी से?
अर्जुन ने देखा है कि वह जीतेगा। उसके योद्धा विपरीत जो खड़े अब कोई इरादा नहीं रह जाएगा। मौत सारे इरादों को काट देगी। हैं, वे मृत्यु में विलीन हो रहे हैं। उसकी जीत सुनिश्चित है, नियति और जीना तो पड़ेगा। अगर आपको यह भी पता हो कि सत्तर साल है, भाग्य है। जीना ही पड़ेगा। मौत इसी तरह होगी, जैसी होने वाली है। बीच में अगर जीत नियति है, तो फिर अहंकार को उससे कुछ भी रस आत्महत्या भी करने का कोई उपाय नहीं है; भविष्य नहीं है; भविष्य नहीं मिलेगा। फिर मैं नहीं जीतता हूं। जीतना था, इसलिए जीतता तो मरने का है खाट पर। फिर हाथ-पैर कंपते रहेंगे। पूरे जीवन आप हूं। फिर दुर्योधन नहीं हारता है। हारना था बेचारे को, इसलिए हारता कंपते रहेंगे। जो बहुत विचारशील लोग हैं, उनके कंपन का कारण है। तब न तो कोई रस है अपने अहंकार में और न दुर्योधन की हार यही है।
में कोई रस है। तब तो हम पात्र हो गए, खिलौने हो गए। तब तो सोरेन कीर्कगार्ड ने, एक डेनिस विचारक ने लिखा है कि जिस हम गुड़ियों की तरह नाच रहे हैं; कोई भीतर से तार खींच रहा है। दिन से मुझे होश आया, मैं कंप रहा हूं। तब से मेरा कंपन नहीं | किसी को जिताता है, वह जीत जाता है। किसी को हराता है, वह रुकता। रात सो नहीं सकता हूं, क्योंकि मुझे पता है कि कल मौत | हार जाता है। किसका गौरव? किसका अपयश? है। और मैं हैरान हूं कि सारी दुनिया क्यों मजे से चली जा रही है! | अगर यह सच है कि मेरी जीत निश्चित है, तो अर्जुन कंप गया शायद इन्हें पता नहीं है कि कल मौत है।
होगा इससे भी। क्योंकि तब तो मजा ही चला गया। तब किस मुंह भविष्य नहीं दिखाई पड़ता, इसलिए हम बड़े निश्चित हैं। दिखाई | से वह कहेगा कि दुर्योधन को मैंने हराया; कि कौरव हारे पांडव से। पड़े तो बड़ी अड़चन हो जाए। अर्जुन को दिखाई पड़ा है, अभी | तब इसका कोई अर्थ नहीं रह गया। कौरव हारे, क्योंकि नियति उसने देखा। एक झलक उसे मिली है। वह कंप रहा है, वह भयभीत | उनकी हारने की थी। पांडव जीते, क्योंकि नियति उन्हें जिता रही थी। हो रहा है।
| और नियति दोनों के हाथ के बाहर है। यह भी बहुत भय देने वाली संजय कहता है, कांपता हुआ, हाथ जोड़े हुए, नमस्कार करता बात है। यह तो मजा ही चला गया! है, भयभीत हुआ प्रणाम करता है। गदगद भी हो रहा है। एक तो मृत्यु को देखा, उससे वह कंपित हो रहा है। दूसरा,
उसकी स्थिति बड़ी दुविधा की है। जो दिखाई पड़ा है, वह उसकी | सुनिश्चित विजय को देखा। उससे भी, उससे भी वह भयभीत हो विजय है। जो दिखाई पड़ा है, उसमें वह जीतेगा, इसलिए आनंदित | | रहा है। अर्जुन योद्धा था। फेअर नहीं है अब लड़ाई। अब जो युद्ध भी हो रहा है। जो दिखाई पड़ा है, वह विराट की झलक है। यह | है, वह न्याय-संगत नहीं है। अब तो हारने वाले हारेंगे, जीतने सौभाग्य है। यह कृपा है। यह प्रसाद है। वह गदगद भी हो रहा है। वाला जीतेगा। और कृष्ण कहते हैं, मैं पहले ही काट चुका हूं और जो दिखाई पड़ा है, वह मृत्यु भी है। वह भयभीत भी हो रहा है।। | इनको, तू सिर्फ निमित्त है। यह भी कंपित कर देगा। क्षत्रिय का सारा
और एक अर्थ से और भी भयभीत हो रहा है। क्योंकि जो विजय | मजा ही चला गया। अब यह युद्ध हो रहा है, जैसे हो या न हो सुनिश्चित हो, उसमें भी मजा चला जाता है। अगर आप एक खेल | बराबर है। एक झूठा युद्ध रह गया; एक सूडो, मिथ्या, भ्रामक।
कसी के साथ, जिसमें आपकी जीत निश्चित है: खेल जिसमें सब बातें पहले से ही तय हों, उसमें क्या सार है? का मजा चला जाता है। खेल का तो मजा इसी में है कि जीत एक अर्थ में गदगद है कि कृष्ण ने अनुभव का मौका दिया; एक अनिश्चित है। आप जीत भी सकते हैं, हार भी सकते हैं। जिस खेल द्वार खोला अनंत का। और एक लिहाज से भयभीत है। दोनों बातें में आपको जीतना ही है, जिसमें कोई उपाय ही नहीं है हार का, वह | एक साथ! खेल खतम हो गया। वह तो एक बंधन हो गया।
संजय कहता है, ऐसा भयभीत, साथ ही गदगद हुआ, प्रणाम इसे थोड़ा समझ लें, थोड़ा बारीक है।
करके, अर्जुन कहने लगा, हे अंतर्यामिन् ! यह योग्य ही है कि जो अगर आपको पक्का ही है और कोई उपाय जगत में नहीं है कि आपके नाम और प्रभाव के कीर्तन से जगत अति हर्षित होता है और आप हार सकें, आप जीतेंगे ही, तो मजा ही जीत का चला गया। अनुराग को भी प्राप्त होता है। तथा भयभीत हुए राक्षस लोग दिशाओं और जीत से भी भय पैदा होगा। यह जीत भी एक जबरदस्ती मालूम | | में भागते हैं और सब सिद्धगणों के समुदाय नमस्कार करते हैं।
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