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________________ बेशर्त स्वीकार 8 आप देखें, अक्सर घरों में यह हो जाता है। घर में अगर एकाध कि मैं उस दिन शांत हो गया, जिस दिन मैं सूखे पत्ते की तरह हो धार्मिक आदमी भूल-चूक से पैदा हो जाए, तो घर भर में उपद्रव हो गया। मैंने जगत को कहा कि जहां तू ले जाए, हम राजी हैं सूखे पत्ते जाता है। क्योंकि वह प्रार्थना कर रहा है, तो कोई अशांति खड़ी नहीं की तरह। दुख में ले जाओ, चलेंगे। नर्क में ले जाओ, चलेंगे। कर सकता। बच्चे खेल नहीं सकते। कोई शोरगुल नहीं कर अगर आप नर्क में जाने को राजी हैं, तो आपके लिए फिर नर्क सकता। जरा कुछ खटपट हुई कि वह आदमी उपद्रव मचाएगा। वह | | हो ही नहीं सकता। फिर जहां भी आप हैं, वहां स्वर्ग है। और जो बैठा है शांत होने को! बैठा है पूजा, प्रार्थना, ध्यान करने को! आदमी स्वर्ग के लिए दीवाना है, वह स्वर्ग में भी पहुंच जाए, तो लेकिन यह बड़ी अजीब बात है कि ध्यान करने वाला आदमी | नर्क में ही रहेगा। इतना परेशान क्यों होता है? गैर-ध्यान करने वाले इतने परेशान | मन की पकड़, वह जो आकांक्षा, जो वासना, यह चाहिए...। नहीं होते! यह ज्यादा आतुर होकर शांति को पकड़ने की कोशिश | | हम जब कहते हैं, मुझे यह चाहिए, तभी हम जगत के खिलाफ खड़े कर रहा है। जितनी आतुरता से शांति की मांग कर रहा है, उतनी | हो गए। और जब हम कहते हैं, जो मिल जाए...।। अशांति बढ़ रही है। छोटा-सा बच्चा फिर हिल नहीं सकता। बर्तन ऐसा समझें, दुखी आदमी का लक्षण है, वह कहता है, ऐसा हो, गिर जाए, आवाज हो जाए, तो उपद्रव हो जाए। एक आदमी घर में | | तो मैं सुखी होऊंगा। उसकी कंडीशन है। दुखी आदमी की शर्त है। धार्मिक हो जाए, पूरे घर को अशांत कर देगा। वह कहता है, ये शर्ते पूरी हो जाएं, तो मैं सुखी हो जाऊंगा। सुखी क्या, कठिनाई क्या हो रही है? वह समझ ही नहीं पा रहा है कि | आदमी बेशर्त है। वह कहता है, कुछ भी हो, मैं सुखी रहूंगा। मैं वह मांग क्या कर रहा है! वह जो मांग रहा है, वह असंभव है। | चाहता नहीं हूं कि ऐसा हो। जो भी होगा, उसको मैं चाहूंगा। इस . अगर हम ठीक से मन की प्रक्रिया को समझ लें, तो मन की फर्क को समझ लें। प्रक्रिया को समझकर जीवन बदला जाता है। प्रक्रिया यह है कि मन एक तो है कि मैं चाहता हूं कि ऐसा हो, यह दुखी होने का उपाय हमेशा चीजों को दो में तोड़ लेता है—मान-अपमान, सुख-दुख, है। एक यह कि जो हो जाए, वही मेरी चाह है। जो हो जाए, वही शांति-अशांति, संसार-मोक्ष-दो में तोड़ लेता है। और कहता है, मैं चाहूंगा। अगर परमात्मा दुख दे रहा है, तो वही मेरी चाह है, वही एक नहीं चाहिए, अरुचिकर है; और एक चाहिए, रुचिकर है। | मैंने मांगा है, वही मुझे मिला है, मैं राजी हूं। बस, यह मन का खेल है। इसका थोड़ा प्रयोग करके देखें, चौबीस घंटे, ज्यादा नहीं। इस मन से बचने के दो उपाय हैं। या तो दोनों के लिए राजी हो लड़ने का प्रयोग तो आप हजारों जन्मों से कर रहे हैं। एक चौबीस जाएं, मन मर जाएगा। या दोनों को छोड़ दें, तो भी मन मर जाएगा। | घंटे तय कर लें कि आज सुबह छः बजे से कल सुबह छः बजे जो आपके लिए अनुकूल मालूम पड़े, वैसा कर लें। अन्यथा | | तक, जो भी होगा, उसको मैं स्वीकार कर लूंगा। जरा भी विरोध, आपके शांत होने का फिर कोई उपाय नहीं है। द्वंद्व खड़ा नहीं करूंगा। जब तक आप शांत होना चाहते हैं, तब तक शांत न हो सकेंगे। देखें, चौबीस घंटे में आपकी जिंदगी में एक नई हवा का प्रवेश जब तक आप सुखी होना चाहते हैं, दुख आपका भाग्य होगा। | हो जाएगा। जैसे कोई झरोखा अचानक खुल गया और ताजी हवा और जब तक आप मोक्ष के लिए पागल हैं, संसार आपकी | आपकी जिंदगी में आनी शुरू हो गई। फिर ये चौबीस घंटे कभी परिक्रमा होगी। खतम न होंगे। एक दफा इसका अनुभव हो जाए, फिर आप इसमें दोनों के लिए राजी हो जाएं। मांग ही छोड़ दें। कह दें, जो होता गहरे उतरने लगेंगे। है, मैं राजी हूं। कोई विधि नहीं है शांत होने की, शांत होना जीवन-दृष्टि है। लाओत्से ने कहा है, हवाएं पूरब की तरफ ले जाती हैं सूखे पत्ते | कोई मेथड नहीं होता कि राम-राम, राम-राम जप लिया और शांत को, तो पत्ता पर । पूरब चला जाता है। और हवाएं बदल जाती हैं, पश्चिम हो गए। नहीं होंगे आप शांत। राम-राम भी आपकी अशांति ही की तरफ बहने लगती हैं, तो सूखा पत्ता पश्चिम की तरफ चला जाता | होगी। वह भी आप अशांत मन से ही जपते रहेंगे। वह भी आपकी है। हवाएं शांत हो जाती हैं, पत्ता जमीन पर गिर जाता है। हवाएं बेचैनी और बुखार का सबूत होगा, और कुछ भी नहीं। तूफान उठाती हैं, पत्ता आकाश में उठ जाता है। लाओत्से ने कहा है | शांत हो जाएं। कैसे? अशांति को स्वीकार कर लें। दुख को 365
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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